ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट का दावा, राज्य सूचना आयोगों की हालत बदतर है.
नई दिल्ली: भ्रष्टाचार एवं पारदर्शिता पर काम करने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (टीआईआई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सूचना के अधिकार कानून को लेकर राज्यों के सूचना आयोगों की स्थिति बदतर है और विभिन्न राज्यों में इस कानून का क्रियान्वयन और निष्पादन का स्तर काफी पीछे है.
भ्रष्टाचार एवं पारदर्शिता पर काम करने वाले संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की हालिया रिपोर्ट के अनुसार कम से कम 16 राज्य सूचना आयोगों ने पिछले दो वित्त वर्षों 2014-15 एवं 2015-16 की वार्षिक रिपोर्ट तक तैयार नहीं की है या रिपोर्ट को राज्य विधानमंडल में नहीं रखा है.
टीआईआई की राज्यों में आरटीआई की स्थिति से संबंधित विस्तृत रपट के अनुसार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा जैसे कई राज्य सूचना आयोग अपनी बेवसाइट पर वार्षिक रपटों का प्रकाशन भी नहीं करते.
सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 251 के अनुसार केंद्रीय सूचना आयोग या राज्य सूचना आयोग को प्रत्येक वर्ष के अंत में इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यान्वयन के संबंध में एक रिपोर्ट बनानी होती है. उसकी एक प्रति केंद्र अथवा राज्य विधानमंडल या सदन के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने कहा, इस कानून के सूचारू रूप से क्रियान्वयन को मॉनिटरिंग एवं रिपोर्टिंग के लिए अधिनियम में ही प्रावधान किए गए हैं, लेकिन वित्त वर्ष 2015-16 तक के आंकड़ों के मुताबिक 12 अक्टूबर 2017 तक कम से कम 16 राज्यों ने पिछले दो वर्षों का वार्षिक प्रतिवेदन या तो बनाया ही नहीं अथवा विधायिका के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया, जबकि अधिनियम में ही वार्षिक रिपोर्ट में दी जाने वाली जानकारी का प्रारूप भी दिया गया है.
उन्होंने कहा कि हालांकि केंंद्रीय सूचना आयोग, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल, महाराष्ट्र समेत पांच अन्य राज्य सूचना आयोग नियमित रूप से अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करते हैं.
टीआईआई के चेयरमैन आईसी श्रीवास्तव ने कहा, विधायिका का संवैधानिक अधिकार है कि विधायिका द्वारा अनुमोदित व्यय पर नियंत्रण रखे. विधायिका को प्रभावी ढंग से अपने इस अधिकार का प्रयोग करने के लिए वार्षिक रिपोर्ट का प्रस्तुत करना अतिआवश्यक है. इस तरह का विलंब राज्य सूचना आयोग पर विधायिका के कमजोर वित्तीय नियंत्रण का क्लासिक उदाहरण है.
आरटीआई कार्यकर्ता एवं उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता डॉ. ब्रमदा शर्मा ने कहा, आरटीआई कानून के प्रावधान के तहत सभी विभागों को अपनी सूचनाओं को स्कैन करवाकर ऑनलाइन डालना चाहिए, लेकिन कोई भी विभाग ऐसा नहीं करता है. अगर विभाग प्रमुख या उसका मंत्री सारी सूचनाएं ऑनलाइन करवा दे तो लोगों को इतनी आरटीआई डालने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.
टीआईआई के कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने कहा, धारा 41 के तहत स्वैच्छिक पारदर्शिता के प्रति सरकारी विभाग अधिक सकारात्मक एवं सक्रिय रहेंगे तो सूचना का अधिकार कानून के प्रयोग की आवश्यकता स्वत: ही कम होती जाएगी.
उन्होंने कहा, प्रावधान की पालना में कई विभागों ने अपनी बेवसाइट पर कुछ सूचनाएं उपलब्ध कराई हैं, परंतु अभी तक की स्थिति संतोषप्रद नहीं है, क्योंकि पहली बात तो आम आदमी से जुड़ी अनेक बातों का इन बेवसाइट्स में समावेश नहीं किया गया और दूसरी ओर इन्हें समय पर अपडेट करने का प्रयास भी नहीं किया जा रहा है.