गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन: अमित शाह और जय शाह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं

लोढ़ा कमेटी के मुताबिक दोनों को पद छोड़ देना चाहिए, लेकिन एसोसिएशन में शाह परिवार का दबदबा कायम है.

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लोढ़ा कमेटी के नियमों के मुताबिक दोनों को अपना पद छोड़ देना चाहिए, बावजूद इसके एसोसिएशन में शाह परिवार का दबदबा कायम है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित शाह (बाएं), एसोसिएशन के उपाध्यक्ष परिमल नाथवानी और जॉइंट सेक्रेटरी जय शाह (दायें) (फोटो साभार: Gujrat Cricket Association)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को कानूनी आधार दिए जाने के एक साल से ज्यादा समय के बाद भी गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित शाह और संयुक्त सचिव (जॉइंट सेक्रेटरी) जय अमित शाह कई अन्यों की तरह अपने पद पर बने हुए हैं, जबकि उनका पद पर रहना उन नियमों के खिलाफ है, जो सालों से क्रिकेट एसोसिएशनों पर राज करनेवाले गिरोहों से क्रिकेट एसोसिएशनों को छुटकारा दिलाने के मकसद से बनाए गए हैं.

सुप्रीम कोर्ट का जुलाई, 2016 में दिया गया आदेश साफ तौर पर यह कहता है कि सारे अधिकारियों को तीन साल का एक कार्यकाल पूरा करने के बाद अपने पदों को तीन साल के अंतराल (कूलिंग ऑफ पीरियड) के लिए छोड़ देना चाहिए.

अमित शाह 2009 से क्रिकेट संघ के पदाधिकारी हैं (2009-2014, उपाध्यक्ष; 2014 से अब तक अध्यक्ष) जबकि उनके बेटे को 2013 में जॉइंट सेक्रेटरी बनाया गया था. गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव पिछले साल ही कराए जाने थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें टाल दिया गया. अगर 2016 में उचित चुनावी प्रक्रिया का पालन किया गया होता, तो अमित शाह और जय शाह उन पदों के लिए योग्य नहीं होते, जिन पर आज वे बने हुए हैं.

अमित शाह के मामले में, अगस्त में उनके राज्यसभा में चुने जाने के बाद अयोग्यता का संभवतः एक और आधार तैयार हो गया है क्योंकि सांसद, ‘लोकसेवक’ की परिभाषा के तहत आते हैं, जिन पर क्रिकेट प्रशासन का हिस्सा बनने से सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया है.

यह पूछे जाने पर कि आखिर जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर बने रहने के लिए अयोग्य हो जाने के बाद भी वे उस पद पर क्यों बने हुए हैं, जय शाह ने ‘द वायर’ को बताया, ‘आपके सवालों से जुड़ा हुआ मसला माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है, जहां इस पर अभी फैसला लिया जाना है. इसलिए, आपने जो मुद्दे उठाए हैं, उन पर चर्चा, बहस या विचार करना पूरी तरह से अनुचित है.’

उन्होंने यह भी कहा, ‘लेकिन मैं अपने कानूनी सलाहकार से इस मसले पर कल संपर्क करूंगा और उनसे सलाह लूंगा. वे मेरी तरफ से आपको उचित जवाब/प्रतिक्रिया देंगे. इसलिए आपसे आग्रह है कि आप मेरे वकील के जवाब/प्रतिक्रिया का इंतजार करें.’

द वायर  द्वारा अमित शाह को भेजे गए सवालों का जवाब अब तक नहीं दिया गया है.

ऐतिहासिक फैसला

ऐसा नहीं है कि इस सवाल पर कि क्या तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लेनेवाला व्यक्ति अपने पद पर बना रह सकता है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कोई अलग मत मत प्रकट किया है; वास्तव में इसका आदेश आज भी प्रभावशाली बना हुआ है. पिछले साल अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल ऑफ इंडिया (बीसीसीआई) के प्रशासन में बदलाव लाने को लेकर लोढ़ा कमेटी की ज्यादातर सिफारिशों को कानूनी तौर पर मान्यता दे दी है.

सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार, सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग के आरोपों के बाद इस तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था. जनवरी, 2016 में कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें बीसीसीआई के प्रशासनिक ढांचे में व्यापक बदलाव लाने की सिफारिश की गई थी.

बीसीसीआई ने इन सुधारों को चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि काफी लंबे समय तक बदलाव का विरोध करनेवाले इस संगठन को पेशेवर रूप देने के लिए ये सुधार जरूरी हैं. एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करना इसका मकसद था, जो क्रिकेट को पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से चलाए, बजाय इसके कि क्रिकेट को कुछ ताकतवर लोगों की दया पर छोड़ दिया जाए, जो सिर्फ अपने प्रभाव के दायरे को बढ़ाने में ही लगे रहते हैं.

पिछले साल 18 जुलाई को बीसीसीआई को लोढ़ा समिति की ज्यादातर सिफारिशों को स्वीकार करने का निर्देश दिया गया था.

कुछ सिफारिशों को लेकर क्रिकेट बोर्ड के सतत विरोध (जिनमें ‘एक राज्य, एक वोट’, 70 साल की आयुसीमा और निश्चित अवकाश अंतराल- कूलिंग पीरियड्स कुछ प्रमुख मुद्दे थे) के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए तत्कालीन प्रशासन को हटा दिया. इनकी जगह प्रशासकों की एक चार सदस्यीय समिति (कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स- सीओए) गठित की गई, जिसे बीसीसीआई द्वारा नए संविधान को अपनाने की प्रक्रिया की निगरानी करनी थी.

इस बीच कई अवरोधों और बोर्ड द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध के बावजूद सुप्रीम कोर्ट दृढ़तापूर्व अपने पक्ष पर अड़ा रहा है.

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क्रिकेटर विराट कोहली के साथ गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित शाह (फाइल फोटो, साभार: Gujrat Cricket Association)

पद छोड़ने का आदेश

इस साल सुप्रीम कोर्ट ने बोर्ड और राज्य एसोसिएशनों के सभी अयोग्य पदाधिकारियों को अपना पद छोड़ देने का आदेश दिया था. इसके मद्देनजर कई इस्तीफे आए और कई प्रमुख राजनीतिज्ञों ने अपने पद छोड़े. इस्तीफा देने वाले सांसदों में शरद पवार (मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन), राजीव शुक्ला (उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन), ज्योतिरादित्य सिंधिया (मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन) और रणजीब बिस्वाल (ओडिशा क्रिकेट एसोसिएशन) के नाम शामिल थे.

लेकिन, अमित शाह अब भी अपने पद पर बने हुए हैं. इसी तरह से झारखंड से राज्यसभा सदस्य परिमल नाथवानी भी हैं, जो गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष हैं और 2010 से (एसोसिएशन के) पदाधिकारी हैं.

गौरतलब यह है कि इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जीसीए के तीन पदाधिकारियों ने इस्तीफा दिया था. लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों का सम्मान करते हुए धीरज जोगानी (ट्रेजरर), केएल कॉन्ट्रैक्टर (उपाध्यक्ष) और राजेश पटेल (सचिव) ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था.

लेकिन, साफ तौर पर अमित शाह, जय अमित शाह और परिमल नाथवानी को यह नहीं लगता है कि वे भी पद छोड़ने के आदेश से बंधे हुए हैं.

तीन पदाधिकारियों के इस्तीफे के बाद नाथवानी ने मीडिया से कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट का एक ‘कठोर’ कदम था और उन्होंने इसे ‘क्रिकेट के खेल के लिए दुर्भाग्यपूर्ण’ करार दिया. इस्तीफे से पहले तक जोगानी, जिन्होंने जीसीए में दो दशकों के आसपास का वक्त बिताया था, ट्रेजरर और सीईओ का संयुक्त पद संभाल रहे थे. वे अब भी जीसीए के सीईओ बने हुए हैं.

गुजरात की स्पष्ट अवज्ञा

ऐसी ढिठाई को किसी भी तरह से न तो नया, न अपवाद कहा जा सकता है. जानकारों के मुताबिक आज भी ऐसे संघों में, जिनमें अयोग्य पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है, वे कठपुतलियों के जरिए अपना नियंत्रण बनाए हुए हैं.

उदाहरण के लिए इस साल ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बावजूद, एमपीसीए में चुनावों की घोषणा नहीं की गई है, जबकि अध्यक्ष, सभापति और छह उपाध्यक्षों की सीटें खाली पड़ी हैं. गुना से कांग्रेस के सांसद अपनी अयोग्यता के बावजूद, बीसीसीआई की वित्तीय समिति में हैं. जबकि नए संविधान के अस्तित्व में आने के बाद इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा.

लेकिन, जीसीए का मामला असाधारण है. इसके शीर्ष पदाधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की साफ तौर पर अवज्ञा कर रहे हैं, जबकि निकट भविष्य में उसके रुख में बदलाव का कोई संकेत नहीं है.

कूलिंग ऑफ पीरियड के नियम के कारण पैदा हुई अयोग्यता के अलावा एक दूसरे कारण से भी अमित शाह की स्थिति खतरे में पड़ सकती है. 2016 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ तौर पर कहा था कि,

‘किन्हीं योग्यताओं की कमी या अयोग्यताएं ये भी सुनिश्चित करती हैं कि किसी अन्य पूर्णकालिक रोजगार में लगे लोग खुद को ऊपरी तौर पर ही शामिल करते हैं. इस तरह से एसोसिएशन और क्रिकेट के खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उतनी नहीं रहती. कई लोकसेवक राज्य एसोसिएशनों में प्रमुख पदों को संभालते हैं, जिससे जनता के प्रति दोनों जिम्मेदारियां ठीक तरीके से निभा पाने में मुश्किल आती है.’

इस बयान को आगे बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,

‘उसे मंत्रियों और लोकसेवकों को राज्य एसोसिएशनों या बीसीसीआई में कोई पद संभालने से रोक लगाने वाली सिफारिश को खारिज करने का कोई ठोस कारण दिखाई नहीं देता है.’

इस फैसले की कुछ व्याख्याओं ने यह मान लिया है कि सिर्फ मंत्री और नौकरशाह ही इस नियम के दायरे में आएंगे, लेकिन सीओए (कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स) द्वारा मांगी गई कानूनी सलाह का यह मत था कि सांसद भी इसके दायरे में आते हैं. चूंकि आखिरी बार जब इस मामले पर सीओए में चर्चा हुई, उस समय अमित शाह सांसद नहीं बने थे और सिर्फ भाजपा के अध्यक्ष थे, इसलिए सूत्रों के मुताबिक इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया गया.

लेकिन इस साल अगस्त में स्थिति बदल गई, जब शाह संसद के ऊपरी सदन के लिए चुन लिए गए.

यह दलील इस बात से और मजबूत हो जाती है कि बीसीसीआई में कोई पद लाभ का पद (ऑफिस ऑफ प्रॉफिट) है. यह याद किया जाना उपयोगी होगा कि 2014 में भाजपा को जीत दिलाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीसीए का अध्यक्ष पद छोड़ दिया था.

जय शाह का उदय

दिलचस्प ये है कि जय शाह ने भी अपने पिता के दबदबे की लहर की सवारी की है. 2013 में बिना किसी मुश्किल के उन्हें जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर बैठा दिया गया. इसके लिए उनसे पहले जॉइंट सेक्रेटरी अशोक साहेबा को इस्तीफा देने के लिए कह दिया गया.

इस आदेश को किसी ने चुनौती नहीं दी और छोटे शाह आसानी से एसोसिएशन में शामिल कर लिए कर गए. हाल के समय में बीसीसीआई के भीतर भी उनका कद बढ़ता गया है. इस साल जून में उन्हें बीसीसीआई के उस सात सदस्यीय पैनल में शामिल किया गया, जिसे लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट के उन मुद्दों का विश्लेषण करने को कहा गया था, जिसे बोर्ड विवादित मानता है.

इस पैनल का गठन सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह साफ किये जाने के करीब एक साल बाद किया गया कि इन सिफारिशों को बीसीसीआई को स्वीकार करना ही होगा. इस पैनल में जय शाह का होना गुजरात क्रिकेट जगत में शाह परिवार के दबदबे का ही नतीजा है.

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रणजी टीम के साथ गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के जॉइंट सेक्रेटरी जय शाह और उपाध्यक्ष परिमल नाथवानी (फोटो साभार: deshgujarat.com)

जीसीए के पूर्व अधिकारी ने द वायर  को बताया कि अमित शाह और उनके सहयोगियों ने एसोसिएशन को अपनी निजी जागीर में तब्दील कर दिया है. चूंकि बड़े शाह का ज्यादातर समय राष्ट्रीय राजनीति में बीतता है, इसलिए वास्तव में एसोसिएशन पर नियंत्रण उनके बेटे का ही है.

जीसीए में शाह परिवार की राजनीतिक ताकत सेंट्रल बोर्ड ऑफ अहमदाबाद (सीबीसीए) के दो तिहाई वोटों पर उनके कब्जे की देन है. सीबीसीए राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के भीतर सबसे मजबूत है.

वास्तव में, जीसीए में अमित शाह का उदय 2009 में सीबीसीए के चुनावों में मिली चुनावी जीत पर सवार होकर हुआ. इसमें विरोधियों को अपने में मिलाने की उनकी क्षमता का भी योगदान रहा. जीसीए के अध्यक्ष और उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी नरहरि अमीन के कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो जाने के बाद वे 2013 में एसोसिएशन की एग्जीक्यूटिव कमेटी का हिस्सा बन गए.

दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम

जीसीए के अध्यक्ष के तौर पर शाह के कार्यकाल में जीसीए ने अहमदाबाद में सरदार पटेल स्टेडियम का पुनर्निर्माण करने के लिए 700 करोड़ रुपए की परियोजना अपने हाथों में ली है. उम्मीद की जा रही है कि पुननिर्माण के बाद यह दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम होगा, जिसकी क्षमता 110,000 होगी.

जानकारों का कहना है कि शाह और नाथवानी की उपस्थिति ने इस परियोजना के लिए फंड जुटाने में मदद की है. ऐसा लगता है कि गुजरात के भाजपा नेताओं में बड़े खेल परिसरों को लेकर जबर्दस्त आकर्षण है. पिछले साल मोदी ने अहमदाबाद में अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र मणिनगर में 550 करोड़ रुपए के मल्टी स्पोर्ट वेन्यू का उद्घाटन किया था. इसका निर्माण उनके मुख्यमंत्री रहते शुरू की गई पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत हुआ.

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में क्रिकेट के मैदान पर गुजरात को कई सफलताएं मिली हैं. राज्य की टीम ने क्रिकेट के सभी फॉर्मेटों में घरेलू ट्राॅफियां जीती है और कप्तान पार्थिव पटेल ने जीसीए द्वारा मुहैया कराई गई सुविधाओं की जमकर तारीफ की है. गुजरात के लिए यह एक उल्लेखनीय बदलाव है, क्योंकि अतीत में गुजरात को ट्राॅफियों का दावेदार नहीं माना जाता था.

लेकिन एक ऐसे समय में जब देश के क्रिकेट प्रशासन को बदलने और उसे पेशेवर बनाने की कवायद चल रही है, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से जीसीए का इनकार राज्य में खेल को पीछे धकेल रहा है.

(द वायर द्वारा अमित शाह को भेजे गए सवालों का जवाब अब तक नहीं दिया गया है. उनका जवाब मिलने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा)

प्रियांश खेल पत्रकार एवं लेखक हैं.

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