नई दिल्ली में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अधिक समावेशी और सुलभ क़ानूनी पेशे की वकालत की और छात्रों से इसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने को कहा.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कानून के युवा छात्रों को कानून के किसी पहलू पर विचार करते समय उन्हें अपने भीतर ‘नारीवादी सोच’ को शामिल करने की सलाह दी. जस्टिस चंद्रचूड़ जल्द ही भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं.
नई दिल्ली में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एनएलयू) के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने अधिक समावेशी और सुलभ कानूनी पेशे की वकालत की और छात्रों से इसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने को कहा.
उन्होंने कहा, ‘मैं आपको विशेष रूप से सलाह दूंगा कि आप कानून के किसी पहलू पर विचार करते समय अपने भीतर नारीवादी सोच को समाहित करें.’
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘बेशक, मेरा मानना है कि हम सभी को, जिनमें मैं भी शामिल हूं, कानून को देखने और सामाजिक अनुभवों को लागू करने के मामले में बहुत कुछ सीखना है.’
उन्होंने कहा कि महिला वकीलों को पुरुष-प्रधान पेशे में काम करना चुनौतीपूर्ण लग सकता है, जो अक्सर उनकी चिंताओं और विचारों को समायोजित करने में विफल रहता है, लेकिन समय बदल रहा है और प्रौद्योगिकी ने कानूनी पेशे तक महिलाओं की पहुंच को सुलभ बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है.’
उन्होंने कहा, ‘महामारी की एक बड़ी सीख यह है कि जब हम सुनवाई डिजिटल तरीके से करने लगे, तो अदालत में पेश होने वाली महिला वकीलों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई.’
उन्होंने कहा कि कानून का शासन केवल संविधान या कानून पर निर्भर नहीं है और यह काफी हद तक राजनीतिक संस्कृति और नागरिकों की आदतों पर निर्भर करता है, विशेष रूप से कानून के युवा पेशेवरों के.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘एक तरह से आप सभी हमारी संवैधानिक और लोकतांत्रिक परंपराओं के रखवाले हैं. जब आप इसका हिस्सा बनते हैं तो आपको कानूनी व्यवस्था को अधिक समावेशी और सुलभ बनाने का प्रयास करना चाहिए और यह न्याय के लक्ष्य को आगे बढ़ाने का एक तरीका है.’