सुप्रीम कोर्ट का केंद्र से सवाल: क्या महिलाओं के लिए बने राज्य आयोग सच में अस्तित्व में हैं?

निराश्रित विधवाओं द्वारा झेली जा रही मुश्किल स्थितियों से जुड़े मुद्दों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह सवाल उठाया है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

निराश्रित विधवाओं द्वारा झेली जा रही मुश्किल स्थितियों से जुड़े मुद्दों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह सवाल उठाया है.

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नई दिल्ली: देशभर में ऐसी विधवाओं की स्थिति से जुड़े एक मामले पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से पूछा कि क्या इन राज्यों में राज्य महिला आयोग मौजूद नहीं हैं और अगर नहीं हैं तो संबंधित राज्य सरकारों को ऐसे पैनल की स्थापना को सुनिश्चित करने के लिए कहा जाना चाहिए.

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या देश भर में महिलाओं के लिए बने राज्य महिला आयोग सच में अस्तित्व में हैं या नहीं. वृंदावन और ऐसे दूसरे स्थानों पर रह रहीं निराश्रित विधवाओं द्वारा सामना की जाने वाली मुश्किल स्थितियों से जुड़े मुद्दों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह सवाल उठाया.

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा, ‘सॉलीसीटर जनरल को हमें यह भी सूचित करना चाहिए कि क्या वास्तव में सभी राज्यों में राज्य महिला आयोग अस्तित्व में हैं भी या नहीं और अगर नहीं हैं तो राज्य सरकारों को इस बात को सुनिश्चित करने के लिये एक पत्र भेजा जाना चाहिए कि कानून के अनुसार राज्य महिला आयोगों का गठन होना चाहिए.’

केंद्र ने पीठ को बताया कि वह तैयार कार्य योजना पर एक हलफनामा प्रस्तुत करे जिसमें निराश्रित विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिए कई जरूरी कदमों की बात शामिल होगी. इस पीठ में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल हैं.

अदालत ने केंद्र से छह हफ्तों के भीतर जरूरी कदम उठाने को कहा है और मामले की अगली सुनवाई की तारीख छह दिसंबर को तय की है.

विधवा पुनर्विवाह को उम्मीद की किरण की तरह देखते हुए शीर्ष अदालत ने विधवाओं की स्थिति पर शीर्ष अदालत में प्रस्तुत की गयीं रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिये छह सदस्यीय एक समिति का गठन किया था और इस साल 30 नवंबर तक एक साझा कार्य योजना पेश करने को कहा था.