ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों में आईपीसी के मामलों में दोषसिद्धि दर अधिक: एनसीआरबी डेटा

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का हालिया डेटा दिखाता है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत दर्ज मामलों में उच्च दोषसिद्धि दर वाले छह राज्यों में कहीं भी भाजपा सत्ता में नहीं है. हालांकि कम दोषसिद्धि दर रिकॉर्ड करने वाले राज्यों में कई भाजपा शासित प्रदेश शामिल हैं.

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(इल्यूस्ट्रेशन: द वायर)

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का हालिया डेटा दिखाता है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत दर्ज मामलों में उच्च दोषसिद्धि दर वाले छह राज्यों में कहीं भी भाजपा सत्ता में नहीं है. हालांकि कम दोषसिद्धि दर रिकॉर्ड करने वाले राज्यों में कई भाजपा शासित प्रदेश शामिल हैं.

(इल्यूस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा हाल ही में जारी क्राइम इन इंडिया, 2021 रिपोर्ट में सामने आया एक दिलचस्प डेटा यह है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत दर्ज मामलों- जिसमें जघन्य अपराध शामिल हैं, के लिए उच्च दोषसिद्धि दर वाले सभी छह राज्यों में कहीं भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में नहीं है.

आईपीसी के तहत अपराधों के लिए दोषसिद्धि दर का डेटा रिपोर्ट के खंड III में शामिल है. 96.7% दोषसिद्धि के साथ मिजोरम शीर्ष पर है, इसके बाद केरल (86.5%), आंध्र प्रदेश (84.7%), तमिलनाडु (73.3%), नगालैंड (72.1%) और तेलंगाना (70.1%) हैं.

उच्च दोषसिद्धि दर से पता चलता है कि राज्यों ने उन आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने, दोषसिद्धि सुनिश्चित करने और पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए हैं.

आंकड़ों से यह भी पता चला है कि केंद्रशासित प्रदेशों में लद्दाख में सर्वाधिक दोषसिद्धि दर 91 फीसदी थी, जबकि दिल्ली में 86.6%. इसके बाद यह दर जम्मू कश्मीर में 77.3%, पुडुचेरी में 74.7% और चंडीगढ़ में 67.9% दर्ज की गई.

कई भाजपा शासित राज्यों में कम रही आईपीसी के तहत दोषसिद्धि दर

दूसरी ओर, कई भाजपा शासित राज्य आईपीसी के तहत दर्ज अपराधों के मामले में कम दोषसिद्धि दर वाले राज्यों में शामिल हैं- जैसे असम (5.6%), अरुणाचल प्रदेश (16.7%), गोवा (19.8%), गुजरात (21.1%) और हिमाचल प्रदेश (25.3 %). अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों, जिनमें दोष सिद्ध होने की दर कम है, उनमें ओडिशा (5.7%), पश्चिम बंगाल (6.4%) और सिक्किम (19.5%) शामिल हैं.

किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में दर्ज होने वाली दोषसिद्धि दर को वहां होने वाले अपराध का आकलन करने के लिए पुलिस या अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा दर्ज कुल मामलों की तुलना में एक बेहतर मानदंड के रूप में भी देखा जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब दर्ज मामलों के आधार पर राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों के बीच अपराध की तुलना की जाती है, तो यह आमतौर पर ईमानदारी से केस दर्ज करने वालों को उन लोगों की तुलना में कमतर दिखाता है जो केस दर्ज न करके या कम मामले दर्ज करके अपनी अपराध दर को कम रखने की कोशिश करते हैं.

एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में आईपीसी के तहत हुए अपराधों के लिए कुल दोषसिद्धि दर 57% थी. रिपोर्ट बताती है कि कुल 11,86,377 मामलों में सुनवाई पूरी हुई, जबकि साल के अंत तक कुल 1,44,44,079 मामले अदालतों में लंबित रहे. इस प्रकार,लंबित मामलों का प्रतिशत 91.2% रहा.

एसएलएल अपराधों में दोषसिद्धि ऊंची, पर आईपीसी के तहत अपराध की सज़ा कम

रिपोर्ट आईपीसी और विशेष और स्थानीय कानूनों (एसएलएल) दोनों के दायरे में आने वाले संज्ञेय अपराधों की बात करती है. भारत में कुल 89 अपराध एसएलएल के अंतर्गत शामिल हैं, जिन्हें राज्य सरकारें एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए तैयार करती हैं. इनमें महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे दहेज निषेध अधिनियम के तहत होने वाले, बच्चों के खिलाफ अपराध किशोर न्याय अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम के दायरे में आने वाले और अनुसूचित जाति/जनजाति के खिलाफ एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत होने वाले मामले शामिल हैं.

एसएलएल में सरकार के खिलाफ अपराध भी शामिल हैं, जो कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (ओएसए) और शस्त्र अधिनियम के साथ-साथ आईटी अधिनियम के तहत आते हैं. साथ ही वित्त और आर्थिक अधिनियम जैसे आबकारी अधिनियम और नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्स्टेंस एक्ट के मामले भी.

आमतौर पर ऐसे मामलों में दोषसिद्धि की दर काफी अधिक होती है और एनसीआरबी के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि आबकारी अधिनियम, जो अवैध रूप से शराब रखने से संबंधित है; ड्रग्स रखने से जुड़े एनडीपीएस अधिनियम और अवैध हथियार रखने से संबद्ध शस्त्र अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में यह 90% से अधिक है.

वहीं, दूसरी तरफ आईपीसी के तहत हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, डकैती, अपहरण, बलात्कार, महिलाओं पर हमले, यौन उत्पीड़न और तेजाब फेंकने जैसे अपराध आते हैं.

सामान्य तौर पर इन्हीं अपराधों को समाज में असुरक्षा पैदा करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है. इन्हीं अपराधों के आधार पर पुलिस के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाता है. हर थाने में थाना प्रभारी (एसएचओ) के कमरे में एक बोर्ड पर साल में आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज हुए मामलों की संख्या का रिकॉर्ड लिखा जाता है. इसके अलावा, पुलिस आयुक्तों या महानिदेशकों द्वारा की जाने वाली साप्ताहिक बैठकों में आईपीसी अपराधों के आधार पर ही अपराध की स्थिति का आकलन किया जाता है. यह रिपोर्ट आमतौर पर उपायुक्त या पुलिस अधीक्षक द्वारा प्रस्तुत की जाती है.

चूंकि पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के प्रदर्शन को उनके अधिकारक्षेत्र में रिपोर्ट हुए अपराध के आधार पर आंका जाता है, न कि हल किए गए मामलों के आधार पर, तो सामान्य प्रवृत्ति ऐसी घटनाओं को कम करके दिखाने की होती है.

एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एक बात जिसे बेहतर ढंग से समझने की जरूरत है वो ये है कि ‘अपराध में वृद्धि’ और ‘पुलिस द्वारा अपराध दर्ज करने में वृद्धि’ स्पष्ट रूप से दो अलग-अलग चीजें हैं.’ यही कारण है कि दोषसिद्धि के आंकड़े न केवल किसी क्षेत्र में दर्ज मामलों का बल्कि पुलिस और अभियोजन द्वारा उन्हें हल करने और दोषियों को सजा सुनिश्चित करने के लिए किए गए प्रयासों को लेकर एक बेहतर दृष्टिकोण देते हैं.

57% हत्याओं, 69% एसिड अटैक और 63% यौन उत्पीड़न के मामलों में कोई दोषी नहीं पाया गया 

रिपोर्ट दिखाती है कि कैसे अधिकांश गंभीर अपराधों में दोषसिद्धि दर बेहद कम रही.

हत्या के मामलों में सजा की दर सिर्फ 42.4% थी. इससे पता चला कि 57% से अधिक हत्या के मामलों में या तो गलत लोगों को गिरफ्तार किया गया था या अगर सही लोगों को गिरफ्तार किया गया था, तो उनके अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे. दोनों ही सूरतों में न ही पीड़ितों को न्याय मिला, न ही उन निर्दोष लोगों को, जिन पर इसके लिए मुकदमा चलाया गया और हिरासत में लिया गया.

इसी तरह, गैर इरादतन हत्या के मामलों में दोषसिद्धि की दर सिर्फ 39.6% थी; हत्या के प्रयास के लिए 36.1%; जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने के लिए 39.9%; अपहरण के मामलों में 22.4% और खतरनाक हथियारों से जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने के मामलों में 16.2%.

इसके अलावा, एसिड अटैक के मामलों में दोषसिद्धि दर 30.8% रही; यौन उत्पीड़न के मामलों में 36.6% और शील भंग करने के इरादे से महिलाओं को गलत तरीके से कैद करने और हमले के मामलों में 31.5%.

गंभीर अपराधों के लंबित मामलों की संख्या अधिक बनी रही

कुल मिलाकर अगर लंबित मामलों की बात करें, तो सामने आता है कि अधिकांश अपराधों के लंबित मामलों की संख्या बहुत अधिक थी. साल 2021 के दौरान हत्या के मामलों में 10,147 मामलों में सुनवाई पूरी हुई और लंबित मामलों का प्रतिशत 95.8% रहा क्योंकि साल के अंत में ऐसे 2,38,315 मामले लंबित थे.

अपहरण के मामलों में भी 96.7% केस लंबित रहे, जहां 9,084 मामलों में सुनवाई पूरी हुई, लेकिन 2,82,875 मामले पूरे नहीं हुए.

इसी प्रकार, एसिड अटैक के मामलों में 26 मामलों में सुनवाई पूरी हुई, लेकिन 1,078 में ऐसा नहीं हुआ, जिसके कारण 97.1 प्रतिशत मामले लंबित रहे. यौन उत्पीड़न के मामलों में 4,610 मामलों में सुनवाई पूरी हुई और 1,04,469 मामले साल के अंत तक लंबित रहे, जो कुल मामलों का 95% है.

जहां उच्च दोषसिद्धि दर, वहां लंबित मामले भी कम

एनसीआरबी के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि जिन राज्यों में आईपीसी अपराधों में दोषसिद्धि की दर अधिक रही, वहां आमतौर पर लंबित मामलों की दर भी कम थी.

कम लंबित मामलों वाले वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश में (58.5%), तेलंगाना में (78.5%) और मिजोरम में 77% शामिल हैं. इनके अलावा सिक्किम (80.4%) और तमिलनाडु (83.4%) भी उन राज्यों में शामिल रहे, जहां अपेक्षाकृत कम केस लंबित हैं.

दूसरी ओर, कई राज्यों में आईपीसी अपराधों के लंबित मामलों की दर 95% से अधिक थी. इनमें बिहार (99.4%), पश्चिम बंगाल (98.8%), मणिपुर (98.7%), ओडिशा (98.7%), अरुणाचल प्रदेश (97.9%), मेघालय (97.3%), हिमाचल प्रदेश (96.9%), असम (96.5%) और उत्तराखंड (96.5%) शामिल हैं.

केंद्र शासित प्रदेशों में आईपीसी के लंबित मामलों की सर्वाधिक संख्या लक्षद्वीप (99.5%) में थी और उसके बाद अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 93.3% मामले लंबित रहे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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