भारत का मंगलयान मिशन ख़त्म, बैटरी और ईंधन ख़त्म होने के बाद संपर्क टूटा

इसरो ने पुष्टि की है कि मंगलयान का ज़मीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया है जिसे बहाल नहीं किया जा सकता और इस तरह इस मिशन की जीवन अवधि पूरी हो गई है. 

(इलस्ट्रेशन साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

इसरो ने पुष्टि की है कि मंगलयान का ज़मीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया है जिसे बहाल नहीं किया जा सकता और इस तरह इस मिशन की जीवन अवधि पूरी हो गई है.

(इलस्ट्रेशन साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

बेंगलुरु: भारत के मंगलयान में प्रोपेलेंट (propellant) खत्म हो गया है और इसकी बैटरी एक सुरक्षित सीमा से अधिक समय तक चलने के बाद खत्म हो गई है. इसके साथ ही देश के पहले अंतर्ग्रहीय मिशन ने आखिरकार अपनी लंबी पारी पूरी कर ली है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सूत्रों ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, ‘अब, कोई ईंधन नहीं बचा है. उपग्रह की बैटरी खत्म हो गई है. संपर्क खत्म हो गया है.’

इसरो ने भी सोमवार को आधिकारिक तौर पर पुष्टि की है कि मंगलयान का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया है जिसे बहाल नहीं किया जा सकता और इस तरह इस मिशन की जीवन अवधि पूरी हो गई है.

इसरो ने इसके बारे में अपडेटेड जानकारी दी जिसने मंगल ग्रह की कक्षा में मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) के आठ साल पूरे होने के अवसर पर 27 सितंबर को एक राष्ट्रीय बैठक आयोजित की थी.

इसरो ने एक बयान में कहा कि यान से अब संपर्क बहाल नहीं किया जा सकता और यह अपना जीवनकाल पूरा कर चुका है.

इसरो पहले एक आसन्न ग्रहण से बचने के लिए यान को एक नई कक्षा में ले जाने का प्रयास कर रहा था. अधिकारियों ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, ‘लेकिन हाल ही में एक के बाद एक ग्रहण लगा, जिनमें से एक ग्रहण तो साढ़े सात घंटे तक चला.’

वहीं, एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘चूंकि उपग्रह बैटरी को केवल एक घंटे और 40 मिनट की ग्रहण अवधि के हिसाब से डिज़ाइन किया गया था, इसलिए एक लंबा ग्रहण लग जाने से बैटरी लगभग समाप्त हो गई.’

इसरो के अधिकारियों ने कहा कि मार्स ऑर्बिटर यान ने लगभग आठ वर्षों तक काम किया, जबकि इसे छह महीने की क्षमता के अनुरूप बनाया गया था.

उन्होंने कहा, ‘इसने अपना काम (बखूबी) किया और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक परिणाम प्राप्त किए.’

साढ़े चार सौ करोड़ रुपये की लागत वाला ‘मार्स ऑर्बिटर मिशन’ (एमओएम) पांच नवंबर, 2013 को पीएसएलवी-सी25 से प्रक्षेपित किया गया था और वैज्ञानिकों ने इस अंतरिक्ष यान को पहले ही प्रयास में 24 सितंबर, 2014 को सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में स्थापित कर दिया था.

इसरो ने कहा, ‘इन आठ वर्षों के दौरान पांच वैज्ञानिक उपकरणों से लैस इस यान ने मंगल ग्रह की सतह की विशेषताओं, इसके आकृति विज्ञान, मंगल ग्रह के वातावरण और इसके बाह्यमंडल पर महत्वपूर्ण वैज्ञानिक समझ का उपहार दिया.’