दुनिया में ‘डीएनए डे’ क्यों मनाया जाता है?

विशेष: जैसे एक इमारत को खड़ा करने से पहले एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है, उसी प्रकार एक कोशिका कैसा रूप लेगी या कैसे काम करेगी- यह उसके अंदर का डीएनए ही निर्धारित करता है. इस डीएनए की खोज को आज सत्तर साल पूरे हो गए हैं.

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(फोटो साभार: scitechdaily.com)

विशेष: जैसे एक इमारत को खड़ा करने से पहले एक ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है, उसी प्रकार एक कोशिका कैसा रूप लेगी या कैसे काम करेगी- यह उसके अंदर का डीएनए ही निर्धारित करता है. इस डीएनए की खोज को आज सत्तर साल पूरे हो गए हैं.

(फोटो साभार: scitechdaily.com)

डीएनए को जीवन का ‘ब्लूप्रिंट’ कहा जाता है. जैसे एक इमारत को खड़ा करने से पहले एक ब्लूप्रिंट या नक्शा तैयार किया जाता है, उसी प्रकार एक कोशिका कैसा रूप लेगी या कैसे काम करेगी- यह उसके अंदर का डीएनए ही निर्धारित करता है.

आज के दिन, ठीक 70 साल पहले, वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ में कुछ लेख प्रकाशित हुए. इन लेखों मे डीएनए का ढांचा पहली बार समझा गया था. इस कारण से आज के दिन को डीएनए डे के नाम से मनाया जाता है.

20वीं सदी के पहले दशकों में वैज्ञानिकों के एक एटम की संरचना खोजी- इस खोज से दुनिया की कहानी मे एक बड़ा बदलाव आया. इसका सबसे भयानक रूप द्वितीय विश्व युद्ध मे जापान पर गिराए गए एटम बम था. पर जहां ये सब हो रहा था, जीवन का रहस्य हम सबसे छुपा रहा. ऐसा 1953 में बदल गया.

वैज्ञानिक बहुत समय से जानते थे की एक पीढ़ी से दूसरी तक जाने में कोई रसायन होगा. यह रसायन बहुत ख़ास होगा- उसको इतना स्थिर होना होगा की माता-पिता के गुण अगली पीढ़ी तक जाएं. जैसे आंखों का रंग. पर इस रसायन को ऐसा भी होना होगा कि कभी-कभी कुछ रासायनिक बदलाव के कारण नई पीढ़ी के गुण मां-बाप से अलग होते हैं.

इस कहानी के मुख्य पात्र एक 23 वर्षीय अमेरिकी जेम्स वॉटसन और 35 वर्षीय फ्रांसिस क्रीक हैं. क्रीक विश्व युद्ध से पहले भौतिक विज्ञान को लेकर काम करते थे, पर विश्व युद्ध के बाद अपना वैज्ञानिक पेशा दोबारा शुरू करने को वह जीव विज्ञान की ओर मुड़े. दोनों की मुलाकात हुई कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की कैवेंडिश प्रयोगशाला में, साल था 1951.

यह तथ्य की एक पीढ़ी से दूसरी तक जानकारी कोई रसायन ले जाता है, ऐसी सोच ग्रेगर मेंडल के मटर के पौधों के प्रयोग से पता थी. बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों से यह पता था कि यह रसायन कोशिका के अंदर पाया जाता है और उसे क्रोमोज़ोम (Chromosome) कहा जाता है. और कुछ दशकों के बाद पता चला कि क्रोमोज़ोम, प्रोटीन और डीएनए से बना होता है. तो इन दोनों में कौन-सा रसायन पीढ़ी-दर-पीढ़ी जानकारी ले जाने की लिए जिम्मेदार है?

1950 से आसपास यह जाना जाता था कि ऐसा रसायन प्रोटीन होगा. ऐसा इसलिए था क्योंकि उस समय यह जाना जाता था कि प्रोटीन बहुत से आकार में आते हैं, और वह रासायनिक रूप मे सक्रिय होते हैं. इसके विपरीत, डीएनए रासायनिक तौर पर निष्क्रिय होता है. वॉटसन और क्रीक मानते थे कि जीवन का रहस्य डीएनए के ढांचे (स्ट्रक्चर) को समझने से ही सुलझेगा. इसलिए वह डीएनए के ढांचे को बारीकी से समझने में लग गए.

उस समय रासायनिक ढांचों को समझने के लिए एक तकनीक का विकास हो रहा था- जो थी एक्सरे क्रिस्टेलोग्राफी (X-ray crystallography). इस तकनीक पर दुनिया का सर्वोत्तम काम लंदन के किंग्स कॉलेजमें मॉरिस विल्किंस के नेतृत्व में हो रहा था.

वैज्ञानिक राजनीति के एक बेहतरीन उदाहरण के रूप मे, हमारी कहानी मे एक और पात्र हैं- क्रिस्टेलोग्राफी में माहिर रोज़ालिंड फ्रैंकलिन, जो किंग्स कॉलेज मे डीएनए के ढांचे को हल करना चाहती थी. ऐसा करते समय वह सोचती थीं कि वे परियोजना का नेतृत्व खुद कर रही थीं, पर विल्किंस की सोच में प्रोजेक्ट उनके नेतृत्व में चल रहा था.

1952 मे फ्रैंकलिन का एक भाषण सुनकर वॉटसन और क्रीक ने डीएनए का एक ढांचा तैयार किया और मॉरिस और फ्रैंकलिन को उसका निरीक्षण करने के लिए बुलाया. ढांचे पर एक नज़र डालते ही फ्रैंकलिन समझ गईं कि वह गलत था. ढांचे का मज़ाक उड़ाने के लिए उन्होंने अगले कुछ दिनों मे यह लेख भेजा.

(साभार: नेचर डॉट कॉम)

डीएनए का गलत ढांचे का प्रस्ताव करने के बाद वॉटसन कहते हैं, ‘तब मेरे पास खुश होने के दो ही तरीके थे- डीएनए का ढांचा ठीक करूं  या एक महिला दोस्त बनाऊं!’

1953 की शुरुआत में वॉटसन को मॉरिस द्वारा फ्रैंकलिन की ली हुई क्रिस्टेलोग्राफी की तस्वीर दिखाई गई- यह तस्वीर विज्ञान में सबसे मशहूर तस्वीर जानी जाती है- इसका नाम तस्वीर 51 है.

फोटो 51 (साभार: विकीपीडिया)

फ्रैंकलिन द्वारा ली तस्वीरें और रिपोर्ट देख वॉटसन और क्रीक डीएनए का रहस्य समझ गए. डीएनए का ढांचा समझने के लिए हमें उसकी बारीकी में घुसना होगा.

डीएनए एक जंजीर है. जंजीर की हर एक कड़ी तीन भाग से बनती है- शुगर, फॉस्फेट, और एक बेस. जंजीर की हर एक कड़ी में शुगर और फॉस्फेट होता है, पर बेस 4 में से कोई एक होता है- इन चार बेस का नाम A, T, G, और C है. ऐसी कड़ियां आपस में जोड़कर एक जंजीर बनती है. जैसे कि नीचे चित्र में दिखाया गया है – इस डीएनए के चित्र को ‘A-T-G-C’ पढ़ा जाता है.

पर वॉटसन और क्रीक ने बताया कि डीएनए एक नहीं, दो जंजीर से बनता है. दूसरी जंजीर पहली के विपरीत दिशा में चलती है. और, जहां-जहां पहली जंजीर में A है, वहां दूसरी में T होता है, जहां-जहां पहली में C होता है, दूसरी में G होता है.

कहानी के आखिरी पड़ाव में उन्होंने बताया कि डीएनए का ढांचा एक सीधा सीढ़ी के जैसा नहीं पर एक घुमावदार ढांचा है.

डीएनए स्ट्रक्चर. (फोटो साभार: genome.gov)

1953 में यह नतीजा छपने के बाद दुनिया भर में उसका महत्व समझा गया. नौ साल बाद क्रीक, वॉटसन और विल्किंस को इस खोज के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया. फ्रैंकलिन का निधन 1958 में हो गया था और इसी कारण उनका नाम पुरस्कृत वैज्ञानिकों की सूची में नहीं था.

(लेखक आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर हैं.)

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