देश में जल्दी ख़राब होने वाले कुल कृषि उत्पादों के 11 प्रतिशत का ही भंडारण हो पाता है, 440 अरब रुपये की क़ीमत के उत्पाद होते हैं बर्बाद.
मुंबई: एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में भारत के सबसे बड़े दूध उत्पादक होने तथा फलों एवं सब्जियों के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश होने के बावजूद यहां कुल उत्पादन का करीब 40 से 50 प्रतिशत भाग बर्बाद हो जाता है. बर्बाद होने वाले इन उत्पादों का मूल्य लगभग 440 अरब डॉलर होता है.
उद्योग मंडल एसोचेम के महासचिव डीएस रावत ने एक अध्ययन के हवाले से कहा, भारत के पास करीब 6,300 कोल्ड स्टोरेज की सुविधा मौजूद है जिसकी कुल भंडारण क्षमता तीन करोड़ 1.1 लाख टन की है. इन स्थानों पर देश के कुल जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के करीब 11 प्रतिशत भाग का भंडारण कर पाता है.
अध्ययन में कहा गया है कि इन भंडारण क्षमता का फीसदी भाग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और पंजाब में फैला है. अध्ययन में अनुमान जताया गया है कि वर्ष 2016 में भारत में शीत भंडारण बाजार का मूल्य 167.24 अरब डॉलर का आंका गया था और इसके वर्ष 2020 तक 234.49 अरब डॉलर हो जाने का अनुमान जताया गया है.
पिछले कुछ वर्षों में शीत भंडार श्रृंखला का बाजार निरंतर बढ़ा है और यह रुख वर्ष 2020 तक जारी रहने की उम्मीद है. रिपोर्ट में इस क्षेत्र के धीमे विकास के लिए कई पहलुओं को रेखांकित किया गया है जिनमें से एक अधिक परिचालन लागत है.
रावत ने कहा, पर्याप्त आधारभूत ढांचे की कमी, प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव, पुरानी पड़ चुकी प्रौद्योगिकी एवं अस्थिर बिजली की आपूर्ति जैसे पहलू भारत में शीत श्रृंखला आधारभूत ढांचा के विकास में अन्य प्रमुख बाधाएं हैं.
उन्होंने कहा कि शीत श्रृंखला की स्थापना में आधारभूत ढांचा की लागत अधिक आती है.
अध्ययन में कहा गया है कि मौजूदा समय में खुदरा शीत श्रृंखला अधिक प्रभावी होने के लिए जूझ रही है लेकिन प्रौद्योगिकी की मदद से सुधार की काफी गुंजाइश मौजूद है.