दिल्ली: 1984 दंगे में कार्रवाई करने में विफल रहे सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी को दंडित करने का आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के दंगों से जुड़े एक मामले में किंग्सवे कैंप थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी को सक्षम प्राधिकारी द्वारा उचित दंड देने का आदेश हुए कहा कि दंगों में निर्दोष लोगों की जान चली गई, राष्ट्र अब भी उस पीड़ा से गुज़र रहा है. ऐसे में पुलिसकर्मी को उनकी 79 वर्ष की अवस्था के चलते छूट नहीं दी जा सकती.

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दिल्ली के तिलक विहार में 1984 के दंगों में मारे गए लोगों की याद में बना म्यूजियम. (फोटो: शोम बसु/द वायर)

दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के दंगों से जुड़े एक मामले में किंग्सवे कैंप थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी को सक्षम प्राधिकारी द्वारा उचित दंड देने का आदेश हुए कहा कि दंगों में निर्दोष लोगों की जान चली गई, राष्ट्र अब भी उस पीड़ा से गुज़र रहा है. ऐसे में पुलिसकर्मी को उनकी 79 वर्ष की अवस्था के चलते छूट नहीं दी जा सकती.

दिल्ली के तिलक विहार में 1984 के दंगों में मारे गए लोगों की याद में बना म्यूजियम. (फोटो: शोम बसु/द वायर)

 

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में सक्षम प्राधिकारी को यह स्वतंत्रता दी कि वह शहर के एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी को उचित दंड का आदेश दे जो कथित तौर पर पर्याप्त बल तैनात करने, एहतियातन हिरासत में लेने और हिंसा के दौरान उपद्रवियों पर लगाम लगाने के लिए कार्रवाई करने में विफल रहा.

इसके साथ ही अदालत ने कहा कि दंगों के सालों बाद भी लोग पीड़ा झेल रहे हैं.

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने किंग्स-वे कैंप थाने के तत्कालीन थाना प्रभारी दुर्गा प्रसाद के खिलाफ अनुशासनात्मक प्राधिकरण और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) द्वारा पारित आदेशों को खारिज करते हुए कहा कि दंगों में निर्दोष लोगों की जान चली गई और पुलिस अधिकारी को उसकी 79 वर्ष की अवस्था के चलते छूट नहीं दी जा सकती.

पीठ ने कहा, ‘उनकी उम्र 100 (वर्ष) भी हो सकती है. कृपया उनका कदाचार देखें. निर्दोष लोगों की जान चली गई. राष्ट्र अब भी उस पीड़ा से गुजर रहा है. उस आधार पर आप बच नहीं सकते. उम्र मदद नहीं करेगी.’

पीठ में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद भी शामिल हैं.

अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने उन्हें सिख विरोधी दंगों के दौरान कदाचार का दोषी पाया था. उन्होंने उस आदेश को सीएटी के समक्ष चुनौती दी थी जिसने चुनौती को खारिज कर दिया था. इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.

याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष इस आधार पर आदेशों को चुनौती दी थी कि उन्हें मामले में केवल ‘निर्णय के बाद की सुनवाई’ की अनुमति दी गई थी. ‘निर्णय-पश्चात सुनवाई’ निर्णय या चुनाव करने के बाद न्याय निर्णायक प्राधिकारी द्वारा की जाने वाली सुनवाई है.

आदेशों को रद्द करते हुए, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप गंभीर थे. अदालत ने अनुशासनात्मक प्राधिकरण को ‘असहमति का ताजा नोटिस’ जारी करने की स्वतंत्रता दी और याचिकाकर्ता से चार सप्ताह के भीतर इसका जवाब देने को कहा.

अदालत ने कहा, ‘इसके बाद अनुशासनात्मक प्राधिकारी कानून के अनुसार उचित आदेश पारित करने के लिए स्वतंत्र होंगे. याचिकाकर्ता ने सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त कर ली है और इसलिए सक्षम प्राधिकारी सेवानिवृत्ति की तारीख और पेंशन नियमों को ध्यान में रखते हुए सजा का उचित आदेश पारित करने के लिए स्वतंत्र होगा.’

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