राज्य विधानसभा में चुनावी सुधारों को लेकर विशेष चर्चा के दौरान पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस विधायक एचके पाटिल ने इस मामले पर चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगने के लिए स्पीकर पर दबाव डालने के लिए आरटीआई जवाबों का हवाला दिया है.
नई दिल्लीः भाजपा के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार में हलाल मीट को लेकर विवाद जारी है और यह राज्य में मुस्लिमों को एक बार फिर घेरने का राजनीतिक प्रयास प्रतीत होता है.
राज्य में मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने 2016 और 2019 के बीच चुनाव आयोग के पास से कथित तौर पर 19 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) मशीनों के गायब होने का मुद्दा उठाया है.
विधानसभा में चुनावी सुधारों को लेकर विशेष चर्चा के दौरान पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस विधायक एचके पाटिल ने इस मामले पर चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगने के लिए स्पीकर पर दबाव डालने के लिए आरटीआई जवाबों का हवाला दिया.
पाटिल ने द वायर से बातचीत में कहा कि उन्होंने मौजूदा समय में भारतीय लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं पर अपनी बात रखी, जो चुनावी बॉन्ड को लेकर पारदर्शिता की कमी और ईवीएम को लेकर देशभर में उठाए गए संदेह हैं.
पाटिल ने कहा, ‘मैं स्पीकर से आग्रह करता हूं कि वह चुनाव आयोग को तलब करें. चुनाव आयोग लोगों के प्रति जवाबदेह है. जब मैंने विधानसभा जैसे फोरम में आरोप लगाए हैं तो मैंने पूरी गंभीरता से ऐसा किया है.’
इस चर्चा के बाद स्पीकर विश्ववेश्वर हेगड़े कागेरी ने मंगलवार को चुनाव आयोग को तलब करने और स्पष्टीकरण की मांग पर सहमति जताई.
पाटिल ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) और चुनाव आयोग से कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय को मिले आरटीआई जवाबों का हवाला दिया.
बता दें कि ये दोनों सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां ईवीएम का निर्माण करती हैं.
इन जवाबों के आधार पर रॉय ने आकलन किया कि इन पीएसयू कंपनियों द्वारा 19 लाख से अधिक ईवीएम चुनाव आयोग को सप्लाई की गई लेकिन चुनाव आयोग द्वारा इन्हें प्राप्त के रूप में चिह्नित नहीं किया गया.
इस मामले पर रॉय की जनहित याचिका में चुनाव आयोग से इस पर स्पष्टीकरण मांगा गया है और 2018 के बाद से बॉम्बे हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है.
रॉय की आरटीआई याचिका पर 21 जून 2017 को पाटिल ने द वायर को आरटीआई जवाब में विसंगतियों के बारे में बताते हुए कहा, ‘चुनाव आयोग के जवाब के मुताबिक, चुनाव आयोग को 1989-1990 और 2014-2015 के दौरान बीईएल से 10.5 लाख ईवीएम मिलीं.’
चुनाव आयोग का कहना है कि उसे 1989-1990 और 2016-2017 के बीच ईसीआईएल से 10,14,644 ईवीएम मिली.
रॉय को दो जनवरी 2018 को बीईएल का जवाब भी मिला, जिसमें कहा गया कि उन्होंने 1989-1990 और 2014-2015 के बीच चुनाव आयोग को 19,69,932 ईवीएम की सप्लाई की.
उन्होंने कहा, ‘ठीक इसी तरह ईसीआईएल के 16 सितंबर 2017 के आरटीआई जवाब से पता चलता है कि उन्होंने 1989-1990 और 2014-2015 के बीच चुनाव आयोग को 19,44,593 ईवीएम की सप्लाई की.’
पाटिल ने कहा, ‘इसका मतलब है कि चुनाव आयोग को 9,64,270 ईवीएम नहीं मिली, जबकि बीईएल का दावा है कि उन्होंने इन्हें चुनाव आयोग को डिलीवर किया था और इसी तरह ईसीआईएल ने कहा कि उसने 9,29,449 मशीनें आयोग को डिलीवर की लेकिन आयोग ने इससे इनकार किया.’
उन्होंने कहा कि रॉय की आरटीआई में दोनों पीएसयू कंपनियों से सप्लाई की गई मशीनों का सालाना ब्योरा (ब्रेकअप) भी पूछा गया था.
उन्होंने कहा, ‘सालाना ब्योरे से जो आंकड़े सामने आए, उनमें बहुत असमानताएं थीं. गायब ईवीएम की संख्या लगभग 19 लाख है, जिनमें 62,183 ईवीएम ऐसी हैं, जिन्हें लेकर बीईएल ने दावा किया था कि उन्हें 2014 में चुनाव आयोग को भेजा जा चुका है लेकिन चुनाव आयोग नियामक ने इससे इनकार किया.’
पाटिल ने कहा, ‘आरटीआई जवाबों से बहुत बड़ी धोखाधड़ी का पता चलता है. इस पर चुप्पी नहीं साधी जा सकती क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र की वैधता पर सवालिया निशाना लगाता है. दुर्भाग्य से चुनाव आयोग ने पिछली 10 सुनवाइयों में बॉम्बे हाईकोर्ट को अस्पष्ट जवाब ही दिए हैं. इस मुद्दे को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझा गया कि सभी संदेहों को दूर किया जा सके.’
फ्रंटलाइन ने रॉय के आरटीआई के जवाबों और बॉम्बे हाईकोर्ट में उनकी जनहित याचिका पर 2019 में विस्तृत स्टोरी की थी, जिसमें पहली बार गायब ईवीएम के मामले को उजागर किया गया था.
फ्रंटलाइन की रिपोर्ट में कहा गया था, ‘आरटीआई दस्तावेजों में तीनों मोर्चों- खरीद, भंडारण और डिप्लॉयमेंट में गहन विसंगतियां उजागर हुई हैं और इसके साथ ही 116.55 करोड़ रुपये की गंभीर अनियमितता की तरफ भी इशारा किया गया है.’
रिपोर्ट में कहा गया, ‘भुगतान में विसंगतियों का पता चला है. 2006-2007 से 2016-2017 के बीच दस साल की अवधि के चुनाव आयोग और बीईएल के बीच के वित्तीय लेनदेन के भुगतान विवरणों के मूल्यांकन से पता चलता है कि ईवीएम पर चुनाव आयोग का वास्तविक खर्च 5,36,01,75,485 है जबकि 20 सितंबर 2018 को बीईएल के आरटीआई के जवाब में दावा किया गया है कि उसे इस अवधि में चुनाव आयोग से 6,52,56,44,000 रुपये का भुगतान प्राप्त हुआ है. यह 116.55 करोड़ रुपये का अत्यधिक भुगतान है.’
फ्रंटलाइन से बात करते हुए रॉय ने कहा था कि उनकी जनहित याचिका का उद्देश्य आंकड़ों में इन विसंगतियों पर स्पष्टता चाहना था ताकि ईवीएम में गड़बड़ी और खराबी को लेकर इस हंगामे पर विराम लगाया जा सके.
उन्होंने कहा, ‘बीईएल और ईसीआईएल द्वारा सप्लाई की गई, वे मशीनें कहां गईं और बीईएल को प्राप्त इस अत्यधिक धनराशि का राज क्या है? तथ्य यह है कि न तो चुनाव आयोग के पास और न राज्य चुनाव आयोग के पास ईवीएम की खरीद, भंडारण और डिप्लॉयमेंट के लिए मजबूत प्रणाली है और न ही ईवीएम में गड़बड़ी को दूर करने का कोई उपाय है.’
रॉय की एक और आरटीआई याचिका पर चुनाव आयोग के जवाब के बाद इन गायब ईवीएम को लेकर विवाद बढ़ा. चुनाव आयोग ने 21 जुलाई 2017 को कहा था कि उसने स्क्रैप (मशीनी कचरे) के तौर पर ईवीएम नहीं बेची और 1989-1990 में खरीदी गई ईवीएम को निर्माताओं ने खुद नष्ट कर दिया था. चुनाव आयोग को 2000-2005 में मिली ईवीएम या तो पुरानी थी या वे ठीक नहीं हो सकती थी.
रॉय का मानना है कि ज्यादातर गायब ईवीएम अभी भी चुनाव आयोग के पास हैं, फिर भले ही उन्हें आधिकारिक रूप से स्वीकार की श्रेणी में नहीं दर्शाया गया.
While I am usually wary of conspiracy theories, the mounting level of concerns about irregularities in the handling of EVMs requires a serious response from the Election Commission. The official confirmation of “missing EVMs” raises the obvious question, who has them & what for? pic.twitter.com/8lLblBXNlD
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) March 30, 2022
In recent municipally elections in Assam, many BJP party workers were spreading the propaganda that all EVM votes would go to BJP. The lack of transparency around the handling of EVMs create doubt in the minds of voters. https://t.co/k1d7Rl4GKE
— Gaurav Gogoi (@GauravGogoiAsm) March 30, 2022
कर्नाटक विधानसभा में इस पर चर्चा के बाद से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मामले पर स्पष्टता की मांग कर रहे हैं.
कर्नाटक में विधानसभा के पूर्व स्पीकर और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रियांक खड़गे ने द प्रिंट को बताया कि आईटी मंत्री के रूप में उन्होंने चुनाव आयोग से विशेषज्ञों से ईवीएम का हैकथॉन कराने की मंजूरी देने का आग्रह किया था लेकिन उनके आग्रह को ठुकरा दिया गया.
विधानसभा में अरविंद बेलाड जैसे भाजपा नेताओं ने ईवीएम का बचाव किया लेकिन कांग्रेस नेताओं ने यह कहते हुए पलटवार किया कि केवल चुनाव आयोग को ही इन गंभीर आरोपों का जवाब देना चाहिए न कि सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)