अभी तक हम दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं पर सिर्फ बात किया करते थे, लेकिन नासा की नई खोज में मिले आंकड़ों के आधार पर अब हम ठोस रूप से इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं. तारामंडल में छह या कहें सात ग्रहों की खोज एक बड़े बदलाव का संकेत है.
मई 2016 में खगोलविदों ने घोषणा की थी कि तीन पथरीले ग्रह एक तारे की कक्षा में हैं, जिसे ट्रैपिस्ट-1 नाम दिया गया है जोकि धरती से 40 प्रकाशवर्ष दूर है. उस समय कुछ लोगों ने इस पर टिप्पणी की थी कि ये ग्रह सौर तंत्र के बाहर जीवन तलाशने के लिए सबसे बड़ा लक्ष्य हैं. क्रैंब्रिज विश्वविद्यालय में खगोलविद डिडियर क्यूलोज़ को आज भी लगता है कि यह सत्य है.
द वायर से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘अगले दशक में दूसरे ग्रहों पर ज़िंदगी के सवाल पर अध्ययन करने के लिए यह देखना होगा कि पथरीले ग्रह के माहौल में क्या चल रहा है और यह काफी कठिन काम है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘जिन तारों के जरिए आप ऐसा होने की उम्मीद कर रहे हैं वह बेहद ठंडे और बहुत छोटे हैं.’
ट्रैपिस्ट-1 एक बहुत ही ठंडा और छोटा तारा है. इसका पता चिली में ट्रांज़िटिंग प्लैनेट्स एंड प्लैनेटेसिमल्स स्मॉल टेलीस्कोप के जरिए लगाया गया था. इस टेलीस्कोप के आधार पर ही इसे यह नाम दिया गया था. यह बृहस्पति ग्रह से थोड़ा-सा बड़ा और सूरज से थोड़ा सा कम चमकीला है.
ट्रैपिस्ट-1 की वजह से वैज्ञानिक उन ग्रहों का पता बेहतर तरीके से लगा सकते हैं जो शायद इसकी कक्षा के आसपास छिपे हुए हैं. खगोलविद जिन्होंने मई 2016 में घोषणा की थी कि वे अब नई खोज से काफी प्रोत्साहित हैं और अब वे अपने शुरुआती आविष्कार का और गहराई से परीक्षण कर रहे हैं. इसके लिए वे स्पिट्ज़र स्पेस टेलीस्कोप और दूसरे उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
23 फरवरी को घोषणा की गई है कि वैज्ञानिकों को ट्रैपिस्ट-1 की कक्षा में कम से कम चार और ग्रह मिले हैं. क्यूलोज़ के मुताबिक, यह अब तक का सबसे बड़ा तंत्र है जिसे तलाशा गया है और वे इसे लेकर बेहद उत्साहित हैं. नासा की उस टीम का हिस्सा जिसने इसकी खोज की.
अपने शोध में इन वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सात में छह ग्रह बहुत ही पथरीले हैं. ये चट्टान और धातु से मिलकर बने हैं बिल्कुल उसी तरह से जैसे बुध, शुक्र, धरती और मंगल हैं (ये ग्रह बृहस्पति या फिर शनि की तरह चमकीले नहीं हैं). ये ग्रह कुछ हद तक धरती के आकार के हैं और अनुमान है कि घनत्व के लिहाज़ से भी ये पृथ्वी के आसपास ही हैं.
प्रिंसटन विश्वविद्यालय में खगोलविज्ञानी जेम्स ओवन कहते हैं, ‘हकीकत यह है कि सभी ग्रह धरती की ही तरह पथरीले ग्रह हैं और ये इशारा करते हैं कि गैसीय नक्षत्र मंडल से निकले एक युवा तारे के बाद इनका निर्माण हुआ है, शायद बिल्कुल सौर मंडल में ग्रहों के अंदाज़ की तरह ही.’ ओवन फिलहाल ट्रैपिस्ट-1 सिस्टम का अध्ययन कर रहे हैं लेकिन वह इस शोध में शामिल नहीं थे.
शोध कर रही टीम को सातवें और सबसे दूर के ग्रह के बारे में बहुत कम जानकारी है क्योंकि उससे जुड़े आंकड़े इतने मजबूत नहीं हैं कि किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके. साथ ही सात में से तीन ग्रह रहने योग्य इलाके में थे और ट्रैपिस्ट-1 की सतह से सिर्फ इतनी दूरी पर थे कि उनकी सतह पर पानी भी हो सकता था. हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है.
ट्रांज़िट टाइमिंग वैरीएशन तकनीक का प्रयोग करके टीम जिस बात की पुष्टि करने में समर्थ थी वह छह ग्रहों से जुड़ी थी. क्यूलोज़ के मुताबिक, यह संभव हो सका क्योंकि ये छह काफी करीब थे और वे एक-दूसरे को काफी प्रभावित कर रहे थे.
क्यूलोज़ के मुताबिक, जब एक ग्रह किसी तारे के विरुद्ध चलता है, जैसा कि पर्यवेक्षकों ने देखा है तो यह बड़ी मात्रा में रोशनी में डूबा होता है क्योंकि ग्रह की वजह से काफी छाया उत्पन्न होती है. ग्रहों की इस प्रक्रिया को ट्रांज़िट कहते हैं. जब वह काफी करीब कंपन की स्थिति में होते हैं तब उनका गुरुत्वाकर्षण बल एक-दूसरे की गति को आकर्षित करता है.
क्यूलोज़ बताते हैं कि कितनी बार कोई तारा स्थायी होता है और कितनी बार कोई दूसरा ग्रह, यह ग्रहों के समूह पर निर्भर करता है. इस प्रभाव को ट्रांज़िट-टाइमिंग वैरीएशन कहते हैं. इस विविधता का प्रयोग करके हमारे पास तंत्रों का समूह होता है और जिससे हमें पता चलता है कि धरती की तरह ही अन्य ग्रह भी हो सकते हैं. इस शोध को ‘नेचर’ पत्रिका में 22 फरवरी को प्रकाशित किया गया है.
ओवन ने कंपन से अनुमान लगाया कि भूमंडलीय क्रम कुछ हद तक स्थिर है और ग्रहों ने अपने जीवनकाल में शायद ज्यादा दूर तक गति नहीं की है क्योंकि इससे उनकी वह संरचना टूट सकती है जो हमें आज दिख रही है.
पुर्तगाल के इंस्टीट्यूट आॅफ एस्ट्रोफिजिक्स एंड स्पेस साइंसेज़ में खगोल विज्ञानी सुज़न बैरोस के मुताबिक हो सकता है कि यही निष्कर्ष में अनिश्चितता का मुख्य स्रोत हो. उन्होंने बताया कि टीटीवी विधि जो कि आमतौर पर काफी कठिन है, वह सात ग्रहों के मसले पर और ज्यादा जटिल है.
वह इस अध्ययन का हिस्सा नहीं थीं. उनके मुताबिक अपने नतीजों को पेश करते समय आविष्कारकों ने काफी सावधानी बरती होगी. इसकी वजह से ग्रहों का एक संवेदनशील पहलू रह गया है जो है उनका वातावरण.
अगर आप क्यूलोज़ के बारे में नहीं जानते हैं तो आपको बता दें कि शुरुआती दौर में उन्होंने 51 पेगासी बी. ग्रह की खोज की थी. यह वह ग्रह है जिसे सूरज के अलावा तारे की कक्षा में पाया गया था. अक्टूबर 1995 में उन्होंने अपने गाइड माइकल मेयर के साथ इसकी खोज की थी.
यह बृहस्पति से आधा भारी था लेकिन अपने तारे की कक्षा में करीब बुध और सूर्य के बीच की दूरी से भी कम दूरी पर था. इसके बावजूद यह इतना बड़ा था कि वातावरण में स्थायी रह सकता था. सिर्फ पिछले माह ही अमेरिकी और डच खगोल विज्ञानियों ने पाया है कि इसके वातावरण में पानी की काफी ज्यादा मात्रा है.
51 पेगासी बी. पर वातावरण में ग्रह और पानी की खोज बाकी थी. सूरज की तरह का ग्रह होने की वजह से यह काफी चमकीला था जिसकी वजह से वैज्ञानिकों को बहुत ही प्रगतिशील तकनीक पर निर्भर रहने को मजबूर होना पड़ा. इसकी वजह से तारे का असाधारण ऊर्जा उत्पादन सिर्फ एक छोटे ग्रह तक ही सीमित रह सका.
ट्रैपिस्ट-1 के साथ हालांकि यह समस्या नहीं है. क्योंकि यह छोटा है और सूर्य की तुलना में कम चमकीला है. बाकी ग्रह भी इसके विपरीत हैं. ग्रहों से जो संकेत मिल रहे हैं उसकी वजह से ग्रहों को आसानी से उस तारे से अलग किया जा सकता है. क्यूलोज़ के लिए यह काफी अहम है. क्यूलोज़ का कहना है कि हमें यह देखना होगा कि किसी भी ग्रह पर कैसा वातावरण है और उस वातावरण में पानी है या नहीं.
वहीं ओवन चेतावनी देने के अंदाज़ में कहते हैं कि लेकिन अगर उन पर पानी है भी तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे स्थिर रह सकेंगे. वर्ष 2016 में उन्होंने अपने साथी के साथ मिलकर जो गणना की थी, उसमें उन्होंने पाया था कि जब पथरीले ग्रह किसी अत्यंत ठंडे बौने तारे के रहने योग्य सीमा के बाहर जाकर फिर अंदर की ओर आते हैं, तब उनका वातावरण तारे की पराबैंगनी किरण से छिन्न-भिन्न हो सकता है क्योंकि ग्रहों पर भी ग्रीनहाउस का असर होता है. इसकी वजह से वे शुक्र की तरह ही बंजर हो सकते हैं. ओवन के मुताबिक यह सिर्फ एक सवाल है कि उन पर ग्रहों पर खुद को बचाने लायक पानी है जो उन्हें उनके उस वातावरण में रहने योग्य बना सके.
क्यूलोज़ के जोश और ओवन के तर्कों का जवाब जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की लॉन्चिंग के समय मिलेगा, जिसे नासा ने वर्ष 2018 के लिए तैयार किया है. यह टेलीस्कोप एक शीशे से तैयार होगा (जो ब्रह्मांड के अलग-अलग हिस्सों से प्रकाश इकट्ठा करेगा). यह हबल स्पेस टेलीस्कोप से चार गुना चौड़ा है.
क्यूलोज़ ने कहा, ‘ट्रैपिस्ट-1 के अनुभव के साथ अब आप दूसरे ग्रहों पर मौजूद आंकड़ों को माप कर वहां पर मौजूद ज़िंदगी की संभावना के बारे में बात कर सकते हैं. यह मेरे लिए एक बड़ा बदलाव है.’
क्यूलोज़, माइकल गिलॉन के साथ मिलकर एक सुविधा शुरू करने की योजना बना रहे हैं जिसका नाम है ‘स्पेक्यूलूज़.’ गिलॉन बेल्जियम के खगोल भौतिकी और भू-भौतिकी इंस्टीट्यूट से जुड़े हैं. स्पेक्यूलूज़ दूसरे अत्यंत ठंडे तारों का पता लगाएगा. यह उन रहने योग्य ग्रहों का पता लगाएगा जो अत्यंत ही ठंडे तारों से ढंके हुए हैं.
क्यूलोज़ के मुताबिक, ‘हम यह करना चाहते हैं क्योंकि ये सिर्फ तारे हैं जिनसे हम ग्रह के वातावरण को देखने की उम्मीद कर सकते हैं अगर वहां कोई ट्रांजिट है.’ लेकिन इस सुविधा को शुरू करने से पहले उन्होंने इस बात का पता लगाया है कि छोटे टेलीस्कोप के प्रयोग के अभ्यास से इस तरह के तारों की चाल का पता लगाना अच्छा है.
वर्ष 2013 में उन्होंने कुछ मुट्ठी-भर अत्यंत ठंडे तारों के मकसद से एक योजना शुरू की थी. इस तरह से उन्होंने ट्रैपिस्ट-1 का पता लगाया और छह ग्रहों तक इसकी पहुंच के बारे में जान सके या फिर सात, क्योंकि बैरॉस सोचती हैं कि जो आंकड़े सातवें के लिए हैं वे पर्याप्त हैं और इसके ग़लत होने के चांस भी कम ही हैं.
हालांकि क्यूलोज़ इस संभावना से भी इनकार नहीं करते कि इनके अलावा भी कई ग्रह हो सकते हैं, जिन्हें अब तक देखा ही न गया हो. उनका पता अभी लगाया भी नहीं जा सकता क्योंकि अब तक किसी ट्रांजिट को नहीं देखा गया है. बैरॉस यह भी सोचती हैं कि यह संभव है कि कुछ ग्रह हो सकता है कि एक ही ग्रह पर हों, पर किन्हीं कारणों से उन्हें अभी खोज पाना मुश्किल हो.
इस सब कारणों के बावजूद विज्ञानियों को ट्रैपिस्ट-1 की तरह और तारों के मिलने की उम्मीद है जो ग्रहों की कक्षा में हो सकते हैं. अत्यंत ठंडे और छोटे तारे सौरमंडल में काफी प्रभावी हैं, जिनसे ढेरों नए ग्रहों की खोज के रास्ते मिल सकते हैं.