घटना 19 फरवरी को सिद्धार्थनगर ज़िले के हिमालयन इवेंजेलिकल मिशन में हुई. पादरी के अनुसार, 50-60 लोगों के गुट ने चर्च में तोड़फोड़ करते हुए प्रार्थना करने वालों से मारपीट की. उनका कहना है कि घटना के बाद से वे सब डर के साये में जी रहे हैं क्योंकि सिद्धार्थनगर पुलिस ने बजरंग दल के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया है.
नई दिल्ली: बजरंग दल कार्यकर्ताओं के एक गुट ने 19 फरवरी को उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले में कथित तौर पर एक चर्च में तोडफोड़ की, प्रार्थना करने आए लोगों पर हमला किया और उन्हें डराया-धमकाया. उनका दावा था कि चर्च में ‘जबरन धर्मांतरण’ कराया जा रहा था.
यह घटना हिमालयन इवेंजेलिकल मिशन में हुई.
पादरी सत्येन बिश्वकर्मा ने द वायर को बताया, ’50-60 लोगों का एक समूह 19 फरवरी को लाठी-डंडों के साथ आया और हमारी प्रार्थना में भिग्न डाल दिया. उन्हें मुझे और मेरे बेटे को यह आरोप लगाते हुए कि हम चर्च में हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराकर उन्हें ईसाई बना रहे थे, हमें रॉड से पीटा.’
पादरी ने कहा कि वे और उनका परिवार लगातार डर में जी रहे हैं क्योंकि सिद्धार्थनगर पुलिस ने बजरंग दल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया है.
5 मार्च तक पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी.
दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाली एक महिला ने बजरंग दल द्वारा कथित तौर पर धमकी दिए जाने के चलते नाम न छापने का अनुरोध करते हुए बताया कि उनके साथ उस समूह में शामिल लोगों ने मारपीट थी. उन्होंने आगे जोड़ा, ‘उन्होंने मुझे चर्च वापस न आने की चेतावनी दी है.’
उन्होंने कहा, ‘पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की? ‘ जब वे (चर्च में) आए, पुलिस ने सब कुछ देखा लेकिन हस्तक्षेप नहीं किया. उन्हें गुट (बजरंग दल) का समर्थन करते और उनसे जाने के लिए कहते हुए देखा गया था.’
द वायर द्वारा खंगाले गए फोटो और वीडियो दिखाते हैं कि कैसे बजरंग दल द्वारा चर्च में तोड़फोड़ की गई थी.
गौरतलब है कि विश्व हिंदू परिषद (विहिप) से संबद्ध बजरंग दल को विहिप के साथ ही 2018 में यूएस सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी द्वारा ‘उग्रवादी धार्मिक संगठन’ माना गया था.
दलित समुदाय से आने वाले कई स्थानीय लोग, जो हर रविवार को प्रार्थना के लिए चर्च जाते हैं, ने द वायर को बताया कि वे ईसाई धर्म का पालन नहीं करते हैं लेकिन केवल प्रार्थना करने के लिए चर्च जाते हैं. हालांकि, बजरंग दल का मानना है कि पादरी उनका धर्मांतरण करा रहे थे.
2018 में भी इसी तरह की एक घटना हुई थी, जब यूपी पुलिस ने चर्च पर लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का आरोप लगाते हुए पादरी से प्रार्थना रोकने को कहा था. पादरी ने तब इस उत्पीड़न को रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था, ‘सिद्धार्थनगर के पुलिस अधीक्षक यह सुनिश्चित करेंगे कि ईसाई समुदाय के पूजा स्थल में कोई हस्तक्षेप न हो.’
हालांकि, हालिया घटना के बाद पादरी ने कहा, ‘अब हम उसी हालात में हैं. हमारे पास कोर्ट का आदेश है, लेकिन हम अभी भी बजरंग दल के डर में जी रहे हैं.’
उन्होंने दावा किया कि बजरंग दल ने दोबारा प्रार्थना करने की स्थिति में बंदूक (6 राउंड रिवॉल्वर) के साथ आने की चेतावनी दी है.
यह घटना उसी दिन हुई जब नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर ईसाई समुदाय के धार्मिक नेताओं के नेतृत्व में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया गया था. विरोध प्रदर्शन में देश भर में ईसाइयों के खिलाफ घृणा अपराधों और भेदभाव की रिपोर्ट में खतरनाक वृद्धि के बारे में चिंता व्यक्त की गई.
घटना की प्रत्यक्षदर्शी और चर्च को मानने वाली एक और महिला ने 3 मार्च को द वायर को बताया, ‘मेरे पति, जो एक कैंसर रोगी हैं, उन्हें बेरहमी से रॉड से पीटा गया था. जब मैंने बीच-बचाव किया, उन्होंने मुझ पर भी हमला कर दिया. गुंडे ‘जय श्री राम’ के नारे लगा रहे थे. एक युवती का हाथ भी टूट गया. चर्च को तब से ही बंद कर दिया गया है और हम बजरंग दल के गुंडों के लगातार डर में रहते हैं.’
पुलिस अधीक्षक अमित कुमार आनंद ने 4 मार्च को द वायर को बताया कि वह इस मामले को देखेंगे और चर्च को सहायता प्रदान करेंगे.
पादरी के बेटे अविषेक ने द वायर को बताया है कि जब पुलिस के एफआईआर दर्ज करने से इनकार के बाद उन्होंने यूपी सरकार के ऑनलाइन पोर्टल ‘जनसुनवाई’ में शिकायत दर्ज करवाई है. उन्होंने अपनी शिकायत में राज्य सरकार से चर्च को सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की है, ताकि वे फिर से प्रार्थना शुरू कर सकें.
प्राप्त समाचार के अनुसार, 5 मार्च को चर्च में फिर प्रार्थना शुरू हुई. एसपी ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए दो पुलिसकर्मी दिए हैं, लेकिन अब तक पिछले हमले कोई लेकर एफआईआर दर्ज नहीं हुई है.
बता दें कि इससे पहले 26 फरवरी को गाजियाबाद में एक और घटना हुई थी जहां पादरी संतोष और उनकी पत्नी जीजी को लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
ईसाई कार्यकर्ता मीनाक्षी सिंह ने इस बात से इनकार किया कि पादरी लोगों को धर्मांतरित करा रहे थे. उन्होंने यह भी कहा कि गुंडों ने पादरी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस पर दबाव डाला था.
यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम द्वारा जून 2022 में जारी एक बयान के अनुसार, उत्तर प्रदेश में चर्चों और ईसाइयों पर सबसे अधिक हमले हुए.
हालात पर करीब से नजर रखे यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष माइकल विलियम ने 5 मार्च को द वायर को बताया, ‘समय आ गया है कि हमारे प्रधानमंत्री भारतीय ईसाइयों के साथ हो रही हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं. जिस दर से इस तरह के अत्याचार हो रहे हैं, वह अभूतपूर्व गति पकड़ रही है. जब तक मोदी जी और अमित शाह जी कार्रवाई नहीं करेंगे, जमीन पर स्थिति भयानक हो जाएगी. योगी आदित्यनाथ को भी अपने राज्य में इस तरह की बढ़ती हिंसा के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. पुलिस और अन्य सुरक्षाकर्मियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.’
गौरतलब है कि बीते 4 मार्च को अखिल भारतीय और केंद्रीय सेवाओं के पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री मोदी को एक खुला पत्र लिखकर ईसाइयों के खिलाफ भेदभाव की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की थी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)