सुप्रीम कोर्ट के 2001 के फैसले में कहा गया था कि यदि किसी कारण से कोई फैसला छह महीने के अंदर नहीं सुनाया जाता है, तब विषय में कोई भी पक्ष मामला वापस लेने के अनुरोध के साथ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष अर्ज़ी देने का हक़दार होगा और नए सिरे से दलील के लिए किसी अन्य पीठ को इसे सौंपा जा सकता है.
नयी दिल्ली: नवंबर 2021 में फैसला सुरक्षित रखने के बावजूद एक आपराधिक अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्णय नहीं सुनाने को लेकर एक याचिका की सुनवाई करने के लिए सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है.
शीर्ष न्यायालय द्वारा 2001 में दिए गए एक फैसले का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि आदेश सुरक्षित रखे जाने के बाद उच्च न्यायालयों द्वारा फैसले सुनाए जाने के सिलसिले में दिशानिर्देश निर्धारित किया गया था.
सुप्रीम कोर्ट के 2001 के फैसले में कहा गया था कि यदि किसी कारण से कोई फैसला छह महीने के अंदर नहीं सुनाया जाता है, तब विषय में कोई भी पक्ष मामला वापस लेने के अनुरोध के साथ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष अर्जी देने का हकदार होगा और नए सिरे से दलील के लिए किसी अन्य पीठ को इसे सौंपा जा सकता है.
यह मामला जस्टिस अनिरूद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया, जिन्होंने याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है.
पीठ ने 15 दिसंबर को जारी अपने आदेश में कहा, ‘नोटिस जारी किया जाए, जिसका जवाब छह हफ्तों में देना होगा.’
हत्या के एक मामले में एक निचली अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए और उम्रकैद की सजा पाने वाले दो व्यक्तियों ने शीर्ष न्यायालय में यह याचिका दायर की है.
अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा के जरिये दायर याचिका में कहा गया है, ‘यह याचिका न सिर्फ प्रशासनिक स्तर पर, बल्कि न्यायिक पहलू पर हाईकोर्ट के कामकाज के सिलसिले में कानून का मूलभूत प्रश्न उठाता है.’
इसमें कहा गया है कि जैसा कि 2001 के फैसले में निर्धारित किया गया था और विशेष रूप से तथ्य यह है कि इस मामले में फैसला सुरक्षित रखने की तारीख से एक वर्ष समाप्त हो गया है. हाईकोर्ट को किसी अन्य पीठ के समक्ष नए तर्कों के लिए आपराधिक अपील को फिर से सूचीबद्ध करना चाहिए था.