सीआईसी ने लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री के बाल कटवाने संबंधी आरटीआई को नकारा

मई 2020 में एक व्यक्ति ने आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी कि क्या लॉकडाउन में सैलून बंद होने से प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों पर उतना ही प्रभाव पड़ा, जितना किसी आम नागरिक पर. सीआईसी ने इसे 'बेतुका' बताते हुए कहा कि यह अधिनियम के प्रावधानों के दुरुपयोग के समान है.

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नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

मई 2020 में एक व्यक्ति ने आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी कि क्या लॉकडाउन में सैलून बंद होने से प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों पर उतना ही प्रभाव पड़ा, जितना किसी आम नागरिक पर. सीआईसी ने इसे ‘बेतुका’ बताते हुए कहा कि यह अधिनियम के प्रावधानों के दुरुपयोग के समान है.

नरेंद्र मोदी. (फोटो साभार: पीआईबी)

नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि सर्वव्यापी है और उनकी इस छवि की झलक सरकारी विज्ञापनों, वैक्सीन प्रमाणपत्रों इत्यादि में देखी जा सकती है. यह भाजपा के चुनावी प्रचार का बहुत बड़ा हिस्सा भी है. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि लोग मोदी की इस छवि से जुड़े पहलुओं को लेकर उत्सुक दिखाई देते हैं.

पूर्व में भी लोगों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से मोदी की बीए की डिग्री और उनके कपड़ों पर सरकारी पैसे के खर्च के बारे में जानने को लेकर आरटीआई का इस्तेमाल किया. हालांकि, सरकारी विभागों ने ज्यादातर इन सवालों को अनसुना कर दिया.

लेकिन इसके बावजूद लोग प्रधानमंत्री के बारे में जानकारी मांगने से नहीं रुके.

हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की वेशभूषा (Appearance) और उनके वेतन को लेकर कई सवाल आरटीआई के जरिये पूछे गए.

साल 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के दौरान सैलून बंद रहे. कई महीनों तक लोग घरों में ही घरे और सैलून जाने से परहेज किया. यह वह समय था, जब मोदी की एपीयरिंस (लुक) भी बदला और उनके लबे बाल और लंबी सफेद दाढ़ी पर सभी का ध्यान गया.

प्रधानमंत्री मोदी का यह लुक अप्रैल 2021 तक पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव तक रहा. 15 अगस्त 2021 को भी जब उन्होंने लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित किया, वह लंबी सफेद दाढ़ी में दिखाई दिए थे लेकिन सितंबर 2021 में उनके अमेरिका के दौरे के समय मोदी को ट्रिम दाढ़ी और छोटे बालों में देखा गया.

मई 2020 में एक आरटीआई आवेदक नीलेश जी प्रभु ने यह जानने के लिए आरटीआई दायर की थी कि क्या लॉकडाउन के दौरान सैलून बंद होने से प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट के सहयोगियों पर उतना ही प्रभाव पड़ा, जितना किसी आम नागरिक पर पड़ता है.

उन्होंने यह भी जानना चाहा कि 19 मार्च 2020 और चार मई 2020 के दौरान मोदी ने कितनी बार बाल कटवाए और क्या इस समयावधि में उनकी कैबिनेट के मंत्रियों ने भी बाल कटवाए?

आरटीआई कार्यकर्ता प्रभु ने उस शख्स या नाई का भी ब्योरा मांगा, जिसने मोदी और उनके कैबिनेट के मंत्रियों के बाल काटे.

सीआईसी ने कहा- यह आरटीआई आवेदन बेतुकी, मूर्खतापूर्ण

शुरुआत में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन प्रभु ने तब तक इस मामले को आगे बढ़ाया, जब तक प्रथम अपीलीय प्राधिकरण ने पीएमओ को जवाब देने का निर्देश नहीं दिया.

इस पर जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) ने जवाब देते हुए कहा, ‘मांगी गाई जानकारी निजी है और सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 8(1) (जे) के तहत उजागर करने से छूट मिली हुई है.’

प्रभु ने इसके बाद सीआईसी से संपर्क किया, जिसने हाल ही में कहा कि उपयुक्त जवाब दे दिया गया है और प्राधिकरण यह न्यायोचित ठहराने में सक्षम नहीं है कि उनकी आवेदन में मांगी गई जानकारी से व्यापक जनहित जुड़ा हुआ है.

यह भी कहा गया कि आवेदक द्वारा मांगी गई जानकारी बेतुकी और मूर्खतापूर्ण है और यह स्पष्ट रूप से अधिनियम के प्रावधानों के दुरुपयोग के समान है.

पीएमओ ने मोदी के वेतन के सवाल पर वेतन अधिनियम का हवाला दिया

जुलाई 2020 में एक अन्य आरटीआई कार्यकर्ता सतीश कुमार अग्रवाल ने सीआईसी का रुख कर प्रधानमंत्री के वेतन की जानकारी मांगी थी.

पीआईओ ने जवाब दिया था कि प्रधानमंत्री का वेतन और भत्तों का भुगतान वेतन एवं भत्ते अधिनियम 1952 के अनुसार किया जाता है, जिसमें समय-समय पर संशोधन किया जाता है.

प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर आरटीआई कार्यकर्ता अग्रवाल ने इस मामले पर सीआईसी के समक्ष दूसरी अपील की. सीआईसी ने यह कहते हुए अपील को खारिज कर दिया, मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने से पता चलता है कि उपलब्ध जानकारी आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एफ) के तहत परिभाषित है और इसका अधिनियम के संदर्भ में खुलासा किया गया है.

इसी तरह की एक अपील जून 2020 में अनिल कुमार अग्रवाल ने की थी.

उन्होंने मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से लेकर अब तक किए गए कुल वेतन के भुगतान का ब्योरा मांगा था. उनके मामले में भी पीएमओ ने यही जवाब दिया था.

मुख्य सूचना आयुक्त वाईके सिन्हा ने लगभग इसी तरह अपील का निपटारा करते हुए कहा था, ‘मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने से पता चलात है कि उपलब्ध जानकारी आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एफ) के तहत परिभाषित है और इसका अधिनियम के संदर्भ में खुलासा किया गया है. अपीलकर्ता अपने मामले की पुष्टि के लिए उपस्थित नहीं है इसलिए मामले के तथ्यों को लेकर उसकी असंतुष्टि का पता लगाना संभव नहीं है. इन परिस्थितियों में आयोग इस मामले में आगे फैसला करने के लिए इच्छुक नहीं है.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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