छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने परसा कोयला खनन परियोजना के लिए हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंज़ूरी दे दी है, जिसके ख़िलाफ़ आदिवासी और कार्यकर्ता ‘चिपको आंदोलन’ जैसा प्रदर्शन कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि पेड़ों की कटाई और खनन से 700 से अधिक लोगों के विस्थापित होने की संभावना है. इससे आदिवासियों की स्वतंत्रता और आजीविका को ख़तरा है.
नई दिल्लीः खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दे दी.
यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई.
कार्यकर्ताओं ने एक अध्ययन के हवाले से बताया कि वनों की कटाई और खनन से 700 से अधिक लोगों के विस्थापित होने की संभावना होगी और इससे क्षेत्र के आदिवासी समुदायों की स्वतंत्रता और उनकी आजीविका को खतरा है.
परसा कोयला ब्लॉक राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित किया गया है, जबकि अडाणी एंटरप्राइजेज को माइन डेवलेपर और ऑपरेटर की जिम्मेदारी प्रदान की गई है.
विरोध प्रदर्शन के तहत आदिवासी परिवार पेड़ों की सुरक्षा करने के लिए शिफ्टवार तरीके से जंगलों में डेरा डाले हुए हैं. छह अप्रैल को कटाई की मंजूरी मिलने के बाद क्षेत्र की महिलाओं ने पेड़ों को गले लगा लिया, जिसने चिपको आंदोलन की यादों को ताजा कर दिया.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि स्थानीय प्रशासन चाहता है कि यह विरोध जल्द से जल्द खत्म हो जाए.
इन विरोध प्रदर्शनों के संबंध में 10 स्थानीय कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. यह एफआईआर अनुपम दत्ता की शिकायत पर 15 अप्रैल को दर्ज की गई.
धोखाधड़ी, दंगा, गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने, चोट पहुंचाने की मंशा और आपराधिक धमकी से संबंधित धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है. अनुपम दत्ता को लेकर कार्यकर्ताओं का कहना है कि वह अडानी अदाणी समूह के कर्मचारी हैं.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की बिपाशा पॉल ने द वायर को बताया, ‘प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. इस आंदोलन को कुचलने के सभी प्रयास किए जा रहे हैं. 25 अप्रैल को पेड़ों को चिह्नित किया गया और उन्हें रात के समय काटा गया.’
पॉल ने बताया, ‘यह प्रदर्शनकारियों से बचने का प्रयास था, क्योंकि विरोध प्रदर्शन पूरा दिन जारी था.’
कार्यकर्ताओं के मुताबिक, 28 अप्रैल को बिलासपुर हाईकोर्ट में पिछले सुनवाई के दौरान पीठ ने इन प्रदर्शनों और कोयला क्षेत्र अधिनियम 1957 के तहत खनन की मंजूरी से संबंधित विरोध और आरोपों पर संज्ञान लिया था.
स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुसार, स्थानीय अधिकारियों ने खनन गतिविधि के लिए फर्जी तरीके से ग्राम सभाओं की सहमति ली थी और आदिवासियों की सहमति की अनदेखी की गई थी.
प्रदर्शनकारियों ने इन कथित कार्रवाईयों के खिलाफ दिसंबर 2019 में धरना दिया था और पिछले साल रायपुर तक 300 किलोमीटर तक पदयात्रा निकालकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्यपाल अनुसुइया उइके से मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था.
बघेल ने कार्रवाई करने और जांच का आदेश देने का वादा भी किया था, लेकिन अभी तक इसे पूरा नहीं किया गया.
एफआईआर में नामजद हसदेव अरण्य क्षेत्र के निवासी रामलाल ने कहा, ‘हम बीते 10 सालों से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. हमने पिछले साल 75 दिनों तक प्रदर्शन किया था. हमें जो भी आश्वासन दिए गए थे, वे खोखले साबित हुए.’
उन्होंने कहा, ‘हम अपना प्रतिरोध जारी रखेंगे और पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने रात में हमारे पेड़ काट दिए, ये चोरी नहीं तो क्या है. यह आम लोगों के जीवन पर कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता देने के अलावा कुछ भी नहीं है.’
विरोध प्रदर्शनों के बीच राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने छत्तीसगढ़ के मुख्य वन्यजीव वॉर्डन से स्पष्टीकरण मांगा है कि बिना राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (एनबीडब्ल्यूएल) की पूर्व मंजूरी के पारा कोयला ब्लॉक में खनन गतिविधियों के लिए पेड़ों को क्यों काटा गया.
बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ओर से इस संबंध में मुख्य वन्यजीव वॉर्डन को भेजा गया पत्र छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन उस शिकायत पर आधारित था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अधिकारियों को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की पूर्व स्वीकृति नहीं मिली थी.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला ने द वायर को बताया, ‘तथ्य यह है कि पेड़ों की कटाई कांग्रेस सरकार की सबसे बड़ी नाकामी है. फिलहाल इस मामले में कानूनी विकल्प और विरोध साथ-साथ किए जा रहे है.’
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़ सरकार ने परसा पूर्व एवं केंटे बेसिन ब्लॉक को दूसरे चरण के खनन के लिए राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित कर दिया था. पहले चरण का खनन मार्च 2022 में पूरा हो गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान सरकार ने दूसरे चरण के लिए 1136.328 हेक्टेयर जमीन डाइवर्ट करने को मंजूरी दी है, जिसे लेकर छत्तीसगढ़ के कार्यकर्ताओं का दावा है कि इसका मतलब है कि सरगुजा जिले के उदयपुर तहसील के परसा और केंटे गांवों के जंगलों में लगभग 2,42,670 पेड़ों को काटा जाएगा.
बता दें कि छत्तीसगढ़ के कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में हसदेव अरण्य 170,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है. इसमें एक हाथी माइग्रेशन कॉरिडोर भी है. इसमें महानदी की सबसे बड़ी सहायक नदी हसदेव नदी का जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) भी शामिल है.
केंद्र सरकार ने साल 2009 में इस क्षेत्र को खनन के लिए ‘नो-गो ज़ोन’ घोषित किया था, लेकिन इस क्षेत्र में खनन बेरोकटोक जारी है, क्योंकि इस क्षेत्र के लिए नीति को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)