लालू परिवार पर छापों के बीच तेज प्रताप केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर क्यों नहीं हैं?

लालू प्रसाद यादव की वे बेटियां, जो राजनीति में नहीं हैं, भी ज़मीन के बदले नौकरी के कथित घोटाले को लेकर केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में आ गई हैं, लेकिन उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अब तक इनके निशाने पर नहीं हैं. बिहार के राजनीतिक विश्लेषक इसे महज़ संयोग मानने को तैयार नहीं हैं.

तेज प्रताप यादव. (फोटो साभार: ट्विटर/@TejYadav14)

लालू प्रसाद यादव की वे बेटियां, जो राजनीति में नहीं हैं, भी ज़मीन के बदले नौकरी के कथित घोटाले को लेकर केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में आ गई हैं, लेकिन उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अब तक इनके निशाने पर नहीं हैं. बिहार के राजनीतिक विश्लेषक इसे महज़ संयोग मानने को तैयार नहीं हैं.

तेज प्रताप यादव. (फोटो साभार: ट्विटर/@TejYadav14)

ऐसे समय में जब लालू प्रसाद यादव का पूरा परिवार जमीन के बदले नौकरी कथित घोटाले के सिलसिले में केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर आ गया है, केवल लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ही ऐसे व्यक्ति हैं, जो अब तक इससे अछूते हैं. बिहार के राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे महज एक संयोग नहीं मान रहे हैं और इसे राजनीतिक महत्व दे रहे हैं.

एजेंसियों द्वारा तेज प्रताप की यह अनदेखी किसी तरह से संयोग नहीं लगती, खासकर यह देखते हुए कि लालू की बेटियों- चंदा, रागिनी, और हेमा और उनके ससुराल से जुड़े घरों और संपत्तियों पर भी छापे मारे गए हैं. जांच एजेंसियों ने राज्यसभा सदस्य और लालू की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती के घर पर भी छापेमारी की.

लालू की दूसरी बेटी, रोहिणी आचार्य, जिन्होंने पिछले दिसंबर में उन्हें अपनी किडनी दान की थी, सिंगापुर में रहती हैं. नौ भाई-बहनों में सबसे छोटी राजलक्ष्मी की शादी मुलायम सिंह यादव के पोते तेज प्रताप सिंह यादव से हुई है. वे समाजवादी पार्टी से सांसद थे.

उनकी एक बेटी अनुष्का की शादी हरियाणा में कांग्रेस के पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के बेटे चिरंजीव राव से हुई है. राव युवा कांग्रेस नेता हैं. इस तरह लालू के दोनों छोटे दामाद खुद राजनीति में हैं.

2017 में भी जब केंद्रीय एजेंसियों ने राजद के शीर्ष नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की, तो तेज प्रताप इससे बाहर ही थे- बावजूद इसके कि 2015 और 2017 के बीच महागठबंधन सरकार के हिस्से के रूप में वे बिहार के स्वास्थ्य मंत्री थे. हालांकि, इसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में फिर से शामिल होने के लिए पाला बदल लिया था.

दिलचस्प पहलू यह भी है कि 5 जनवरी, 2017 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरु गोबिंद सिंह की 350वीं जयंती के अवसर पर पटना पहुंचे थे, तब उन्होंने एक निजी सभा में तेज प्रताप को कृष्ण बताया था. शायद इसलिए क्योंकि 2017 में नए साल के दिन तेज प्रताप कृष्ण के रूप में तैयार हुए थे और उनकी वह फोटो तब वायरल हुई थी.

तेज प्रताप और उनसे जुड़े विवाद

तेजस्वी यादव के उलट तेज प्रताप अक्सर लालू परिवार के लिए शर्मिंदगी की वजह बनते हुए कई विवादों में फंस चुके हैं. इसमें राजद के पूर्व मंत्री चंद्रिका राय की बेटी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पोती ऐश्वर्या राय से उनका विवाह शामिल था. परिवार ने शादी को बचाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

इसके अलावा, वह बिहार में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं, खासकर सुशील कुमार मोदी के साथ उनके बेटे की शादी की पूर्व संध्या पर उलझ गए थे.

तेज प्रताप के अड़ियल स्वभाव, जिसने कई मौकों पर लालू परिवार को मुश्किल में डाला है, के बावजूद केंद्रीय एजेंसियों का उन्हें निशाना नहीं बनाया. बिहार के राजनीतिक विश्लेषक इसका राजनीतिक अर्थ निकाल रहे हैं.

संयोग से मई 2004 में जब लालू रेल मंत्री बने थे, तब उनके सबसे छोटे बेटे तेजस्वी केवल 14 साल के थे. तेज प्रताप 16 साल के थे और फिर भी जमीन के बदले नौकरी के कथित घोटाले में उनका नाम नहीं आया. मामला उस समय का है जब लालू ने 2004 और 2009 के बीच पहली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार में रेल मंत्री का प्रभार संभाला था.

वर्तमान में जहां मीसा सांसद  और तेजस्वी उपमुख्यमंत्री हैं, वहीं तेज प्रताप नीतीश कैबिनेट में मंत्री हैं. लालू की अन्य बेटियों-  चंदा, रागिनी और हेमा की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है और वे केंद्र में सत्ताधारी दल के लिए किसी तरह का खतरा नहीं हैं, फिर भी उन्हें जांच एजेंसियों ने नहीं बख्शा.

यदि बिहार में विपक्षी दल भाजपा पर सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)और आयकर विभाग के दुरुपयोग  का आरोप लगा रहे हैं, तो वे तेज प्रताप यादव और उन अन्य लोगों को नजरअंदाज कर रहे हैं, जिन्हें भाजपा जरूरत पड़ने पर इसके पक्ष में आने सकने वाले संभावित दलबदलुओं के रूप में देखती है.

ऐसा पहले हिमंता बिस्वा शर्मा (असम), शुभेंदु अधिकारी (पश्चिम बंगाल) और हार्दिक पटेल (गुजरात) के मामले में भी देखा गया था. एक बार जब वे भाजपा के खेमे में चले गए, तो उनके खिलाफ मामलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. शायद तेज प्रताप को एजेंसियों के निशाने से बहर रखने को भी इसी नज़र से देखा जाना चाहिए.

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