उत्तर प्रदेश में ‘रामचरितमानस’ का पाठ सरकारी दायित्वों का हिस्सा हो सकता है

बीते दिनों सोनभद्र के ज़िला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने खंड शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे अपने-अपने ब्लॉक में तीन शिक्षकों का चयन करें और 28 एवं 29 मार्च को प्रमुख मंदिरों में उनके द्वारा ‘रामचरितमानस’ का अखंड पाठ करना सुनिश्चित करें.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/MYogiAdityanath)

बीते दिनों सोनभद्र के ज़िला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने खंड शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे अपने-अपने ब्लॉक में तीन शिक्षकों का चयन करें और 28 एवं 29 मार्च को प्रमुख मंदिरों में उनके द्वारा ‘रामचरितमानस’ का अखंड पाठ करना सुनिश्चित करें.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/MYogiAdityanath)

हिंदुओं में त्योहारों के दौरान या अन्य दिनों में भी रामचरितमानस का 24 घंटे बिना रुके पाठ (अखंड रामायण) करना सामान्य है. देश के किसी भी हिस्से में कभी भी इसे आधिकारिक दायित्वों का हिस्सा नहीं बनाया गया है, क्योंकि राज्य ने हमेशा ही सरकारी कर्मचारियों के लिए धार्मिक कार्यों को अनिवार्य बनाने से परहेज किया है.

लेकिन अब और नहीं.

उत्तर प्रदेश सरकार चुपचाप अपने धार्मिक एजेंडे के साथ आगे बढ़ रही है, चाहे वह कानूनी हो या नहीं और चाहे कर्मचारी सहमत होंगे या नहीं.

इस संबंध में गौर करने वाली जो बात है, वो सोनभद्र के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी हरिवंश कुमार का एक आदेश है, जिसमें उन्होंने सभी ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों को बीते दिनों निर्देश दिया था कि वे अपने-अपने ब्लॉक में तीन सक्षम शिक्षकों का चयन करें और सुनिश्चित करें कि उनके द्वारा 28-29 मार्च यानी अष्टमी (नवरात्रि का आठवां दिन) और राम नवमी (जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ) को प्रमुख मंदिरों में रामचरित मानस का अखंड पाठ किया जाए.

अपने पत्र में हरिवंश कुमार ने सोनभद्र के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट से प्राप्त 18 मार्च 2023 के एक पत्र के माध्यम से मिले आदेश का हवाला दिया.

शिक्षकों के लिए जारी यह आदेश उस आदेश से एक कदम आगे है, जो चैत्र नवरात्रि और रामनवमी के दौरान मंदिर में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए सभी जिलाधिकारियों को जारी किया गया था. कलाकारों को मानदेय भुगतान के लिए जिलाधिकारियों को एक-एक लाख रुपये भी दिए गए थे.

महत्वपूर्ण रूप से राज्य के संस्कृति विभाग द्वारा जिलाधिकारियों को दिए गए आदेश में यह उल्लेख नहीं किया गया था कि क्या शिक्षकों को धार्मिक गतिविधियों में लगाया जाना है, जो कि स्वैच्छिक और आस्था से प्रेरित हैं.

मामूली बुनियादी सुविधाओं की भरमार

ऐसा नहीं ही कि बेसिक शिक्षक खाली बैठे हैं.

वे काम से भरे हुए हैं, जिसका केवल एक छोटा-सा हिस्सा शिक्षण कार्य है. पढ़ाने के अलावा उन्हें डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी) में मदद करनी होती है.

यूपी के बेसिक शिक्षा निदेशालय द्वारा 2021 में जारी एक आदेश में सरकारी बेसिक स्कूलों के प्रधानाध्यापकों को स्कूल यूनिफॉर्म की खरीद के लिए डीबीटी सुविधा के लिए ‘प्रेरणा’ पोर्टल पर लाभार्थियों के बैंक खातों का सही विवरण फीड करने की जिम्मेदारी दी गई थी.

इस योजना का उद्देश्य सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित लगभग 1.8 करोड़ छात्रों को लाभान्वित करना था.

इसमें पब्लिक फाइनेंस मैनेजमेंट सिस्टम (पीएफएमएस) जोड़ा गया है, जो भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा विकसित एक वेब-आधारित ऑनलाइन एप्लिकेशन है. सरकारी बेसिक स्कूलों में भुगतान करने के लिए स्कूल प्रबंधन समितियों द्वारा पोर्टल का इस्तेमाल किया जाता है.

प्रशिक्षित स्नातकोत्तर बेसिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विनय कुमार सिंह कहते हैं, ‘यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें धन का हस्तांतरण, विक्रेताओं और नए उपयोगकर्ताओं को जोड़ना और उनका मानचित्रण करना; व्यय, जीएसटी पर डेटा अपलोड करना आदि शामिल है. इसमें बहुत समय लगता है.’

सिंह सोनभद्र के बेसिक शिक्षा अधिकारी के शिक्षकों के मंदिरों में बैठकर रामचरितमानस का पाठ करने संबंधी आदेश को गलत बताते हैं, क्योंकि यह पसंद का मामला है कि कोई स्वेच्छा से मंदिर में इसे पढ़ने के लिए बैठता है या घर पर पढ़ता है.

यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि कई बेसिक स्कूलों में शौचालय की सुविधा नहीं है, जहां शिक्षकों को अभी भी पेशाब करने के लिए खेतों में जाना पड़ता है. महिला शिक्षकों और छात्राओं की दुर्दशा की केवल कल्पना ही की जा सकती है. यह सब यूपी के स्वच्छ भारत अभियान के तहत राज्य को खुले में शौच मुक्त बनाने के बड़े-बड़े दावों के बाद है. दावा स्पष्ट रूप से जमीन पर उचित सत्यापन के बिना किया गया था.

अब विनय कुमार सिंह द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को की गई शिकायत के बाद यूपी के स्कूली शिक्षा महानिदेशक विजय किरण आनंद ने सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को पुरुष और महिला शिक्षकों, छात्रों और विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए अलग-अलग शौचालयों के निर्माण में तेजी लाने का निर्देश दिया है.

पत्र में कहा गया है कि मार्च 2024 के अंत तक सभी प्राथमिक स्कूलों को सभी बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जानी हैं.

(लेखक लखनऊ में टाइम्स ऑफ इंडिया के स्थानीय संपादक रहे हैं. इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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