जम्मू कश्मीर: शिकारे की मरम्मत पर प्रतिबंध ने मालिकों के सामने खड़ा किया आजीविका का संकट

जम्मू कश्मीर सरकार ने 1988 में प्रदूषण संबंधी चिंताओं के कारण नए शिकारे के निर्माण और मौजूदा शिकारे की मरम्मत व नवीनीकरण पर प्रतिबंध लगा दिया था. 2009 में अधिकारियों द्वारा जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट को यह बताने के बाद कि शिकारा श्रीनगर के जल प्रदूषण का प्राथमिक स्रोत हैं, प्रतिबंध को फिर से लागू कर दिया गया था.

Srinagar: Tourists embark on a shikara ride in an empty Dal Lake in Srinagar, Thursday, Oct. 10, 2019. The government has withdrawn its advisory, issued on 2 August, 2019 asking tourists in the Valley to leave. (PTI Photo/S. Irfan)(PTI10_10_2019_000147B)

जम्मू कश्मीर सरकार ने 1988 में प्रदूषण संबंधी चिंताओं के कारण नए शिकारे के निर्माण और मौजूदा शिकारे की मरम्मत व नवीनीकरण पर प्रतिबंध लगा दिया था. 2009 में अधिकारियों द्वारा जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट को यह बताने के बाद कि शिकारा श्रीनगर के जल प्रदूषण का प्राथमिक स्रोत हैं, प्रतिबंध को फिर से लागू कर दिया गया था.

कश्मीर में एक क्षतिग्रस्त शिकारा. (फोटो: समीर हुसैन)

श्रीनगर: कश्मीरी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाने वाली शिकारा (Houseboat) को चलाने वाले परिवारों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है. ऐसा उस कानून के चलते हो रहा है जो शिकारा की मरम्मत करने पर पाबंदी लगाता है.

कश्मीर हाउसबोट ओनर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता गुलाम कादिर गासी ने द वायर को बताया कि एक समय एसोसिएशन के साथ 250 हाउसबोट पंजीबद्ध थीं, अब 76 ही बची हैं.

1988 में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाले वाली सरकार ने प्रदूषण संबंधी चिंताओं के कारण कश्मीर में नए शिकारा के निर्माण और मौजूदा शिकारा की मरम्मत व नवीनीकरण पर प्रतिबंध लगा दिया था.

सरकार डल झील, निगीन झील और झेलम नदी में इनकी संख्या कम करना चाहती थी. चिनार बाग सहित ये तीन स्थान, हजारों शिकारा का डेरा थे.

2009 में अधिकारियों द्वारा जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट को यह बताने के बाद कि शिकारा,  श्रीनगर के जल प्रदूषण का प्राथमिक स्रोत हैं, प्रतिबंध को फिर से लागू कर दिया गया था.

इसने उन लोगों के लिए अपने शिकारे की मरम्मत करना एक कठिन कार्य हो गया, जिनका शिकारा अभी चालू है.

एक शिकारे के मालिक 31 वर्षीय मोहम्मद यूनिस ने द वायर को बताया, ‘जब झील और अन्य जल निकायों के आसपास सभी निर्माण प्रतिबंधित थे, तो अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वे शिकारा लाइसेंस का नवीनीकरण न करें. इससे विशेष अनुमति के बिना मरम्मत करना असंभव हो गया. अनुमति केवल एक लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद ही प्राप्त की जा सकती थी, जिसमें कम ही सफलती मिलती है.’

इसी के चलते वे लोग जिनकी आजीविका का एकमात्र साधन शिकारा है, संकट में हैं.

12 नवंबर को झेलम नदी में चलने वाले सुहैल अहमद के शिकारे में दरार पड़ गई और वह पलट गया. उस समय उसमें छह पर्यटक मौजूद थे, जिन्हें उन्होंने बचा लिया.

अहमद कहते हैं, ‘हमारा प्रिंस नामक शिकारा झेलम नदी पर सबसे पुराना और सबसे लंबा था. इसमें छह बेडरूम थे. हमने पर्यटकों को तो बचा लिया, लेकिन अपना 50 साल पुराना शिकारा खो दिया, जो हमारी आजीविका का एकमात्र स्रोत था.’

अगले दिन नदी पुलिस ने शिकारे को पानी से निकाल लिया. उन्होंने इसे पानी से बाहर निकालने के लिए लगभग 3 लाख रुपये खर्च करने का दावा किया, लेकिन उनके प्रयास व्यर्थ रहे.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पास अब शिकारे को नष्ट करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. हमें सरकार से कोई मुआवजा नहीं मिला और न ही किसी अधिकारी ने हमसे यह जानने के लिए संपर्क किया कि हमें किसी मदद की जरूरत है या नहीं. पर्यटन विभाग से हमें केवल एक ही सहायता मिली कि नाव से पानी निकालने के लिए दो वाटर पंप दिए. यह हमारा दूसरा शिकारा है, जो पिछले दो सालों में डूब गया.’

हाउसबोट ओनर्स एसोसिएशन के प्रवक्ता गुलाम कादिर गासी का कहना है कि आजीविका के वैकल्पिक अवसर प्रदान करने में भी प्रशासन की ओर से ध्यान नहीं दिया गया है.

उन्होंने द वायर को बताया कि शिकारा बनाने और मरम्मत करने में इस्तेमाल होने वाली लकड़ी महंगी हो गई है. रियायती दरों पर इमारती लकड़ी जारी करने के लिए पर्यटन विभाग से किए गए अनुरोधों का कोई परिणाम नहीं निकला.

यही कारण है कि शिकारे को आसानी से ठीक करने का कोई तरीका न होने के चलते उनके डूबने का खतरा रहता है.

एक शिकारे का टूटा हुआ ढांचा. (फोटो: समीर हुसैन)

एक अन्य शिकारा मालिक यूनुस अहमद ने बताया कि शिकारे का आधार क्षतिग्रस्त होने के चलते पिछले साल कई डल झील और झेलम नदी में डूब गए.

उन्होंने कहा, ‘शिकारे के आधार में मामूली दरारों की मरम्मत की जा सकती है, लेकिन झेलम नदी में कोई ऐसी जगह (बोट यार्ड) नहीं है, जहां शिकारे को रखा जा सके. सर्दियों के मौसम में कई पर्यटक इनमें रहना पसंद करते हैं. अगर इनमें पर्यटकों की मौत हो जाती है तो कौन जिम्मेदार होगा? कुछ महीने पहले पर्यटन विभाग ने हमें कुछ लकड़ी प्रदान की थी. लेकिन हम अपनी नावों का नवीनीकरण कहां और कैसे करें?’

22 मई 2021 को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जम्मू कश्मीर में शिकारे के नवीनीकरण की अनुमति देने के लिए एक नई नीति की घोषणा की, जिसने इसके मालिकों को कुछ आशा दी है. हालांकि, उन्होंने बताया कि अभी तक धरातल पर कुछ भी नहीं हुआ है.

इनका कहना है कि अगर किसी को अपने शिकारे का नवीनीकरण करने की अनुमति भी दी जाती है, तो प्रक्रिया में शामिल लंबी और व्यस्त कागजी कार्रवाई में एक साल या उससे अधिक समय लग सकता है.

द वायर से बात करते हुए कश्मीर पर्यटन विभाग के निदेशक फ़ज़ लुल हसीब ने कहा कि विभाग द्वारा 3 दिसंबर को पुनर्वास नीति की घोषणा करने की उम्मीद है. संभागीय आयुक्त ने शिकारा मालिकों के पुनर्वास के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई है .

1988 में शिकारे के नवीनीकरण पर प्रतिबंध के आदेश के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने पर्यटन सचिव और पर्यटन निदेशक की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है और उनके निर्णय को अनुमोदन के लिए उच्च न्यायालय को भेजा जाएगा.

इससे पहले हाईकोर्ट ने कहा है कि झीलों को संरक्षित किया जाना चाहिए और उनके पास कोई निर्माण और नवीनीकरण नहीं होना चाहिए.

(इरशाद हुसैन और मुबाशिर नाइक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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