झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार का भविष्य क्या है?

बिहार के कुछ हिस्सों को मिलाकर साल 2000 में अलग झारखंड राज्य बना था. हालांकि अपने गठन के बाद से ही इस राज्य को राजनीतिक स्थिरता नहीं मिल सकी है. मात्र 15 साल में राज्य ने नौ मुख्यमंत्री देखे हैं और तीन बार यहां राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है. वर्तमान में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची में एक पत्थर खदान की लीज़ को लेकर विवादों के केंद्र में आ गए हैं.

Ranchi: Jharkhand Mukti Morcha (JMM) executive president Hemant Soren addresses a press conference ahead of Jharkhand Assembly Elections, in Ranchi, Sunday, Sept. 15, 2019. (PTI Photo) (PTI9_15_2019_000038B)
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन. (फोटोः पीटीआई)

बिहार के कुछ हिस्सों को मिलाकर साल 2000 में अलग झारखंड राज्य बना था. हालांकि अपने गठन के बाद से ही इस राज्य को राजनीतिक स्थिरता नहीं मिल सकी है. मात्र 15 साल में राज्य ने नौ मुख्यमंत्री देखे हैं और तीन बार यहां राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है. वर्तमान में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची में एक पत्थर खदान की लीज़ को लेकर विवादों के केंद्र में आ गए हैं.

Ranchi: Jharkhand Mukti Morcha (JMM) executive president Hemant Soren addresses a press conference ahead of Jharkhand Assembly Elections, in Ranchi, Sunday, Sept. 15, 2019. (PTI Photo) (PTI9_15_2019_000038B)
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन. (फोटोः पीटीआई)

वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य बना था. इसके बाद 2015 तक राजनीतिक अस्थिरता का माहौल रहा. मात्र 15 साल में राज्य ने नौ मुख्यमंत्री देखे. तीन बार राष्ट्रपति शासन भी, लेकिन दिसंबर 2014 में मुख्यमंत्री बने रघुबर दास ने पहली बार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

दिसंबर 2019 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यूपीए की सरकार के पास भी पूर्ण बहुमत है. 81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 41 का आंकड़ा चाहिए, जबकि हेमंत सोरेन के पास 51 का पर्याप्त आंकड़ा है. इसमें 30 विधायक झामुमो के और 18 विधायक कांग्रेस के हैं.

इस पर्याप्त बहुमत के कारण यह मान लिया गया था कि झारखंड अब राजनीतिक अस्थिरता के दौर से निकल चुका है, लेकिन इस संख्या-बल के बावजूद झारखंड में राजनीतिक अनिश्चितता कायम है. इसका सीधा असर राज्य के विकास और सरकार के कार्यों पर देखा जा सकता है.

ताजा विवाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम पर रांची के अनगड़ा में एक पत्थर खदान की लीज को लेकर है. भाजपा ने इसे ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ का मामला बताते हुए राज्यपाल के पास शिकायत की थी.

राज्यपाल रमेश बैस ने फरवरी 2022 में इस शिकायती पत्र को केंद्रीय निर्वाचन आयोग के पास भेज दिया. अब निर्वाचन आयोग ने इस पर अपनी सिफारिश राज्यपाल को भेज दी है. भाजपा नेताओं का दावा है कि इसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता खत्म करने की सिफारिश की गई है.

इसे लेकर झारखंड की सियासी पारा गरम है. सबको राजभवन के आदेश और चुनाव आयोग की संभावित अधिसूचना का इंतजार है. अगर मुख्यमंत्री की विधानसभा सदस्यता खत्म होती है तो उन्हें कुर्सी छोड़नी होगी.

इसके बावजूद पर्याप्त बहुमत होने के कारण यूपीए गठबंधन दोबारा हेमंत सोरेन को अपना नेता चुनकर मुख्यमंत्री बना सकता है. अपनी खाली हुई बरहेट विधानसभा सीट से छह माह के भीतर फिर से निर्वाचित होकर हेमंत सोरेन इस पद पर कायम रह सकते हैं.

हालांकि भाजपा नेताओं का दावा है कि सोरेन को कुछ वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य भी करार दिया जा सकता है. ऐसा होने पर हेमंत सोरेन के लिए दोबारा सीएम बनना मुश्किल होगा. तब वैकल्पिक मुख्यमंत्री के बतौर उनके परिवार के विभिन्न सदस्यों के नामों पर चर्चा हो रही है.

हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन भी विधायक हैं. लेकिन उन पर भी ऐसा ही एक मामला होने के कारण उनके नाम पर सर्वसम्मति बनना मुश्किल होगा. हेमंत सोरेन की भाभी एवं स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन भी विधायक हैं, लेकिन उनके नाम पर भी परिवार में सहमति बनना आसान नहीं.

ऐसे में गुरुजी शिबू सोरेन से लेकर उनकी पत्नी रूपी सोरेन और हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन तक के नामों की चर्चा है. परिवार के बाहर झामुमो के किसी वरिष्ठ विधायक के नाम पर भी दांव लगाया जा सकता है.

इस असमंजस की स्थिति में यूपीए ने अपनी एकजुटता दिखाने के लिए शनिवार (27 अगस्त) की सुबह मुख्यमंत्री आवास पर बैठक की. फिर 42 विधायकों ने बसों पर सवार होकर खूंटी के लतरातू डैम जाकर पिकनिक मनाया. इसमें दुमका से विधायक बसंत सोरेन भी शामिल हुए जिनके बागी होने की अफवाह चल रही थी.

इन 42 विधायकों के अलावा कुछ विधायक बीमार होने के कारण इसमें शामिल नहीं हो सके. कांग्रेस के तीन विधायक डॉ. इरफान अंसारी, विक्सल नमन कोंगाड़ी और राजेश कच्छप बंगाल में एक वाहन से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले में फंसे होने के कारण नहीं आ सके.

दिलचस्प यह है कि इस मामले में राज्यपाल रमेश बैस का पत्र अब तक चुनाव आयोग को नहीं मिला है़. पत्र मिलने के बाद चुनाव आयोग अधिसूचना जारी करेगा़ करके झारखंड विधानसभा को भेजेगा. इसके बाद ही कोई तस्वीर साफ होगी. ऐसा होने तक विभिन्न प्रकार की अटकलबाजी लगाई जा रही है.

बहुमत के लिए संख्या-बल पर्याप्त होने के बावजूद राजनीतिक अस्थिरता का यह माहौल झारखंड के लिए नया नहीं है. विगत पौने तीन साल के भीतर तीन बार राज्य में तख्तापलट का प्रयास हो चुका है.

केंद्रीय एजेंसियों की सक्रियता, मुख्यमंत्री के करीबी लोगों की घेराबंदी, कांग्रेस और झामुमो के कथित असंतुष्ट विधायकों को लालच देकर सरकार गिराने जैसे आरोप लगातार सामने आते रहे हैं.

झारखंड में ‘ऑपरेशन लोटस’ अब एक सामान्य मुहावरा बनता जा रहा है. इसके कारण समुचित जनादेश के बावजूद लगातार राजनीतिक संकट जैसी स्थिति बनी होने के कारण प्रशासनिक महकमे में भी अकर्मण्यता का माहौल साफ दिखता है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)