चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि मतगणना में वीवीपैट पर्चियों की गिनती की शुरुआत से ही ईवीएम में मतदाताओं का विश्वास हासिल किया जा सकता है. वीवीपैट प्रणाली के साथ ईवीएम मतदान प्रणाली का सटीक होना सुनिश्चित करते हैं.
नई दिल्ली: राज्यों में जल्द होने वाले विधानसभा चुनावों में सभी वीवीपैट (VVPATS/वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) की गिनती की मांग वाली एक जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट की एकल न्यायाधीश जस्टिस एमआर शाह खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दायर इस जनहित याचिका में चुनाव आयोग को आवश्यक बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है, ताकि मतदाता यह सत्यापित कर सकें कि उनका वोट ‘दर्ज’ और ‘गिना’ गया है. वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे के उपलब्ध नहीं होने के कारण मामले की सुनवाई स्थगित कर दी गई.
जनहित याचिका में कहा गया है कि ‘वीवीपैट’ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की एक अनिवार्य आवश्यकता है और चुनाव आयोग को आने वाले विधानसभा चुनावों में सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती करने का निर्देश दिया जाना चाहिए.
कहा गया है, ‘ईवीएम में मतदाताओं का विश्वास ‘वीवीपैट’ की शुरुआत से ही हासिल किया जा सकता है. वीवीपैट प्रणाली के साथ ईवीएम मतदान प्रणाली की सटीकता सुनिश्चित करते हैं.’
याचिका में कहा गया है कि मतदान के रूप में वोट दर्ज किया गया है या नहीं, वीवीपैट पर्ची के जरिये यह आवश्यकता पूरी हो जाती है. जहां तक ‘वोट की गणना रिकॉर्ड की गई है’ का सवाल है तो इस संबंध में एक रिक्तता है.
दिलचस्प बात यह है कि नोट गिनते की मशीनों का उपयोग करके वीवीपैट पर्चियों की गिनती का प्रस्ताव चुनाव आयोग को भेजा गया है.
एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कहते हैं, ‘अगर वे नोट गिनने वाली मशीनों का इस्तेमाल करने का फैसला करते हैं तो सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती चंद सेकंड में की जा सकती है. इन मशीनों को फिर से प्रोग्राम किया जा सकता है या मशीन को फिट करने के लिए कागज के आकार को बड़ा किया जा सकता है. तकनीक उपलब्ध है, केवल इच्छा की आवश्यकता है.’
एक पूर्व सिविल सेवक और चुनाव पर नागरिक आयोग के सदस्य एमजी देवसहायम कहते हैं, ‘जर्मनी में वे पेपर बैलट सिस्टम पर वापस चले गए, क्योंकि ईवीएम/वीवीपैट पद्धति को उनके सुप्रीम कोर्ट ने ‘असंवैधानिक’ पाया था.’
कंप्यूटर साइंस विशेषज्ञ सुभाशीष बनर्जी कहते हैं, ‘पांच विधानसभा क्षेत्रों के वोटों की गिनती का कोई सांख्यिकीय आधार नहीं है, जैसा कि अभी हो रहा है. अगर एक उचित सांख्यिकीय लेखापरीक्षा की जानी है तो सभी मतों की गणना की जानी चाहिए. यह कुछ ऐसा है जो बर्कले विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ अध्ययनों ने भी सुझाया है.’
जानकारों का कहना है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के पांच मतदान केंद्रों से वीवीपैट पर्चियों की गिनती शुरू में करने के बजाय मतगणना प्रक्रिया के अंत में की जाती है और जो व्यक्ति हारता है, उसके पास यह जांचने के लिए बहुत कम प्रेरणा होती है कि स्लिप मैच करती है या नहीं.
इस जनहित याचिका में 2019 के आम चुनावों के दौरान आंध्र प्रदेश के मायदुकुर विधानसभा क्षेत्र में पड़े वोटों के बेमेल होने का उदाहरण भी दिया गया है.
सीसीई रिपोर्ट का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है, ‘चुनाव आयोग अनावश्यक और समय लेने वाली प्रक्रिया होने का हवाला देकर ईवीएम के परिणामों के साथ वीवीपैट पेपर पर्चियों की गिनती के मिलान से इनकार कर रहा है.’
2019 में भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू और 21 अन्य दलों द्वारा कम से कम 50 प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों की गिनती की मांग वाली एक समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था. एक विधानसभा क्षेत्र में वीवीपैट पर्चियों की गिनती एक से बढ़ाकर पांच मतदान केंद्रों तक करने के अदालत के आदेश के बाद यह समीक्षा याचिका दायर की गई थी.
मालूम हो कि वीवीपैट, ईवीएम से जुड़ी एक स्वतंत्र प्रिंटर प्रणाली है. जब मतदाता वोट डालता है तो वीवीपैट से निकलने वाली पर्ची उनको यह बताती है कि उनका वोट किस प्रत्याशी को गया है. हर ईवीएम के साथ वीवीपैट मशीन लगाई जाती है.
दरअसल मतगणना के दौरान अक्सर ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोप लगाए जाते रहे हैं, इसलिए विपक्ष अक्सर वीवीपैट की पर्चियों की गिनती की मांग करने पर बल देता है.
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