‘राजनीति में भक्ति या नायक पूजा पतन और अंतत: तानाशाही का सीधा रास्ता है’

डॉ. आंबेडकर ने संविधान के पहले मसौदे को संविधान सभा में पेश करते हुए कहा था कि 'नवजात प्रजातंत्र के लिए संभव है कि वह आवरण प्रजातंत्र का बनाए रखे, परंतु वास्तव में तानाशाही हो जाए.' जब मोदी की चुनावी जीत को लोकतंत्र, उनसे सवाल या मतभेद रखने वालों को लोकतंत्र का दुश्मन बताया जाता है, तब डॉ. आंबेडकर की चेतावनी सही साबित होती लगती है.

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(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

डॉ. आंबेडकर ने संविधान के पहले मसौदे को संविधान सभा में पेश करते हुए कहा था कि ‘नवजात प्रजातंत्र के लिए संभव है कि वह आवरण प्रजातंत्र का बनाए रखे, परंतु वास्तव में तानाशाही हो जाए.’ जब मोदी की चुनावी जीत को लोकतंत्र, उनसे सवाल या मतभेद रखने वालों को लोकतंत्र का दुश्मन बताया जाता है, तब डॉ. आंबेडकर की चेतावनी सही साबित होती लगती है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1925 में बना था. हिंदू जनजागरण समिति और सनातन संस्था जैसे हिंदू वर्चस्ववादी संगठनों ने पिछले साल ऐलान किया है कि 2025 तक हिंदू राष्ट्र बन जाएगा. इतना ही नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत तो हिंदू राष्ट्र तो बनेगा ही, 10-15 साल में अखंड भारत बन जाएगा,

‘हमारी गाड़ी चल पड़ी है, इसमें सिर्फ़ एक्सीलरेटर है ब्रेक नहीं है. जिसको बैठना है हमारे साथ बैठ जाएं, पर जो रास्ते में आएगा वह मिट जाएगा.’

गाड़ी के नीचे विरोधियों को कुचलने वाला मुहावरा संघ के लोगों को काफ़ी पसंद है. 2002 में गुजरात में मुसलमानों के जनसंहार के लिए उनकी ज़िम्मेदारी के बारे में पूछे जाने पर मोदी जी ने कहा था कि ‘गाड़ी के नीचे कुत्ते का पिल्ला भी कुचल जाए तो अफ़सोस तो होता ही है.’ 

बिना ब्रेक वाली गाड़ी में एक्सीलरेटर चला दिया जाए तो क्या नतीजा होता है? बच्चा भी बता सकता है कि ऐसा करने पर भयानक दुर्घटना होना तय है, और ऐसी दुर्घटना से कोई ज़िंदा नहीं बचेगा. डॉ आंबेडकर ने तो बहुत पहले बता दिया था कि भारत अगर हिंदू राष्ट्र बन गया तो देश के लिए सबसे बड़ी दुर्घटना होगी.

मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी की बिना ब्रेक वाली गाड़ी अपने साथ पूरे देश को इस दुर्घटना की तरफ़ ले जा रही है. इस बेलगाम गाड़ी, जो नफ़रत के ईंधन पर चलती है, को सत्ता के नशे में धुत ये चालक, अखंड भारत की मृगतृष्णा दिखाकर तेज़ रफ़्तार से सरपट दौड़ा रहे हैं. पर आगे सिर्फ़ एक ख़तरनाक खाई है, जो मुंह बाये इंतज़ार कर रही है.

कोई भी देश, विनाश को मंज़िल समझकर सफ़र पर नहीं निकलता है. भारत के लोग नरेंद्र मोदी की गाड़ी में ‘विकास’ के वादे को सुनकर बैठ गए. सफ़र के हर पड़ाव पर विनाश के मनहूस संकेत मिलते गए. नफ़रत का सामान्य हो जाना. भीड़ द्वारा हत्याओं की खबरों का आम हो जाना.

न्यू इंडिया का न्यू नॉर्मल यह बन गया: बिना किसी सबूत के सिर्फ़ सरकार से सवाल करने या उसके निर्णय का शांतिपूर्ण विरोध करने के लिए लोगों को आतंकवादी बताकर वर्षों जेल में डाल दिया जाना – जबकि ‘गोली मारो **** को’, ‘सब्ज़ी काटने वाले चाकू को तेज़ करके रखना ताकि लव जिहाद करने वाले का सिर काटा जा सके’ कहने वाले जेल में एक दिन भी नहीं काटते, बल्कि विधायक-सांसद-नेता बने रहते हैं.

जनता के साथ किसी भी तरह के बातचीत, चर्चा के बिना आसमान से बिजली की तरह दुनिया उलट-पलट करने वाले सरकारी निर्णय आते हैं- नोटबंदी, जीएसटी, कृषि क़ानून, लेबर कोड, धारा 370 का रद्द किया जाना. असम में दो लाख लोगों की नागरिकता को संदेह में डालने वाला एनआरसी- और इसे पूरे देश में लागू करने की घोषणा.

फिर एनआरसी से भयभीत लोगों को ‘क्रोनोलॉजी’ समझा दिया जाना कि पहले सीएए लाएंगे, जिससे बगल के देशों से मुसलमानों के अलावा सभी शरणार्थियों को नागरिकता देनें का प्रावधान होगा. एनआरसी की सूची से छूट जाने वालों में से छानकर ऐसे सभी ‘शरणार्थियों’ को नागरिकता में बैकडोर एंट्री मिल जाएगा. सिर्फ़ ‘घुसपैठी दीमकों‘ की नागरिकता चली जाएगी. ‘घुसपैठियों’ को कपड़े से पहचान लेंगे.

क्रोनोलॉजी आपने सुन लिया, आपको समझा दिया गया- पर अगर आपने इसी क्रोनोलॉजी के बारे में समाज को सचेत किया तो आप देश के दुश्मनों के एजेंट हैं जो अफ़वाह फैला रहे हैं. देश के दुश्मनों की जगह तो जेल है.

शव-वाहिनी गंगा‘ की भयावह छवि, कई बलात्कारियों के पक्ष में पहली बार जन प्रदर्शन (कठुआ कांड, उन्नाव कांड, आसाराम, राम रहीम). उसी ‘बिना ब्रेक सिर्फ़ एक्सीलरेटर’ वाली गाड़ी के रफ़्तार से महंगाई का बढ़ना और बेरोज़गारी दर का बढ़ते-बढ़ते 45 सालों के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच जाना.

पर इन सबके बावज़ूद रोज़ टीवी के पर्दे पर चमकते हुए चेहरे पर चमकते दांतों वाली मुस्कुराहट को चिपकाए हुए एंकर बताते रहे कि ‘सब चंगा है.’ गाड़ी बिल्कुल सही चल रही है. गाड़ी की दिशा या रफ़्तार पर जो शक करे या सवाल पूछे, वह तो देश का दुश्मन है, देश के विकास का दुश्मन है.

अच्छा मान लिया कि इस गाड़ी में ख़तरे हैं- पर यह गाड़ी नहीं तो कौन-सी? दूसरा विकल्प है ही नहीं. ओह! गाड़ी के नीचे कुचले जाने वालों की चीख़ों को सुनकर आप असहज हैं? पर जब तक आप गाड़ी में बैठे हैं तो कुचले जाने का ख़तरा तो है नहीं!

कुचले जाएंगे तो सिर्फ़ देश के दुश्मन. आप घबरा रहे हैं- कहीं आप देश के दुश्मन तो नहीं हैं? चेहरे पर शिकन से देश के दुश्मन पहचाने जाते हैं. कुचले जानों की चिंता करना भी देश के दुश्मन होने की पहचान है. दोस्तों के बीच या चारदीवारी के भीतर आपने फुसफुसाकर गाड़ी चालकों पर तनिक भी सवाल किया; यहां तक कि अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे आपने सपने में भी अगर सवाल आने दिया- तो चालकों को पता चल जाएगा.

देश के साथ हैं तो गाड़ी के प्रति रोज़ भक्ति का प्रदर्शन करिए. सबको बताइए कि हर पड़ाव पर ख़ुशियां ही ख़ुशियां हैं. सबसे कहिए कि चीख़ों की आवाज़ें, सड़ते हुए देश बस ठगनी की आवाज़ है, जिसे देश के दुश्मनों ने भेजा है आपको मायाजाल में फंसाने- कान बंद कर लें.

देश के इतने लोग ने भारी मतों से इसी गाड़ी को चुना, कोई और गाड़ी तो चुने जाने के नज़दीक भी नहीं पहुंचा. मैदान तो तेज़ी से इस गाड़ी के अलावा अन्य सभी गाड़ियों से ‘मुक्त’ हो रहा है. बहुमत के इस एकतरफ़ा निर्णय पर सवाल करना क्या लोकतंत्र के नियमों के ख़िलाफ़ नहीं है?

26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान के पहले मसौदे को संविधान सभा में पेश करते हुए डॉ. आंबेडकर ने जो कहा, उसे पढ़कर रोंगटें खड़े हो जाते हैं. क्योंकि ऐसा लगता है कि वे आज हमारे सामने बैठकर ही हमसे बात कर रहे हैं.

देश के सुनहरे भविष्य की नींव रखे जाने के लिए जश्न के माहौल को गंभीर चिंताओं को व्यक्त करके ख़राब करना तो दुस्साहस ही था! इस बात को जानकर डॉ. आंबेडकर ने कहा कि ‘यहां पर मैं अपनी बात समाप्त कर देता, परंतु हमारे देश के भविष्य के बारे में मेरे मन में इतनी चिंता है, कि मैं इस विषय पर भी कुछ कहना चाहता हूं.’

उनकी यह चिंता क्या थी? कि संविधान के बावजूद भारत में ‘तानाशाही प्रजातंत्र का स्थान’ न ले ले.

इसमें कोई आश्चर्य न होता अगर डॉ. आंबेडकर ने कहा होता कि तानाशाही से प्रजातंत्र को बचाने के लिए संविधान और चुनाव प्रणाली को मज़बूत रखने की ज़रूरत है. पर उनके जैसे भविष्यदर्शी को देश के सफ़र की शुरुआत से पहले ही आगे खाई के ख़तरे का बहुत ही सटीक अंदाज़ा था. और इसका भी कि यह ख़तरा चुनाव के बावजूद नहीं, बल्कि चुनाव में सत्तापक्ष को एकतरफ़ा जीत मिल जाने और विपक्ष के कमजोर होने की वजह से पैदा होता है.

उन्हीं ने कहा था कि ‘इस नवजात प्रजातंत्र के लिए यह बिल्कुल संभव है कि वह आवरण प्रजातंत्र का बनाए रखे, परंतु वास्तव में वह तानाशाही हो जाए.’

भाजपा नेता जब मोदी जी के चुनाव में महाविजय को लोकतंत्र बताते हैं, मोदी जी से सवाल या मतभेद रखने वालों को लोकतंत्र का दुश्मन बताते हैं, विपक्ष-मुक्त भारत के लक्ष्य की घोषणा करते हैं, तब वे डॉ. आंबेडकर के इस चेतावनी को सही साबित कर रहे हैं: ‘चुनाव में महाविजय की स्थिति में इस संभावना के यथार्थ बनने का खतरा अधिक है.’

इस ख़तरे से कैसे बचा जाए? यह उन्होंने देश के नेताओं को नहीं बल्कि देश के लोगों को नसीहत दी थी.

उन्होंने भविष्य के नागरिकों, यानी हम लोगों से कहा:

‘अपनी आज़ादियों को एक महानायक के चरणों में भी समर्पित न करें. उस पर इस हद तक विश्वास न करें, इतनी शक्तियां प्रदान न कर दें, कि वह लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट करने के काबिल हो जाए.’

संसद, विधायिका, न्यायपालिका, पुलिस, अदालत, चुनाव आयोग, ईडी, सरकारी बैंकों जैसी संस्थाओं को नष्ट करने का मतलब: उनके और सरकार के बीच की दूरी का कम हो जाना, दोनों में घालमेल हो जाना, सरकार से इन संस्थाओं की आज़ादी का कमज़ोर होना.

डॉ. आंबेडकर ने स्पष्ट कहा कि ‘यह सावधानी किसी अन्य देश के मुकाबले भारत के मामले में अधिक आवश्यक है, क्योंकि ‘भारत में भक्ति या नायक-पूजा उसकी राजनीति में जो भूमिका अदा करती है, उस भूमिका के परिणाम के मामले में दुनिया का कोई देश भारत की बराबरी नहीं कर सकता. धर्म के क्षेत्र में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है, परंतु राजनीति में भक्ति या नायक पूजा पतन और अंतत: तानाशाही का सीधा रास्ता है.’

डॉ. आंबेडकर के उस भविष्यदर्शी चेतावनी को सुनने और समझने के लिए अब भी देर है. जब तक टाइटैनिक के कप्तान ने आइसबर्ग (बर्फ की शिला) को देखा, तब तक जहाज़ की रफ़्तार इतनी तेज़ थी और आइसबर्ग इतना नज़दीक, कि भीषण और घातक तबाही से बचना असंभव था.

आज तानाशाही के तरफ़ किसी उल्कापिंड सरीखी रफ़्तार से दौड़ रही बेलगाम गाड़ी टाइटैनिक के पैमाने वाली तबाही इंतज़ार कर रही है. देश को तबाही से बचाने के लिए ज़रूरी है कि बेलगाम गाड़ी के चालकों की भक्ति की आदत छोड़ दें, अपनी आज़ादियों को उनके चरणों में समर्पित न करें, उनके हाथ में नहीं, बल्कि अपने पास स्टीयरिंग, मैप और गाड़ी की चाबी रखें. अगर चालक चाबी, स्टीयरिंग और मैप आपके हाथ में देने के लिए राज़ी न हों, तो समझ लें कि तानाशाही की मंज़िल दूर नहीं. भारत के लोग जल्द से जल्द इस गाड़ी से उतर जाएं – तभी देश को बचाया जा सकता है.

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)