लगातार चुनावी हार से पस्त पड़ी कांग्रेस को आगामी चुनौतियों के लिए व्यापक बदलाव की ज़रूरत है

जी-23 के बैनर तले असंतुष्ट खेमे के पुराने वफ़ादार नेताओं के साथ सोनिया गांधी से संवाद की कड़ियां भले ही जुड़ गई हों पर लाख टके का सवाल यह है कि बीच का रास्ता निकालने के फार्मूलों से क्या कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर पैदा हुआ संकट टल सकेगा.

/
New Delhi: Congress President Sonia Gandhi with party leader Rahul Gandhi at Rajghat to commemorate the 150th birth anniversary of Mahatma Gandhi after party's Gandhi Sandesh ‘Pad Yatra’ from DPCC to Rajghat, in New Delhi, Wednesday, Oct. 2, 2019. (PTI Photo/Manvender Vashist) (PTI10_2_2019_000262A)(PTI10_2_2019_000319B)

जी-23 के बैनर तले असंतुष्ट खेमे के पुराने वफ़ादार नेताओं के साथ सोनिया गांधी से संवाद की कड़ियां भले ही जुड़ गई हों पर लाख टके का सवाल यह है कि बीच का रास्ता निकालने के फार्मूलों से क्या कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर पैदा हुआ संकट टल सकेगा.

(फोटो: पीटीआई)

विगत कई सालों से केंद्र व राज्यों में लगातार चुनावी हार से पस्त पड़ी कांग्रेस को आगामी चुनौतियों का मुकाबला करने निश्चित ही किसी बहुत बड़ी सर्जरी की जरूरत है. ऐसे हालात में कांग्रेस में फिर से प्राण फूंकने के लिए पीके यानी प्रशांत किशोर का चुनावी रणनीतिक कौशल धरातल पर कितना कारगर हो सकेगा, यह जानने समझने को अभी इंतजार करना होगा.

सबसे बड़ा काम है कि कांग्रेस में नेतृत्व के रवैये से नाखुश पुराने नेताओं का पार्टी की मुख्यधारा में लाना व दिशाहीनता के आगोश में लिपटी पार्टी को देश के युवाओं की पार्टी बनाना. इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले मौजूदा पार्टी कैडर आत्मबल और आंतरिक विश्वास की लौ को फिर से जलाना.

कांग्रेस के समक्ष अखिल भारतीय चुनौती यह भी है कि भाजपा विरोधी तमाम क्षेत्रीय दलों के बीच प्रतिस्पर्धा को मिटाना और चुनावी टकराव से पैदा हुई खाइयों में सामंजस्य बिठाना. यह जरूरी इसलिए है ताकि 2024 के पहले समान वैचारिक सोच के आधार पर एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर भाजपा व संघ परिवार के विस्तार पर नकेल कसने को बड़ी सोच का राष्ट्रीय विकल्प तैयार करना.

कांग्रेस ऐसे विकल्प का नेतृत्व कर सकेगी या नहीं ऐसे सवालों के जवाब आगे चलकर पीके को अपने तरकश से निकालने होंगे.

जी-23 के बैनर तले असंतुष्ट खेमे के पुराने वफादार नेताओं के साथ सोनिया गांधी से संवाद की कड़ियां भले ही जुड़ गई हों पर लाख टके का सवाल यह है कि बीच का रास्ता निकालने के फार्मूलों से क्या कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर पैदा हुआ संकट टल सकेगा.

कांग्रेस में आगामी कुछ महीनों के भीतर नया पार्टी अध्यक्ष चुना जाना है. इस बात पर संशय लगातार गहराता रहा है कि दल की 137 साल पुरानी पार्टी की कमान नेहरू-गांधी परिवार के बाहर के नेता के हाथों में सौंपने से क्या कांग्रेस में विभाजन के जोखिम पर विराम लग सकेगा.

इसके विपरीत यदि यथास्थिति बनाए रखी गई तो कांग्रेस में आमूलचूल बदलाव, आंतरिक लोकतंत्र और सामूहिक नेतृत्व की मांग का झंडा उठाने वाले नेताओं के सब्र का बांध कब तक शांत रखा जा सकेगा.

कांग्रेस पर मुसीबतों का पहाड़ कोई अकस्मात चलकर नहीं आया. राहुल गांधी के दिसंबर 2017 में पार्टी अध्यक्ष पद संभालने के साथ ही संकट के बीज पड़े.

उनकी दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव व मां सोनिया के साथ काम कर चुके पुराने वफादारों व टीम राहुल से केंद्र व राज्यों में पार्टी के फैसलों को लेकर अंदरूनी तकरार बढ़ती चली गई. पार्टी में हर स्तर पर संवादहीनता, आपसी द्वंद्व बढ़ा. नौसिखिया लोगों को बढ़ावा देने से संगठन को मजबूती व विस्तार देने की योजनाओं पर पानी फिरा.

पार्टी में मची उथल-पुथल को कई लोग नेतृत्व संकट के परे हटकर भी देखते हैं. असल सवाल यह भी है कि एक हार के बाद अमूमन गलतियों को सुधारा जाता है व कार्यशैली में बदलाव लाया जाता है.

बहुतों को हैरत है कि लगातार हार के झटकों के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने कोई सबक नहीं सीखा. इसके उलट पार्टी व संगठन को दीर्घकालीन तैयारियों से लैस करने की बातें हवा में झूलती रहीं.

कांग्रेस के खिसकते जनाधार व लगातार चुनावी हार से चिंतित पार्टी कैडर व नेताओं का मानना है कि अब तो झटके के बाद दूसरी हार के इंतजार में बेशकीमती वक्त बैठे-बिठाए जाया कर दिया गया. इसी दौर में भाजपा के लिए मैदान खाली होता गया. आक्रामक हिंदुत्व की चाशनी में संघ परिवार के राष्ट्रवाद का एजेंडा परवान चढ़ता गया.

कांग्रेस के लगातार खोते जनाधार से देश की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता खोने के दंश ने कई तरह की नई मुसीबतें पैदा कर डालीं. जिन राज्यों में सरकारें हैं या कांग्रेस का कुछ वजूद बचा भी है, उन सभी प्रदेशों में शीर्षस्तर की गुटबाजी, कुर्सी और पद पाने की होड़ ने पार्टी और सरकारों के वजूद को किस तरह तार-तार किया, पंजाब की हाल की बुरी हार उसका जीता जागता उदाहरण है.

सबसे बड़ा मुद्दा कांग्रेस को संकट के समय बांधे रखने का था. हाल में पांच राज्यों के चुनावों की बुरी हार खासतौर पर उत्तर प्रदेश में पार्टी का स्वयं का जनाधार 2017 में 6 प्रतिशत के मुकाबले आधे से भी कम हो गया.

कांग्रेस के वोट बैंक के निरंतर रसातल में जाने के घटनाक्रम से उन कार्यकर्ताओं का हौसला पस्त हुआ है जो प्रियंका गांधी की अगुवाई में सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पुनर्जीवन का सपना देख रहे थे.

कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती यह भी खड़ी हुई कि देश ममता बनर्जी, सपा मुखिया अखिलेश यादव समेत बाकी कुछ पार्टियों संसदीय राजनीति में कांग्रेस की जगह लेने को देशव्यापी मुहिम शुरू कर दी. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के बाद पंजाब में कांग्रेस को ध्वस्त कर दिया. उसका काफिला अब गुजरात होते हुए हिमाचल और बाकी राज्यों की और बढ़ने वाला है.

कांग्रेस चुनावी रणनीतियों को लेकर सही मौकों पर सही और सटीक कदम उठाने में लगातार मात खा रही है. सबसे बड़े राज्य यूपी में क्या कांग्रेस ने ऐसी कोई पहल की कि भाजपा को साझा चुनौती देने को सामूहिक रणनीति क्यों नहीं बनी.

प्रियंका और राहुल गांधी के इर्दगिर्द वे नौसिखिए कौन थे जो भाजपा के मजबूत वोट बैंक व धनबल का मुकाबला करने को कांग्रेस को बिना किसी ठोस तैयारी व गठबंधन के अकेले चुनाव में कूदने को विवश कर रहे थे.

यूपी जैसे कठिन प्रदेश को लेकर क्या यह कांग्रेस नेतृत्व की भारी चूक और खोखला आत्मविश्वास नहीं था, जो बिना किसी ज़मीनी संगठन के अकेले चुनावी मैदान में कूदने को विवश हो गई.

ऐसा करने के पहले क्या देश एक इस सबसे बड़े प्रदेश में जिलावार और सीटवार कांग्रेस के बूथ मैनेजमेंट और समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम और चुनाव में मज़बूत टक्कर देने वाले या जिताऊ उम्मीदवारों के बारे में कोई फैसला लिया गया था.

कांग्रेस नेतृत्व की इन्हीं तमाम निष्क्रियताओं की फेहरिस्त दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की लगातार दूसरी पराजय से शुरू हो चुकी थी. राहुल गांधी हार की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर किनाराकसी कर बैठे.

2019 की हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने गहरी समीक्षा का रास्ता तय करने के लिए भी इसी तरह चिंतन शिविर आयोजित करने का इरादा ज़ाहिर किया था. हैरत यह है कि 2019 के बजाय अब 2022 में पांच राज्यों में शिकस्त के बाद चिंतन शिविर की याद आई.

विगत ढाई वर्षों में गंगा-यमुना में काफ़ी पानी बह चुका है. यानी कांग्रेस की घड़ी ढाई तीन बरस पीछे चल रही है. जब तक आपने पूरे देश के लोकसभा क्षेत्रों में सीट दर सीट हार-जीत और भविष्य की योजनाओं के बारे में कोई समीक्षा ही नहीं की जाती तो किस बुनियाद पर 2024 के आम चुनावों की तैयारी शुरू कर सकेगी.

2019 के बाद से सोनिया के पास पार्टी अध्यक्ष की कमान है. खराब स्वास्थ्य और कोरोना काल की बंदिशों के बाद उनकी निष्क्रियता और बढ़ती चली गई. जाहिर है सोनिया गांधी चाहती थी कि कांग्रेस को खड़ा करने और संगठन मजबूत बनाने में राहुल गांधी प्रभावी भूमिका में आएं.

2019 के लोकसभा चुनाव की करारी हार से कांग्रेस में पुरानी पीढ़ी के कई नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए. जाहिर है असंतुष्टों का निशाना शुरू से राहुल गांधी ही रहे. इसकी वजह है कि 2019 की दूसरी हार के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद त्याग दिया.

हैरत यह रही कि इसके बाद भी सभी अहम संगठनात्मक और नीतिगत फैसले या तो परदे के पीछे राहुल गांधी करते रहे हैं या उनकी मर्जी से ही संवेदनशील पदों, राज्यों और संगठन में अहम नियुक्तियां होती रही हैं.

पंजाब में बिना गंभीर रणनीति के कैप्टन अमरिंदर सिंह को कुर्सी से हटा चरणजीत सिंह चन्नी को बिठाना बड़ा विध्वंसकारी साबित हुआ. इतना ही नहीं चंद बरस पहले ही भाजपा से अवतरित हुए नवजोत सिंह सिद्धू को कुछ माह पहले ही राज्य में पार्टी प्रधान बनाकर पुराने स्थापित नेताओं को घर बिठा दिया गया.

भले ही संसद के भीतर और बाहर पीएम मोदी और उनकी तमाम नीतियों की आलोचना को धार देने में राहुल गांधी कि कोशिशें बेजोड़ रहीं, लेकिन ज़मीनी तौर पर कांग्रेस को इसका भी कोई लाभ नहीं मिला.

2024 के आम चुनावों के पहले गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व कर्नाटक के चुनाव हैं. इन राज्यों में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है. इन्हीं चुनौतियों के कारण पूरे देश की निगाहें अब कांग्रेस के अंदरूनी घटनाक्रमों पर केंद्रित हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq