कोर्ट ने कहा कि मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल मामले को राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए बाध्य हैं, वे फाइलें लटका नहीं सकते.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल के बीच केंद्र शासित इस प्रदेश के प्रशासनिक मामलों में प्रधानता को लेकर चल रहे विवाद में गुरुवार को सुनवाई शुरू की. न्यायालय ने इस दौरान टिप्पणी की कि संविधान की व्यवस्था पहली नजर में उपराज्यपाल के पक्ष में है.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि संविधान का अनुच्छेद 239 एए दिल्ली के संबंध में विशिष्ट है और पहली नजर में ऐसा लगता है कि दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों से इतर दिल्ली के उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं.
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं. संविधान पीठ दिल्ली उच्च न्यायालय के 4 अगस्त, 2016 के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार की अपील पर सुनवाई कर रही है.
उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली राज्य नहीं है और इसलिए उपराज्यपाल ही इसके प्रशासनिक मुखिया हैं. शीर्ष अदालत ने 15 फरवरी को इस मामले को संविधान पीठ को सौंपा था.
मंत्रियों को गिड़गिड़ाना पड़ता है
आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि उसके मंत्रियों को नौकरशाहों की राय प्राप्त करने के लिए उनके सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है और अनुच्छेद 239 एए के प्रावधान की वजह से बाबू उन्हें विभागों के प्रमुख के रूप में नहीं मानते हैं. संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से बहस शुरू करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम से अनुच्छेद 239 एए के बारे में अनेक सवाल पूछे.
पीठ ने इस दौरान कहा, दिल्ली के लिए अनुच्छेद 239 एए विशिष्ट है. पहली नजर में ऐसा लगता है कि यह अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में उपराज्यपाल को ज्यादा अधिकार देता है. संविधान के अंतर्गत दिल्ली में उपराज्यपाल को प्रधानता प्राप्त है.
सुब्रमण्यम ने कहा कि उपराज्यपाल अनेक प्रशासनिक फैसले ले रहे हैं और ऐसी स्थित में दिल्ली में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार के लिए सांविधानिक जनादेश पूरा करने के लिए अनुच्छेद 239 एए की समरसतापूर्ण व्याख्या की आवश्यकता है.
एलजी फाइलें दबाकर किसी योजना को व्यर्थ नहीं कर सकते
उन्होंने कहा, यहां एक लाख 14 हजार से अधिक रिक्तियां हैं परंतु मैं इन्हें भर नहीं सकता और इसके लिए उपराज्यपाल से अनुमति लेनी होगी. मैं सीवर में होने वाली मौतों को रोक नहीं सकता. यह शासन को बाधित कर रहा है. उपराज्यपाल अनुच्छेद 239 एए 4 में प्रदत्त अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए फाइलें दबाकर दैनिक शासन कार्य को व्यर्थ नहीं कर सकते.
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उपराज्यपाल फाइलें दबाकर किसी योजना को व्यर्थ नहीं कर सकते. इसकी बजाय मतभेद होने की स्थिति में वह अनुच्छेद 239 एए के अंतर्गत मामले को राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए बाध्य हैं.
सुब्रमण्यम ने कहा कि दिल्ली सरकार संसद और उसके अधिकारों की प्रधानता स्वीकार करती है परंतु संविधान में संशोधन करके अनुच्छेद 239 एए को शामिल करने के पीछे मंशा लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चुनकर जनता को आवाज प्रदान करना थी.
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 239 एए 4 के प्रावधान दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार के सांविधानिक जनादेश को निष्फल नहीं कर सकते.
केंद्र दिल्ली में निर्वाचित सरकार को पंगु बना रहा है
अरविंद केजरीवाल सरकार ने यह भी दावा किया कि केंद्र सरकार उपराज्यपाल के माध्यम से दिल्ली में निर्वाचित सरकार के कार्यकारी कामकाज को पंगु बना रही है.
सुब्रमण्यम ने कहा, मैं चाहता हूं कि अनुच्छेद 239 एए 4 को तर्कसंगत बनाया जाए जो योजना के अनुरूप हो जिससे दोनों सह-अस्तित्व में रह सकें जैसा कि संविधान संशोधन के पीछे मंशा थी.
इस पर पीठ ने कहा कि इसमें तीन बिंदु हैं- कार्यकारी कार्रवाई, किसी मुद्दे पर मतभेद और ऐसी राय की वैधता, इन पर विचार करने की आवश्यकता है.
केजरीवाल को सकारात्मक नतीजे की उम्मीद
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच चल रहे मामले में कुछ सकारात्मक बातें निकलकर आ सकती हैं. आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा कि अगर दिल्ली सरकार को भ्रष्टाचार निरोधक शाखा एसीबी पर नियंत्रण वापस प्राप्त हो जाए तो वह ठीक वैसा ही करिश्मा कर दिखाएंगे जो उन्होंने 49 दिन की सरकार के कार्यकाल के दौरान दिखाया था.
उन्होंने कहा, उच्चतम न्यायालय मामले की सुनवाई कर रहा है. ईश्वर हमारे साथ है. साथ ही उन्होंने कहा कि मामले में कुछ सकारात्मक नतीजे निकल सकते हैं.