आठ दिसंबर 2021 से ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस और सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन से जुड़ी हुईं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायकों ने विभिन्न मांगों को लेकर बीते सात अप्रैल यानी चार महीनों तक विरोध प्रदर्शन किया था. मांगें मान ली जाने के बाद आंदोलन वापस हो गया है. हालांकि कार्यकर्ताओं ने मांगें पूरी न होने पर इन्होंने दोबारा प्रदर्शन को लेकर चेतावनी भी दी है.
नई दिल्लीः हरियाणा के सोनीपत के जिला आयुक्त कार्यालय और आसपास के अन्य स्थानों पर हाल के चार महीनों में ‘पक्का काम कच्ची नौकरी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी’ और ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ का नारा झूठा है’ की नारेबाजी सुनाई दे रही थी.
आठ दिसंबर 2021 से ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस और सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन से जुड़ी हुईं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं (एडब्ल्यूडब्लयू) और आंगनबाड़ी सहायकों (एडब्ल्यूएच) ने अपनी मांगें मनवाने के लिए बीते सात अप्रैल तक तकरीबन चार महीनों तक विरोध प्रदर्शन किया था.
हरियाणा में इस धरने के आयोजन के दौरान देशभर के एडब्ल्यूडब्ल्यू और एडब्ल्यूएच कार्यकर्ताओं ने दयनीय कामकाजी स्थितियों को उजागर करने के लिए अपनी एकजुटता दिखाई.
ये कार्यकर्ता कठोर मौसम और प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करते हुए धरने पर अडिग रहीं. इस दौरान उन्हें किसान आंदोलन के साथी भाइयों का भी समर्थन मिला.
सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक स्टडीज की विजुअल स्टोरी बोर्ड रिसर्च टीम ने बीते महीने प्रदर्शन कर रहीं कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और उनका समर्थन कर रहे यूनियन से बात की.
आंदोलन में शामिल एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना के दायरे में आने वाले अधिकतर हितधारकों ने इस आंदोलन में भाग लिया. यह बताना आवश्यक है कि विभिन्न संघों से संबद्ध कुछ आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायकों इसमें शामिल नहीं हुए.
सरकार से असहमति होने के बावजूद उनके यूनियन ने उन्हें विरोध प्रदर्शन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी. वहीं कुछ का कहना है कि वे महिलाओं और बच्चों की भलाई के लिए प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए.
इस प्रदर्शन में हिस्सा नहीं लेने वाले एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने कहा, ‘हम काम से भागना नहीं चाहते. सरकार ने हमें इन कार्यों को करने के लिए भुगतान किया है और जब भी जरूरत पड़े, हमें इसके लिए उपलब्ध रहना चाहिए.’
हालांकि, अब ये आंदोलन समाप्त हो गया है और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायक अपने-अपने केंद्र लौट चुकी हैं और सर्वे करने के लिए भी तैयार हैं, लेकिन मांगें पूरी नहीं होने पर इन्होंने दोबारा प्रदर्शन को लेकर चेतावनी भी दी है.
सरकार ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों की कुछ मांगें माने जाने का वादा किया है. सरकार ने दरअसल चार महीनों के मानदेय का भुगतान करना का वादा किया है.
जब हमने इस बारे में कुछ कार्यकर्ताओं से बात की तो उन्होंने कहा, ‘अगर सरकार तय समयसीमा के भीतर अपना वादा पूरा नहीं कर पाई तो हम दोबारा विरोध प्रदर्शन करेंगे. यह अभी खत्म नहीं हुआ है बल्कि हमने इसे विराम दिया है. हमारे अधिकार और चिंताएं मायने रखती हैं.’
मानदेय कम, काम ज्यादा
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायकों वे जमीनी कार्यकर्ता हैं, जो जच्चा और बच्चा के स्वास्थ्य और बच्चे के शुरुआती विकास की दिशा में काम करते हैं. उन्हें मानदेय कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त किया जाता है, लेकिन इसके बावजूद उन पर काम का बोझ बहुत होता है.
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाले मांओं और शून्य से छह वर्ष तक के बच्चों की देखरेख का काम करती हैं. इन्हें घर-घर जाना पड़ता है, जिन क्षेत्रों में ये सर्वे करती हैं, वहां बच्चों के पालन-पोषण के लिए परिजनों से बातचीत करती हैं, बच्चों के समग्र विकास के लिए केंद्र चलाती हैं. साथ ही ये स्वच्छता और टीकाकरण गतिविधियों के लेकर स्थानीय लोगों को जागरूक भी करती हैं.
एकीकृत बाल विकास सेवा योजना दरअसल देश से कुपोषण को मिटाने और महिलाओं और बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास करता है, लेकिन इन मानदेय कार्यकर्ताओं की जरूरतों को पूरा करने में असफल रहा है.
इन कार्यकर्ताओं को लगातार विपरीत परिस्थितियों में कई घंटों तक काम करना पड़ता है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें मामूली मानदेय दिया जाता है.
हालांकि हरियाणा में यह मानदेय सर्वाधिक है, जो आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए 11,000 रुपये प्रति माह और आंगनबाड़ी सहायकों के लिए 6,000 रुपये प्रति माह है. फिर भी धनराशि न्यूनतम वेतन मानदंड पर खरा नहीं उतरती.
मुद्रास्फीति और उच्च लागत को ध्यान में रखते हुए यह मामूली सा मानदेय उनके और उनके परिवार के पालन-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है.
सोनीपत में धरना स्थल पर एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने कहा, ‘आजकल सब कुछ बहुत महंगा है तो इसके अनुरूप हमारा मानदेय क्यों नहीं तय किया गया?’
ऐसा नहीं होने पर अधिकतर आंगनबाड़ी सहायकों को जीवनयापन के लिए अन्य जगह भी काम करना पड़ता है, जिससे उन पर अतिरिक्त दबाव ही पड़ता है. स्थिति उस समय बदतर हो जाती है, जब सरकार समय पर मानदेय नहीं देती.
वहीं, एड-हॉक भुगतान प्रणाली और बैकलॉग लंबे समय से विवाद का विषय रहे हैं. इसे स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन में 1,500 रुपये और आंगनबाड़ी सहायकों के वेतन में 750 रुपये की बढ़ोतरी का वादा किया था.
हालांकि, चार साल बाद भी यह राशि इनको नहीं मिल पाई. इस तरह झूठे वादे और विश्वासघात की भावना ने हालिया आंदोलन को और तेज किया.
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायकों के समक्ष एक अन्य समस्या एकीकृत बाल विकास सेवा योजना के लिए कम आवंटित बजट की भी है.
हाल के वर्षों में लगातार उतार-चढ़ाव देखे गए हैं. 2020-2021 में 20,532 करोड़ रुपये की तुलना में 2021-2022 में गिरावट के साथ योजना के लिए 20,105 करोड़ रुपये आवंटित किए गए.
2022-2023 बजट में इस बजट में मात्र तीन फीसदी की बढ़ोतरी की गई. हालांकि, जमीनी कार्यकर्ताओं के इस व्यापक नेटवर्क के लिए यह पर्याप्त नहीं है.
इस वजह से कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायकों को नौकरी से हटा दिया गया. उदाहरण के लिए हरियाणा में 2021 में 750 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी सहायकों को टर्मिनेशन नोटिस भेजा गया था.
डिजिटलीकरण करने के प्रयास नाकाम
प्रदर्शनकारियों ने ‘पोषण ट्रैकर ऐप’ के जरिये एकीकृत बाल विकास सेवा योजना का डिजिटलीकरण करने के सरकार के प्रयासों को लेकर आपत्ति भी जताई.
सरकार ने वन स्टॉप सॉल्यूशन के रूप में इस ऐप का प्रचार किया था, जिससे आंगनबाड़ी केंद्र (एडब्ल्यूसी) की पूरी गतिविधि, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं (एडब्ल्यूडब्ल्यू) के कामकाज और गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली मांओं और बच्चों के पूर्ण लाभार्थी प्रबंधन का पता लगाया जा सकता है.
हालांकि यह पहल कागज पर तो कारगर लगी, लेकिन डिजिटल असमानता की वजह से यह कारगर साबित नहीं हो पाई.
आमतौर पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सामाजिक-आर्थिक तौर पर कमजोर पृष्ठभूमि से आती हैं, जिनका शैक्षणिक प्रशिक्षण सीमित होता है और अधिकतर के पास स्मार्टफोन तक नहीं होता. इनमें से अधिकतर बेसिक फीचर फोन का इस्तेमाल करती हैं, जिसका इस्तेमाल सिर्फ कॉल करने के लिए ही किया जाता है.
यहां तक कि ऐसे मामले, जहां उनके पास विभिन्न कामों के लिए स्मार्ट मोबाइल होता भी है तो लेकिन वे डिजिटल साक्षरता की कमी की वजह से इसका अच्छे से इस्तेमाल नहीं कर पातीं.
तेजी से बढ़ रहे डिजिटलीकरण के साथ एक अन्य समस्या यह है कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायकों के लिए आमतौर पर इंटरनेट सेवाओं तक पहुंच बनाना उनकी जेब पर भारी पड़ता है. खराब नेटवर्क सेवा और बार-बार बिजली कटौती समस्याओं को और बढ़ाते हैं.
पोषण ट्रैकर पहल को कारगर बनाने के लिए सरकार के लिए इन कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देना और इनकी क्षमता का निर्माण करना जरूरी है. हालांकि, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनके पास काम के लिए बुनियादी सुविधाओं और संसाधनों का पूरा अभाव है.
नियमित पानी की सप्लाई, बिजली की निर्बाध आपूर्ति के अभाव के अलावा कई बार उनके पास बैठने के लिए कुर्सियों के साथ आरामदायक कमरा तक नहीं होता है.
एक कार्यकर्ता ने कहा, ‘पानी की वजह से हमारा केंद्र पूरी तरह से तबाह हो गया है. रजिस्टर, क्रेयॉन, खिलौने और पोस्टर जैसे सभी संसाधन खराब हो गए हैं. मुझे एक कमरा किराए पर लेना होगा और उसके लिए खुद की जेब से भुगतान करना होगा. सरकार हमारी मदद करने को तैयार नहीं है.’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)