महंगाई को काबू में लाने के लिए पेट्रोल और डीज़ल पर लगे टैक्स में कटौती ज़रूरी: प्रो. अरुण कुमार

जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और वर्तमान में इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेंस के चेयर प्रो. अरुण कुमार सरकार को सबसे पहले पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कमी करने की ज़रूरत है. ईंधन के दाम अधिक होने पर दूसरे उत्पाद महंगे हो जाते हैं. सरकार चाहे तो कर राजस्व बढ़ाने के लिए उन लोगों पर टैक्स लगा सकती है, जिनकी संपत्ति हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है. कॉरपोरेट कर, संपत्ति कर जैसे कर बढ़ाकर प्रत्यक्ष कर संग्रह बढ़ाया जा सकता है.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और वर्तमान में इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेंस के चेयर प्रो. अरुण कुमार सरकार को सबसे पहले पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कमी करने की ज़रूरत है. ईंधन के दाम अधिक होने पर दूसरे उत्पाद महंगे हो जाते हैं. सरकार चाहे तो कर राजस्व बढ़ाने के लिए उन लोगों पर टैक्स लगा सकती है, जिनकी संपत्ति हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है. कॉरपोरेट कर, संपत्ति कर जैसे कर बढ़ाकर प्रत्यक्ष कर संग्रह बढ़ाया जा सकता है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: देश में बढ़ती महंगाई चिंता का कारण बनी हुई है. विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च महंगाई दर से आम लोगों की खरीद क्षमता प्रभावित होती है. इससे मांग में कमी आती है, आर्थिक वृद्धि नरम पड़ती है और रोजगार सृजन व अन्य आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं.

मुद्रास्फीति के कारण, प्रभाव और उससे निपटने के उपाय समेत विभिन्न पहलुओं पर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व प्रोफेसर और वर्तमान में इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेंस के चेयर प्रोफेसर अरुण कुमार से समाचार एजेंसी ‘पीटीआई/भाषा’ के पांच सवाल और उनके जवाब.

महंगाई दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, लोगों के घर का बजट बिगड़ने के साथ आने वाले समय में अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा. क्या इसके लिए सिर्फ वैश्विक कारण जिम्मेदार हैं?

महंगाई बढ़ने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के भीतर के और वैश्विक, दोनों कारण जिम्मेदार हैं. यूक्रेन युद्ध से पहले ही समस्या थी. मांग बढ़ी, लेकिन आपूर्ति संबंधी बाधाएं थीं. कंटेनर की समस्या रही. चिप का संकट है. वैश्विक बाजारों में कच्चे तेल के दाम बढ़े, लेकिन साथ ही देश में पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद शुल्क भी ज्यादा बना हुआ है. इससे ईंधन के दाम में तेजी आई है.

पेट्रोलियम उत्पाद प्रमुख कच्चा माल हैं और जब ईंधन के दाम अधिक होते हैं तो दूसरे उत्पाद महंगे होते हैं. पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ने से परिवहन लागत बढ़ी, कीटनाशक महंगा हुआ और आपूर्ति की समस्या नहीं होने के बावजूद खाद्यान्न के दाम बढ़ गए.

दूसरा, घरेलू कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने पर ध्यान दे रही हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के 1500 कंपनियों के आंकड़े के अनुसार, उनका लाभ 26 प्रतिशत तक बढ़ा है. माहौल देखकर कंपनियां लागत के मुकाबले कीमत ज्यादा बढ़ा रही हैं.

महामारी के दौरान असंगठित क्षेत्र के प्रभावित होने से मांग संगठित क्षेत्र में आने से भी कंपनियां दाम बढ़ाकर मुनाफा कमाने पर ज्यादा ध्यान दे रही रही हैं. इसके अलावा, आयातित माल की कीमत का बढ़ना भी ऊंची मुद्रास्फीति का कारण है.

देश में मुद्रास्फीति के जो आंकड़े हैं, क्या वे महंगााई की वास्तविक स्थिति को दर्शाते हैं?

महंगाई ऊंची बनी हुई है. खासकर थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पिछले 11 महीने से 10 प्रतिशत से अधिक (मार्च 2022 में 13.11 प्रतिशत) है. मांग कम होने पर भी थोक महंगाई बढ़ी है और जब थोक मुद्रास्फीति बढ़ती है तो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा महंगाई दर पर भी असर पड़ता है.

हालांकि, मुद्रास्फीति के आंकड़े वास्तविक महंगााई को बयां नहीं करते. थोक मुद्रास्फीति में सेवाएं शामिल नहीं हैं. यानी जब सेवाओं के दाम बढ़ते हैं तो वे थोक मुद्रास्फीति में नहीं आते.

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में भी सेवा क्षेत्र का भारांश केवल लगभग 30 प्रतिशत है, जबकि अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का योगदान करीब 55 फीसदी है.

महामारी के दौरान स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ा. इसी तरह, शिक्षा क्षेत्र में लैपटॉप, इंटरनेट आदि पर खर्च बढ़ा, लेकिन यह सब पूरी तरह से खुदरा मुद्रास्फीति में शामिल नहीं होता. आंकड़ों के अनुसार, खुदरा मुद्रास्फीति छह प्रतिशत (फरवरी 2022 में 6.07 प्रतिशत) पर है, लेकिन मेरा मानना है कि यह इससे कहीं ज्यादा है. इसका गरीबों पर असर पड़ रहा है.

लोगों को बढ़ती महंगाई से राहत देने के लिए सरकार के पास क्या विकल्प हैं? क्या उत्पाद शुल्क में कटौती की गुंजाइश है?

वैश्विक बाजार में जब कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैं, तब सरकार को सबसे पहले पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कमी करने की जरूरत है. पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क और वैट (मूल्य वर्धित कर) के रूप में कर 35 से 40 रुपये प्रति लीटर के करीब है. इसे कम किया जाए तो कीमतों पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है.

सरकार का इस समय कर राजस्व संग्रह अच्छा है. जीएसटी संग्रह रिकॉर्ड स्तर (मार्च 2022 में 1.42 लाख करोड़ रुपये) पर है. वित्त वर्ष 2021-22 में प्रत्यक्ष कर संग्रह भी 14 लाख करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गया है.

दूसरी तरफ, हमारी खपत 2019 के स्तर पर नहीं पहुंची है. ऐसे में अगर सरकार चाहे तो उत्पाद शुल्क में कटौती कर सकती है. इससे मुद्रास्फीति दबाव कम होगा. नतीजतन मांग बढ़ेगी, रोजगार बढ़ेगा और अंतत: आर्थिक वद्धि तेज होगी.

इसके अलावा, कुछ श्रेणी में जीएसटी को भी युक्तिसंगत बनाने की जरूरत है. दूसरी तरफ, सरकार अगर चाहे तो कर राजस्व बढ़ाने के लिए उन लोगों पर कर लगा सकती है, जिनकी संपत्ति हाल के वर्षों में काफी बढ़ी है.

इसके तहत कॉरपोरेट कर, संपत्ति कर जैसे कर बढ़ाकर प्रत्यक्ष कर संग्रह बढ़ाया जा सकता है. इससे उत्पाद शुल्क में कटौती की भरपाई हो सकती है.

लेकिन सरकार का कहना है कि वह पेट्रोलियम उत्पादों पर लगाए गए कर से प्राप्त राशि का उपयोग कल्याणकारी योजनाओं में करती है.

यह कहना गलत है. आपके पास रिकॉर्ड कर संग्रह है. आप दूसरे मदों से प्राप्त रकम को कल्याणकारी योजनाओं में लगा सकते हैं. आपको प्राथमिकता तय करनी होगी. महंगाई गरीबों को प्रभावित करती है.

महंगाई से राहत देने के लिए क्या किसान सम्मान निधि की तरह सीधे लोगों के खातों में पैसा डालने जैसे उपाय किए जा सकते हैं?

मेरा मानना है कि अगर पैसा है तो उसे रोजगार के अवसर पैदा करने में लगाना चाहिए. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) से लोगों को सम्मान नहीं मिलता. लोगों को सम्मान मिलता है काम करने से.

महामारी के दौरान लोगों को खाने की समस्या थी, उस समय यह किया जाना उपयुक्त था, लेकिन सामान्य दिनों में डीबीटी के बजाय लोगों को नौकरी देने के उपाय किए जाने की जरूरत है.

रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे पर खर्च के माध्यम से पैसे दिए जाएं. विश्व बैंक 2015 से डीबीटी की बात कर रहा है, लेकिन मैं इसके पक्ष में नहीं हूं. आप काम के अवसर दीजिए और जब लोगों को आमदनी होगी, तब वे अपनी रुचि के हिसाब से खर्च करेंगे और इससे उन्हें सम्मान का बोध होगा.

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