गुजरात दंगों के बाद अरुण पुरी ने अपनी ‘इंडिया टुडे’ दुकान में नरेंद्र मोदी को विभाजक, घृणा-नफरत का क्राफ्ट्समैन, ध्वंस के बीच का सम्राट आदि लिखा था. अब इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में वही नरेंद्र मोदी ‘उनकी दुकान चलाने’ की बात कह रहे हैं.
हम क्या हैं? जवाब हाल में लुटियंस दिल्ली में मिला! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कोई 1978 से दिल्ली में मीडिया की ‘दुकान’ लगाए हुए ‘इंडिया टुडे’ ग्रुप के मालिक अरुण पुरी की ज़बानी ज्ञात हुआ. मौका था ‘इंडिया टुडे’ कॉन्क्लेव का. भारत गोष्ठी! श्रोता कौन थे?
लुटियंस दिल्ली मतलब भारत पर राज करने वाले कथित बुद्धिमान, मंत्री, आला अफसरों का वह प्रभुत्व वर्ग जो 140 करोड़ लोगों की भारत राष्ट्र नाम की ‘दुकान’ के माई-बाप, मालिक हैं. और ईमानदारी से बताऊं पत्रकार के बतौर साढ़े चार दशक के मेरे अनुभव में वह शर्मनाक क्षण था, मैं शर्म से गड़ गया, जब मैंने कॉन्क्लेव में अरुण पुरी और नरेंद्र मोदी का संवाद सुना.
पर फिर अच्छा भी लगा. इसलिए कि कुछ भी हो नरेंद्र मोदी और अरुण पुरी ने अपनी ज़बानी अपना सत्य जाहिर किया. याद हो आई मुझे सन् 2003 की वह स्टोरी भी, जिसमें गुजरात दंगों के बाद ‘इंडिया टुडे’ के कवर पर नरेंद्र मोदी घोषित थे बतौर- मास्टर विभाजक (NARENDER MODI- MASTER DIVIDER)
हां, मुझे याद है गुजरात दंगों के बाद अरुण पुरी ने अपनी ‘इंडिया टुडे’ दुकान में नरेंद्र मोदी को विभाजक, घृणा-नफरत का क्राफ्ट्समैन, पांवों तले लाशों पर जीत का हुंकारा मारने वाले या मलबे-ध्वंस के बीच का सम्राट आदि न जाने क्या-क्या लिखा था. उन दिनों लुटियंस दिल्ली में वाजपेयी की दुकान थी. कांग्रेस की थी. वाजपेयी जहां मोदी को राजधर्म निभाने का ज्ञान देते थे वही अहमद पटेल ‘मौत का सौदागर’ के जुमले में मोदी पर नैरेटिव बनवाते थे.
इसलिए अरुण पुरी और ‘इंडिया टुडे’ तब मोदी को यदि ‘मास्टर विभाजक’ लिखता था तो वह इसलिए था क्योंकि हमारा भारत ऐसा ही है. हमारा अस्तित्व दासता, झूठ, स्वार्थ और बुद्धिहीनता में बिकने-खरीदने की दुकान से बना है, थाली के मेंढक, गंगा गए गंगादास और जमुना गए जमुनादास के अनुभवों में जब पका है तो आधुनिक लुटियंस दिल्ली भी क्यों नहीं मेंढक तथा हाईवैल्यू की खरीदफरोख्त की होलसेल दुकान.
भले ‘इंडिया टुडे’ कॉन्क्लेव का आयोजन हो पर मकसद-विचार का प्राइमरी बिंदु तो दुकान है. प्रधानमंत्री मोदी क्योंकि दुकान के मौजूदा मालिक है तो वे 140 करोड़ लोगों की भीड़ के पिरामिड का शिखर बिंदु है तो उनके पीछे कतार में खड़े भारत के सेना प्रमुख, चीफ जस्टिस, गृह मंत्री आदि, आदि. हां, ताजा भारत गोष्ठी के सार में अरुण पुरी के ‘इंडिया टुडे’ का कवर 2023 की यह भारत झांकी बतलाते हुए है.
जाहिर है कोई हजार साल पहले दिल्ली के बादशाह जो किया करते थे, उसका सत्य भले इक्कीसवीं सदी में ‘इंडिया टुडे’ कॉन्क्लेव जैसी आधुनिक शोशेबाजी में लिपटा हो, मगर ‘दुकान’ की फूहड़ता स्थायी पुरानी ही है. बेचारे अरुण पुरी और नरेंद्र मोदी का क्या दोष जो वे दुकान से अधिक सोच नहीं पाते.
सत्ता की दुकान के अलावा हमारा जीवन और है ही क्या! वह दुकान जहां सब कुछ खरीदा-बेचा जा सकता है. मैंने अपनी आंखों बूझा है कि दिल्ली के सत्तावानों को चांदी की जूतियां पहनाते हुए धीरूभाई ने कैसा अपना साम्राज्य बनाया. कैसे नौ सालों में गौतम अडानी दुनिया के खरबपति बने है. कैसे चीन ने भारत को अपना बंधुआ ग्राहक बनाया है.
बहरहाल, अरुण पुरी और नरेंद्र मोदी का डायलॉग भी जानें. अरुण पुरी ने भारत गोष्ठी में नरेंद्र मोदी का स्वागत करते हुए कहा- सर, आप बुरा ना मानें तो मैं एक बात कहना चाहता हूं, मीडिया आपकी सरकार से बड़ी परेशान है उनकी दुकान नहीं चल रही है… जवाब में शायद आप कहेंगे कि अरुण भाई, मैं आपकी दुकान क्यों चलाऊं?…अरुण पुरी को सुनने के बाद नरेंद्र मोदी ने भाषण शुरू करते ही पहला वाक्य बोला- चलिए आज आपकी दुकान चला ही देता हूं.
और पता है भारत का श्रेष्ठी-शासक वर्ग खिलखिलाया. फिर मुदित भाव मोदीजी के अमृत वचन सुनने लगा कि It is India’s Moment!
उफ! भारत की दुकान का मोदी पल, मोमेंट! हम धन्य हुए! गुजरात की जमीं से दिल्ली की दुकान को क्या गजब दुकानदार मिला! मोदी ने अपने को विभाजक घोषित करने वाले अरुण पुरी की भी दुकान चला दी. पर दुकान और दुकानदार के ‘मोमेंट’ की कामयाबी भी तो दुकान का डंका है, मीडिया शोर से है. कोई मामूली बात जो दसियों तरह की मार्केटिंग, ब्रांडिंग, खरीद-फरोख्त, नैरेटिव से नरेंद्र मोदी ने भगवा राजनीति की दुकान का दुनिया में डंका बनवा दिया है.
धर्म, राजनीति, समाज, आर्थिकी सब दुकानदारी के ऐसे हिस्से हो गए हैं कि मुनाफा ही मुनाफा. खरीद-फरोख्त की मानो, दुनिया की नंबर एक मंडी. बुद्धि-विचार बिकाऊ है. ईमान बिकाऊ है. नेता, पार्टियां खरीदी जाती हैं. मीडिया खरीदा जाता है. संस्थाएं खरीदी जाती हैं तो लोगों का अमन-चैन, आर्थिकी, देशहित, डिप्लोमेसी सब खरीदी-बेची जा सकती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुकान में न केवल सब मुमकिन है, बल्कि उसकी मोहमाया से सब कुछ सस्ता भी है. वे अपने दर्शन कराकर अरुण पुरी की दुकान चला देते हैं तो 80 करोड़ हिंदुओं को पांच किलो राशन बांट उसके नमक एहसान में वोट भी ले लेते हैं. वह भी तो नरेंद्र मोदी और इंडिया का मोमेंट!
तभी मुझे हर रोज नरेंद्र मोदी से अनुभूति होती है, समझ आता है कि हम हैं क्या? क्योंकर दिल्ली का हर शासक, हर बादशाह या वायसराय या प्रधानमंत्री दुकानदार हुआ? खानदानी लोग दुकानदार हुए तो स्वंयसेवक भी दुकानदार हो गया! कुल मिलाकर स्थायी तौर पर राजनीति का एक सा चरित्र, एक से परिणाम!
इसलिए नोट रखें, जितनी घटनाएं हैं, जैसे अमृतपाल का हल्ला है तो उस सबमें कुछ भी नया नहीं है. इतिहास रिपीट है. जैसे इंदिरा गांधी के राज में भिंडरावाले पैदा हुआ था वैसे नरेंद्र मोदी की दुकान में अमृतपाल है. भिंडरावाले से हिंदुओं का कंसोलिडेशन था तो अमृतपाल से भी है. क्योंकि आजाद भारत भी बिखराव की उसी नियति को प्राप्त होना है जो हमारा इतिहास है.
फिर नरेंद्र मोदी के मामले में तो ‘इंडिया टुडे’ ने स्वंय बीस साल पहले नरेंद्र मोदी को मास्टर विभाजक और ध्वंस का सम्राट लिखा था. तभी आज के इंडिया मोमेंट में अमृतपाल, अतीक अहमद भी अपना मोमेंट लिए हुए हैं. इनके साये में सिख और मुसलमान का मोमेंट है. पंजाब के 38 प्रतिशत हिंदुओं और उत्तर प्रदेश के भक्त हिंदुओं की खरीदारी में अमृतपाल और अतीक अहमद के चेहरे भगवा ब्रांड की खरीदारी को कैसे चमकाए हुए हैं यह हम सब जानते है, सामान्य ज्ञान की बात है!
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)
(यह लेख मूल रूप से नया इंडिया वेबसाइट पर प्रकाशित हुए आलेख का संपादित अंश है.)