ओडिशा: हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा के बाद संबलपुर में कर्फ्यू और इंटरनेट बंद

ओडिशा के संभलपुर में हिंसा बीते 12 अप्रैल को हनुमान जयंती समन्वय समिति द्वारा निकाली गई एक मोटरसाइकिल रैली के बाद शुरू हुई थी. 14 अप्रैल को हनुमान जयंती का जुलूस शांतिपूर्ण तरीके से निकालने के लिए पुलिस ने इंतज़ाम किए थे, फिर भी हिंसा भड़क गई थी.

The Hanuman Jayanti procession in Sambalpur. Photo: Twitter

ओडिशा के संभलपुर में हिंसा बीते 12 अप्रैल को हनुमान जयंती समन्वय समिति द्वारा निकाली गई एक मोटरसाइकिल रैली के बाद शुरू हुई थी. 14 अप्रैल को हनुमान जयंती का जुलूस शांतिपूर्ण तरीके से निकालने के लिए पुलिस ने इंतज़ाम किए थे, फिर भी हिंसा भड़क गई थी.

संबलपुर में हनुमान जयंती का जुलूस. (फोटो: ट्विटर)

भुवनेश्वर: पश्चिमी ओडिशा के राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र संबलपुर में तनाव जारी है, क्योंकि हनुमान जयंती के दौरान हुई हिंसा के परिणामस्वरूप शहर में रविवार (16 अप्रैल) को लगातार दूसरे दिन भी कर्फ्यू लगा हुआ है.

14 अप्रैल को मनाया गया यह धार्मिक त्योहार उड़िया लोगों के पारंपरिक नए साल के त्योहार महाबिशुबा संक्रांति या पणा संक्रांति के आसपास ही पड़ता है.

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और सहायक अनुभाग अधिकारी (एएसओ) परीक्षाओं को कराने के लिए शहर के हर नुक्कड़ और कोने में पुलिस गश्त के साथ कर्फ्यू में कुछ घंटों के लिए ढील दी गई थी.

दुर्भावनापूर्ण अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए संबलपुर में सोमवार तक इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं. हालांकि, इसने उन लोगों के दुख को और बढ़ा दिया है जो न तो अपने घरों से बाहर निकल सकते हैं और न ही दूसरों के साथ संवाद करने के लिए इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं.

स्थानीय पत्रकार सुब्रत मोहंती ने कहा, ‘लोग हर तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं.’

हनुमान जयंती जुलूस के दौरान शहर में आगजनी और हत्या की घटनाओं के बाद शनिवार (15 अप्रैल) को संबलपुर में कर्फ्यू लगा दिया गया था. जुलूस में शामिल होकर घर लौटते समय मृतक चंद्र मिर्धा पर हमला हुआ था. हालांकि, संबलपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) बी. गंगाधर ने कहा कि हत्या हनुमान जयंती समारोह से संबंधित नहीं थी.

सबसे संवेदनशील माने गए टाउन पुलिस थाने, धनुपाली थाने, खेतराजपुर थाने, ऐंथापाली थाने, बरेईपाली थाने और सदर पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र के भीतर आने वाले इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है. एसपी ने कहा, ‘शांति सुनिश्चित करने के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे हैं.’

ओडिशा के पुलिस महानिदेशक सुनील बंसल ने भी स्थिति का जायजा लेने के लिए शहर का दौरा किया. उन्होंने लोगों से पुलिस और प्रशासन का सहयोग करने की अपील की और कहा कि शहर में जल्द ही सामान्य स्थिति बहाल कर दी जाएगी.

सूत्रों ने कहा कि पुलिस ने शहर में हिंसा के सिलसिले में अब तक 85 गिरफ्तारियां की हैं. हिंसा 12 अप्रैल को शुरू हुई थी, जब स्थानीय हनुमान जयंती समन्वय समिति द्वारा एक मोटरसाइकिल रैली का आयोजन किया गया था.

रैली जब मोतीझरन चौक से गुजर रही थी, तब कुछ लोगों ने रैली पर कथित तौर पर पथराव किया. रैली में शामिल लोगों ने जवाबी कार्रवाई की और दोनों पक्षों के लोगों को चोटें आईं. पथराव में एक अधिकारी सहित कई पुलिसकर्मी भी तब घायल हो गए, जब उन्होंने हस्तक्षेप किया और स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश की.

हिंसा के मद्देनजर कई क्षेत्रों में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू की गई थी और जिला प्रशासन ने विभिन्न हितधारकों के साथ बातचीत की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 14 अप्रैल को हनुमान जयंती का जुलूस शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित किया जा सके.

हालांकि उस दिन जुलूस के रास्ते में भारी पुलिस व्यवस्था ने यह सुनिश्चित किया कि जिन इलाकों से जुलूस गुजरे, वहां कोई अप्रिय घटना न हो, लेकिन आगजनी की घटनाएं शहर के अन्य हिस्सों में हुईं और एक हत्या भी हुई.

एसपी बी. गंगाधर ने कहा, ‘हिंसा की छिटपुट घटनाएं हुई हैं’, लेकिन स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रशासन को शहर में कर्फ्यू लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा और सोमवार तक इंटरनेट सेवाएं बंद करनी पड़ीं.

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनमोहन सामल राज्य सरकार पर लगातार हमलावर बने हुए हैं, जिसे उन्होंने शहर में हिंसा के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया है.

पूर्व मंत्री सामल ने कहा, ‘अल्पसंख्यक समुदाय (मुसलमानों) के सदस्यों ने शहर में एक शांतिपूर्ण धार्मिक जुलूस पर हमला किया, लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही. राज्य सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह विफल रही है. अगर राज्य सरकार अपनी पुलिस की मदद से स्थिति से निपटने में सक्षम नहीं है, तो उन्हें केंद्रीय बलों को बुलाना चाहिए.’

भाजपा और सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है. बीजद ने भगवा दल पर संवेदनशील स्थिति से राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है.

बीजद विधायक राजकिशोर दास, जो पहले भाजपा में थे, ने कहा, ‘राज्य सरकार स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अपनी शक्तियों के दायरे में सब कुछ कर रही है. गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और पुलिस अपना काम कर रही है. भाजपा राजनीति से प्रेरित आरोप लगा रही है क्योंकि उसे हर चीज को सांप्रदायिक चश्मे से देखने की आदत है.’

जहां तक हनुमान जयंती समारोह का संबंध है, संबलपुर हमेशा से एक संवेदनशील क्षेत्र रहा है. 2015 में भाजपा के दिग्गज नेता और ओडिशा विधानसभा में विपक्ष के वर्तमान नेता जयनारायण मिश्रा को संबलपुर में हनुमान जयंती समारोह के दौरान तलवार दिखाने के लिए स्थानीय पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था.

उन्होंने प्रशासन द्वारा लगाए प्रतिबंधात्मक आदेशों का उल्लंघन किया था, जिनमें समारोह के दौरान धारदार हथियारों के प्रदर्शन से भक्तों को रोका गया था. मिश्रा, जो अब संबलपुर से मौजूदा विधायक हैं, ने अपनी गिरफ्तारी को राजनीति से प्रेरित बताया था.

लेकिन सिर्फ संबलपुर ही नहीं है, जहां ऐसे मौकों पर सांप्रदायिक हिंसा का जोखिम होता है. राज्य के कई अन्य क्षेत्रों, विशेष रूप से कंधमाल और मयूरभंज जैसे आदिवासी बहुल जिलों में अतीत में सांप्रदायिक घटनाएं देखी गई हैं.

2008 में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के विवादास्पद नेता लक्ष्मणानंद सरस्वती और उनके चार शिष्यों की जिले के जलेसपेटा आश्रम में हत्या के बाद दंगे भड़क गए थे. इसमें ईसाई समुदाय के 30 से अधिक सदस्य मारे गए, जबकि 600 से अधिक गांवों में तोड़फोड़ की गई और 54,000 लोग बेघर हो गए थे.

कंधमाल, जहां ईसाई आबादी अच्छी खासी है, में 2007 में भी दंगे हुए थे, लेकिन सरस्वती की हत्या के बाद जिस पैमाने पर हिंसा हुई, वह अभूतपूर्व थी और उसने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया था.

चरम हिंदुत्ववादी ताकतों और अल्पसंख्यकों, विशेषकर आदिवासी बेल्ट में रहने वाले ईसाइयों के बीच टकराव ने 1990 के दशक के अंत में गंभीर रूप लेना शुरू किया था.

1998 में आंध्र प्रदेश की सीमा से सटे गजपति जिले के रामगिरि-उदयगिरि क्षेत्र में कुछ ईसाई बहुल गांवों पर कथित रूप से हमला किया गया और घरों में आग लगा दी गई थी.

लेकिन ओडिशा के इतिहास की सबसे वीभत्स सांप्रदायिक घटना 1999 में क्योंझर जिले के मनोहरपुर गांव में घटी. ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस (58) और उनके दो नाबालिग बेटों को भीड़ द्वारा गांव में जिंदा जला दिया गया था.

भीड़ का मानना ​​था कि वह संदिग्ध तरीकों से धर्मांतरण में लिप्त थे. इसके बाद मयूरभंज के पास जमाबनी में एक कैथोलिक पादरी अरुल दास की हत्या कर दी गई थी.

हालांकि, 2008 के कंधमाल दंगों की यादें लोगों की जहन में हमेशा बनी रहेंगी. यह राज्य के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी साबित हुआ, जिसके कारण 2009 में भाजपा के साथ सत्तारूढ़ बीजद का 11 साल पुराना गठबंधन टूट गया.

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इस साझेदारी को समाप्त करके अपनी धर्म-निरपेक्ष साख को बचाने की कोशिश की थी, क्योंकि भाजपा को व्यापक तौर पर उन ताकतों के प्रति सहानुभूति रखते देखा गया था, जिन्होंने कंधमाल में तबाही मचाई थी.

2009 के बाद से राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं बहुत कम हुई हैं और 2008 में कंधमाल में जो हुआ, वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ.

लेकिन राजनीतिक समीक्षक, जो संबलपुर में हाल की गड़बड़ी को एक अशुभ संकेत के रूप में देखते हैं, चाहते हैं कि सरकार सतर्क रहे और उपद्रवियों से सख्ती से निपटे.

राजनीतिक विश्लेषक शशिकांत मिश्रा कहते हैं, ‘सरकार को ऐसे सभी मामलों में तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए. यह संदेश जाना चाहिए कि गड़बड़ी करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. यही एकमात्र तरीका है जिससे हम कंधमाल की पुनरावृत्ति को रोक सकते हैं.’

(लेखक ओडिशा के पत्रकार हैं)

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