छत्तीसगढ़ में अचानक सांप्रदायिक घटनाएं क्यों बढ़ गई हैं?

छत्तीसगढ़ में बेमेतरा ज़िले के बिरनपुर गांव में हुई कथित सांप्रदायिक हिंसा के ख़िलाफ़ हिंदू संगठनों ने राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया था. इस दौरान जगदलपुर में बस्तर क्षेत्र के भाजपा नेताओं और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में मुसलमानों और ईसाइयों के आर्थिक बहिष्कार का संकल्प लेता वीडियो सामने आया है.

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जगदलपुर में मुसलमानों और ईसाइयों के आर्थिक बहिष्कार का संकल्प लेते लोगों का समूह. (वीडियोग्रैब साभार: सोशल मीडिया)

छत्तीसगढ़ में बेमेतरा ज़िले के बिरनपुर गांव में हुई कथित सांप्रदायिक हिंसा के ख़िलाफ़ हिंदू संगठनों ने राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया था. इस दौरान जगदलपुर में बस्तर क्षेत्र के भाजपा नेताओं और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में मुसलमानों और ईसाइयों के आर्थिक बहिष्कार का संकल्प लेता वीडियो सामने आया है.

जगदलपुर में मुसलमानों और ईसाइयों के आर्थिक बहिष्कार का संकल्प लेते लोगों का समूह. (वीडियोग्रैब साभार: सोशल मीडिया)

रायपुर: छत्तीसगढ़ में एक छोटे-से गांव में बच्चों की लड़ाई बढ़कर बड़ों के बीच कत्ल का सामान बन गई. और ये कत्ल हिंदू और मुस्लिम तबकों के बीच हुए हैं, इसलिए यह प्रदेश एक अभूतपूर्व सांप्रदायिक तनाव झेल रहा है. प्रदेश के मैदानी इलाके की यह हिंसा राज्य के आदिवासी क्षेत्र बस्तर से दूर रही थी, लेकिन आखिरकार अब यह आंच वहां तक पहुंची है और अब बहुसंख्यक हिंदू समुदाय की राजनीति करने वाले विश्व हिंदू परिषद और भाजपा ने तमाम गैर-हिंदू कारोबारियों के पूरे बहिष्कार की सार्वजनिक कसम दिलवाई है.

मामले की शुरुआत बेमेतरा जिले के बिरनपुर गांव से हुई, जहां हिंदू-मुस्लिम टकराव में पहली मौत एक हिंदू नौजवान की हुई और विहिप-भाजपा के प्रदेश बंद की रात इसी गांव के मुस्लिम बाप-बेटे को भी मार डाला गया, जिनकी लाशें अगली सुबह मिलीं. इन दोनों को लाठियों से पीट-पीटकर मारा गया था.

छत्तीसगढ़ आमतौर पर बड़ी सांप्रदायिक हत्याओं से दूर रहने वाला प्रदेश है. यहां चर्चों पर हिंदू संगठनों के छोटे-मोटे हमलों, कुछ हिंसा, तोड़फोड़ से अधिक कोई नौबत आती नहीं है. कांग्रेस के पिछले चार साल के राज में भी हिंदू संगठन चर्चों पर धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए लगातार यही करते रहे हैं, लेकिन याद नहीं पड़ता कि कितने बरस बाद इस राज्य में सांप्रदायिक हत्या हुई. पहली नजर में ऐसा लगता है कि इस पहली हत्या के जवाब में दो और हत्याएं हुईं.

जिस गांव में यह तनाव खड़ा हुआ है, उसका थोड़ा-सा इतिहास भी है. करीब बारह सौ आबादी का यह गांव करीब साठ मुस्लिम परिवारों वाला है और बीते बरसों में कभी-कभी वहां की हिंदू लड़कियों ने मुस्लिम लड़कों से शादी भी कर ली है. कभी-कभार के ऐसे तनाव में बढ़ोत्तरी पिछले महीनों में हुई जब एक ताकतवर ओबीसी जाति की दो लड़कियों ने इस गांव में मुस्लिम लड़कों से शादी की और वह तनाव सतह के नीचे सुलग रहा था.

दूसरी तरफ, इसी गांव से जरा दूरी पर पड़ोसी कबीरधाम जिले का मुख्यालय कवर्धा है जहां पिछले दो बरस में आधा दर्जन से अधिक बार हिंदू-मुस्लिम तनातनी हो चुकी है, लेकिन वह जानलेवा नहीं हुई थी. यह शहर प्रदेश के पिछले भाजपा मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का गृहनगर भी है और वे यहां से विधायक भी रहे हुए हैं. वे और उनके बेटे इस पूरे इलाके के सांसद भी रहे हैं. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य के अकेले मुस्लिम विधायक मोहम्मद अकबर कवर्धा सीट से प्रदेश में सबसे अधिक लीड से विधायक बनने वाले नेता रहे. तब से कवर्धा में भाजपा और कांग्रेस के बीच हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा चला आ रहा था.

सड़क चौराहों से झंडे-डंडे हटाने जैसे मामले अनुपातहीन तरीके से तनावपूर्ण होते चले गए और कई बार तनाव जानलेवा होने से कुछ पहले ही थम पाया. इस कवर्धा विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस के मुस्लिम विधायक की वजह से सांप्रदायिक तनावग्रस्त होने पर कांग्रेस के खिलाफ ध्रुवीकरण की जमीन मान लिया गया, और यहां कुछ बड़े कांग्रेस विरोधी नेताओं ने नजर भी लगा रखी है.

अब इसी कवर्धा से लगा हुआ पड़ोसी ज़िले का यह छोटा गांव दो हिंदू लड़कियों की दो मुस्लिम लड़कों से शादी से सुलग रहा था, मामला पुलिस तक गया था, लड़कियों के बालिग होने से उनके परिवारों को कुछ हासिल नहीं हो पाया, लेकिन गांव इस तनाव से उबर नहीं पाया था. ऐसे में सड़क पर दो बच्चों की साइकिल टकराने जैसे किसी मामूली मामले की वजह से बढ़ा तनाव पहले एक जान ले बैठा और फिर दो दिन बाद प्रदेश बंद के तनाव के बीच दो और जानें  गईं. अभी करीब गांव की आबादी जितनी ही पुलिस वहां तैनात है, और इतनी लाठी-बंदूक के बीच नफरती हिंसा, फ़िलहाल, कुछ दुबकी बैठी है.

दूसरी तरफ, इसी तनाव को लेकर विश्व हिंदू परिषद ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में सार्वजनिक रूप से हिंदू समुदाय को भगवान राम के नाम पर यह शपथ दिलाई है कि वे किसी भी गैर-हिंदू- ईसाई या मुस्लिम से कोई कारोबारी लेन-देन नहीं करेंगे, उनसे कोई सामान भी नहीं खरीदेंगे. इसके साथ-साथ हिंदू दुकानों पर अपने धार्मिक प्रतीकों को प्रमुखता से लगाने का आह्वान भी किया गया है ताकि उनकी शिनाख्त आसान रहे. इस शपथ का वीडियो बुधवार की शाम से पूरे छत्तीसगढ़ में घूम रहा है. यह प्रदेश ऐसे सांप्रदायिक तनाव और फतवों का आदी नहीं रहा है.

लेकिन इस दर्जे की हिंसा को अगर छोड़ दें, तो यहां सांप्रदायिक तनाव धीरे-धीरे बस्तर जैसे आदिवासी इलाके में भी पिछले बरसों में लगातार बढ़ते आया है जहां गांवों में कुछ आदिवासियों के ईसाई बनने पर उसे धर्मांतरण कहते हुए उसका हिंसक विरोध हुआ, लोगों को मारा-पीटा गया, ऐसे ईसाई बने लोगों के शव गांव के कब्रिस्तान में दफनाने नहीं दिए गए, और जगह-जगह पुलिस और प्रशासन को दखल देना पड़ा. इससे पूरे प्रदेश में जगह-जगह किसी घर में चलती ईसाई प्रार्थना सभा में घुसकर बजरंग दल जैसे संगठनों ने हुड़दंग किया और इसे धर्मांतरण की कोशिश बताते हुए प्रशासन से उसका विरोध किया.

राज्य के एक दूसरे हिस्से, झारखंड की सरहद से लगे छत्तीसगढ़ के सरगुजा में नए मुस्लिमों के आकर बसने का एक मुद्दा भाजपा हर बार उठाती है. साथ ही वह रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को लाकर छत्तीसगढ़ में बसाने का आरोप लगाती है. हालांकि, अब तक इसके कोई सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन जब सांप्रदायिक तनाव का माहौल रहता है, तो वॉट्सऐप पर फैलती नफरत को किसी सबूत का सर्टिफिकेट नहीं लगता.

प्रदेश भर में दिक्कत की एक बात यह भी है कि भाजपा तो खुलकर मुस्लिमों और ईसाइयों के खिलाफ किसी मुद्दे या गैरमुद्दे को लेकर जुटी हुई है, लेकिन कांग्रेस के लोग ऐसे किसी भी मोर्चे से दूर बैठे हुए हैं. आज हालत यह है कि बेमेतरा जिले के जिस साजा विधानसभा क्षेत्र में ये कत्ल हुए हैं, वहां के स्थानीय कांग्रेस विधायक और राज्य के एक सबसे ताकतवर मंत्री, रविन्द्र चौबे चार दिन बाद भी अपने क्षेत्र में नहीं गए हैं, जबकि वे इस सीट से अपने परिवार के दूसरी पीढ़ी के विधायक हैं.

अभी जब यह रिपोर्ट लिखी ही जा रही है, तब कांग्रेस के कुछ छोटे मुस्लिम पदाधिकारियों के इस्तीफे आ रहे हैं जिनमें लिखा गया है कि बिरनपुर की घटना पर कांग्रेस सरकार की चुप्पी और मौन स्वीकृति के विरोध में वे कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे रहे हैं. प्रदेश में तीन चौथाई से अधिक सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं, लेकिन जगह-जगह अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों के खिलाफ इनमें से कोई विधायक खड़े होते हों ऐसा याद नहीं पड़ता.

फिलहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का एक ट्वीट कहता है कि कांग्रेस सरकार ने पीड़ित परिवार को सुरक्षा दी, जो आरोपी हैं वो तुरंत पकड़े गए. जाहिर है कि उनका यह बयान हिंदू नौजवान की मौत को लेकर है क्योंकि अब तक दो मुस्लिमों की हत्या पर तो कोई गिरफ्तारी हुई नहीं है. उनका कहना है कि भाजपा ने बिरनपुर पहुंचकर आग में पेट्रोल डालने का काम किया है.

इस गांव बिरनपुर के सरपंच जेठूराम साहू ने सभी लोगों से अपील की है कि वे बाहर से इस गांव न आएं और यहां के लोगों को शांति स्थापित करने दें. जाहिर है कि बाहर से पहुंचे लोगों की वजह से तनाव घटने की जगह बढ़ते चल रहा है.

अभी तक यह राज्य उत्तर भारत के दूसरे राज्यों की तरह बड़ी सांप्रदायिक हिंसा से बचा हुआ था, लेकिन इन मौतों और मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार के विहिप के आह्वान के बाद चुनाव तक के छह महीने आसान गुजरते नहीं दिख रहे हैं.

प्रदेश में भाजपा लोगों के बीच यह बात फैलाने में कामयाब दिखती है कि राज्य के बहुत से विवादास्पद मुस्लिम नेताओं और कारोबारियों के सिर पर कांग्रेस और सरकार का हाथ है. अब इसके साथ कही जाने वाली बाकी बातों से एक किस्म का ध्रुवीकरण होने का आसार दिखता है. आने वाला चुनाव का नतीजा ही ऐसे किसी संभावित ध्रुवीकरण की कामयाबी बताएगा.

(सुनील कुमार स्थानीय पत्रकार हैं.)