समाजवाद में मुज़फ़्फ़रनगर दंगा पीड़ितों के बच्चे अस्थायी कैंपों में ठंड से मर रहे थे और प्रदेश के कर्ता-धर्ता सैफई में उत्सव मना रहे थे. वहीं, रामराज में बच्चे अस्पताल में मर रहे हैं और प्रदेश का नेतृत्व करोड़ों की दिवाली मना रहा है.
उत्तर प्रदेश समाजवाद के आसमान से गिरकर रामराज के खजूर पर अटक गया है. लेकिन प्रदेश चाहे जहां भी अटका हो, फिलहाल तो रामराज ने समाजवाद को पछाड़ दिया है.
समाजवादी शासन में नेताजी के गृहनगर सैफई में मुंबइया सितारे ज़मीन पर उतारे जाते थे. रामराजी शासन में साक्षात राम-सीता मय लक्ष्मण के अयोध्या में लैंड किए हैं.
समाजवाद में मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में घरों से भगा दिए गए परिवारों के बच्चे कैंपों में ठंड से मर रहे थे और प्रदेश के कर्ता-धर्ता सैफई में उत्सव मना रहे थे. इधर, रामराज में बच्चे अस्पताल में मर रहे हैं और प्रदेश का नेतृत्व करोड़ों की दिवाली मना रहा है.
काशी में गंगाघाट के किनारे जीवन और मृत्यु, दोनों की लीलाएं साथ-साथ चलती हैं. यूपी की सरकार इस लीला को बड़े पैमाने पर करके दिखा रही है. पहले भी दिखाती थी और अब तो ख़ैर रामराज है तो पूछना ही क्या. कहना मुश्किल है कि यूपी में सरकार चल रही है या लीला.
लेकिन रामराज के अयोध्या एपिसोड से हमें थोड़ी निराशा हुई. राम को हेलीकॉप्टर से आना पड़ा. उनको पुष्पक विमान नसीब नहीं हुआ. लगता है पुष्पक का डिज़ाइन भक्तगण अभी खोज नहीं पाए हैं.
खोज पाएंगे, इसकी उम्मीद भी कम ही लगती है क्योंकि भक्तों को पढ़ने-लिखने की आदत ज़्यादा है नहीं और रामराज में पढ़ाई-लिखाई का न तो माहौल है न ही उसकी कोई इज़्ज़त.
पढ़े-लिखों को मूर्ख साबित करना राष्ट्रीय गौरव का विषय बन गया है. ऐसे में विमान की डिज़ाइन खोजने का बेगार कौन करेगा (डिज़ाइन है भी या नहीं यह तो अलग सवाल है).
तो रामराज भले ही आ गया हो लेकिन पुष्पक में बैठने के लिए भगवान को थोड़ा वेट करना पड़ेगा. वैसे अगर पुष्पक विमान नहीं बन पाया तो राम-सीता को रथ पर ही अयोध्या ले आना था. हेलीकॉप्टर तो पश्चिमी सभ्यता की देन है. विश्वगुरु देश के ईश्वर का इस तरह विदेशी वाहनों पर बैठकर आना-जाना ठीक नहीं जान पड़ता.
जो भी हो, अयोध्या में हेलीकॉप्टर से भगवान राम की लैंडिंग के बाद के दृश्य के बारे में बताया जाता है कि वो बड़ा मनोरम था- मुख्यमंत्री भगवान की आरती उतार रहे थे और ऊपर से हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा हो रही थी.
हमने बचपन में रामानंद सागर की रामायण में आसमान से देवताओं को फूल बरसाते देखा था. देखकर मज़ा आता था लेकिन हम वो मज़ा टीवी पर ही ले सकते थे, असल में नहीं.
योगी जी ने कर दिखाया. देवताओं के हाथों न सही, हेलीकॉप्टर से ही सही लेकिन आसमान से पुष्पवर्षा तो हुई. इस प्रकरण से यह भी पता चलता है कि योगी जी बड़े शौकीन मिजाज़ आदमी हैं. रामलीला में हेलीकॉप्टर से फूल बरसाते हैं. अगर शादी करते तो बारातियों को भी हेलीकॉप्टर से ही उतारते.
किसी को शक हो तो यह बता दें कि इस दिवाली पर अयोध्या में पौने दो लाख दीये एक साथ जलाकर जेल में बंद बाबा राम रहीम का कोई रिकॉर्ड भी तोड़ा गया है.
इसके लिए गिनीज़ बुक में अप्लाई किए जाने की ख़बर है. गिनीज़ बुक के सर्टिफिकेट के बिना रामराज की गारंटी नहीं. मज़े की बात यह है कि इन रामराज वालों को ताजमहल भले न बर्दाश्त हो गिनीज़ बुक में नाम के बिना उनका काम नहीं चलता.
गिनीज़ बुक अमेरिका में बनाई जाती है. रामराज पर अमेरिकी मुहर के लिए पौने दो लाख दीये एक साथ जलाए गए. शौकीन लोग बड़े तमाशे करते हैं, चाहे घर में फाका चल रहा हो.
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई चाहे जैसी हो, सरकारी अस्पतालों में इलाज चाहे जैसा हो, रामलीला का सरकारी तमाशा बड़ा होना चाहिए. अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से रामराज नहीं आता है.
रामराज आता है विराट तमाशों से. इस तमाशे को देखकर पान मसाले के एक विज्ञापन की टैगलाइन अचानक याद आ गई- ‘शौक बड़ी चीज़ है!’
हमें गलत न समझा जाए. शौक पूरे करने में कोई बुराई नहीं है. और जब अपनी सरकार हो तो बिल्कुल ही नहीं. किसमें दम है कि योगी सरकार से पूछे कि हेलीकॉप्टर किसके ख़र्चे पर उड़े.
पौने दो लाख दीये किससे पूछकर जलाए गएं. जब मामला शौक का और अपनी इमेज का हो तो पैसे का मुंह नहीं देखा जाता. पैसा तो माया है.
योगीजी से बेहतर इसे कौन समझेगा. वो तो इनका प्रताप है कि इसे अपने इशारों पर घुमाते हैं. वर्ना माया तो लोगों को घुमाती है. यह भी कहते हैं कि माया सच्चाई पर पर्दा डाल देती है. अगर ऐसा है तो फिर अयोध्या में माया के इस तमाशे के पीछे क्या-क्या छिपाया जा रहा है? कोई ज्ञानी हमें बताए.
चलते-चलतेः अयोध्या में रामराज का इतना बड़ा तमाशा हुआ है कि कुछ हिंदी अख़बारों की आंखें चौंधिया गईं. हमने पढ़ा कि त्रेतायुग के बाद पहली बार ऐसी दिवाली मनी है अयोध्या में. हम तबसे यही सोच रहे हैं कि त्रेता युग वाली दिवाली का ‘एविडेंस’ इन संपादकों को कहां से मिला.
संभव है कि सरकारी प्रेस-विज्ञप्ति से मिला हो, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है. इसलिए हम यह मानकर चल रहे हैं कि ये संपादक त्रिकालदर्शी होंगे. रामराज में ऐसे ही संपादक चाहिए जो सच की तरफ पीठ करके त्रिकाल दर्शन करें. बाकियों पर तो मानहानि के मुकदमे चलाए जाएंगे.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं और भोपाल में रहते हैं)