सरकार बनाने के लिए गठबंधनों के ख़िलाफ़ हूं: प्रणब

अपनी नई पुस्तक, 'द कोएलिशन ईयर्स: 1996-2012' में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, पार्टी को एक सरकार गठित करने के लिए अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए. विपक्ष में बैठने से कोई नुकसान नहीं है.

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New Delhi: Former President Pranab Mukherjee with former prime minister Manmohan Singh at the release of his book "The Coalition Years" at a function in New Delhi on Friday. PTI Photo by Atul Yadav (PTI10_13_2017_000129B)

अपनी नई पुस्तक, ‘द कोएलिशन ईयर्स: 1996-2012’ में पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, पार्टी को एक सरकार गठित करने के लिए अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए. विपक्ष में बैठने से कोई नुकसान नहीं है.

New Delhi: Former President Pranab Mukherjee with former prime minister Manmohan Singh at the release of his book "The Coalition Years" at a function in New Delhi on Friday. PTI Photo by Atul Yadav (PTI10_13_2017_000129B)
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द कोएलिशन ईयर्स: 1996-2012’ के मौके पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: ऐसे वक्त जब भाजपा के खिलाफ कांग्रेस एक गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने महज सरकार बनाने की खातिर गठजोड़ किए जाने के खिलाफ दलील दी और जोर देते हुए कहा कि ऐसी कोशिशें कांग्रेस पार्टी की पहचान को सिर्फ कमतर करेंगी.

अपनी नई पुस्तक, ‘द कोएलिशन ईयर्स: 1996 टू 2012’ में मुखर्जी ने कहा है कि उन्होंने 2004 के आम चुनाव में भाजपा को हराने के लिए 2003 में गठबंधन बनाने के कांग्रेस के फैसले का समर्थन नहीं किया था. उन्होंने कहा कि उनका विचार आज भी नहीं बदला है.

राष्ट्रपति बनने से पहले कांग्रेस में लंबी पारी निभाने वाले मुखर्जी ने एकला चलो की रणनीति की हिमायत करते हुए कहा कि कांग्रेस एकमात्र इसी तरीके से अपनी पहचान अक्षुण्ण रख सकती है.

भाजपा को हराने के लिए धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का गठबंधन बनाने के बारे में शिमला सम्मेलन में लिए गए कांग्रेस के फैसले का जिक्र करते हुए मुखर्जी ने कहा कि गठबंधन बनाने के लिए विकल्प खुले रखने का मुद्दा पंचमढ़ी सम्मेलन से निश्चित तौर पर अपना रूख बदलना था. दरअसल, पंचमढ़ी सम्मेलन में हम इस बात पर सहमत हुए थे कि जहां बिल्कुल जरूरी होगा, गठबंधन पर विचार किया जाएगा.

मुखर्जी ने पुस्तक में कहा है, शिमला में सभी प्रतिनिधियों की राय मांगी गई और सुनी गई. सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह सहित उनमें से ज्यादातर इस बात पर सहमत दिखे कि पंचमढ़ी रणनीति को बदलना होगा. मैं अकेला व्यक्ति था, जिसने अलग विचार रखा था क्योंकि मेरा मानना था कि अन्य पार्टियों के साथ मंच या सत्ता साझेदारी करना हमारी पहचान को कमतर कर देगा.

अपने राजनीतिक संस्मरण की कड़ी में यह मुखर्जी की तीसरी पुस्तक है. इससे पहले उन्होंने ‘द इंदिरा इयर्स’ और ‘द ट्रब्युलेंट इयर्स’ लिखा था.

नई पुस्तक का शुक्रवार को एक कार्यक्रम में विमोचन किया गया, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और संप्रग-1 और संप्रग-2 के बड़े घटक दलों के नेता भी शरीक हुए थे.

मुखर्जी ने कहा कि पार्टी को एक सरकार गठित करने के लिए अपनी पहचान नहीं खोनी चाहिए. विपक्ष में बैठने में कोई नुकसान नहीं है. आज भी मैं यही विचार प्रकट रहा हूं.

गौरतलब है कि कांग्रेस ने कई साल स्वतंत्र रूप से शासन करने के बाद चार सितंबर से छह सितंबर 1998 के बीच हुए पंचमढ़ी सम्मेलन में पहली बार गठबंधन की राजनीति की अहमियत को स्वीकार किया था.