क्या कर्नाटक की जीत से आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है?

कर्नाटक की जीत से कांग्रेस और विपक्षी दलों की एकता को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए निश्चित तौर पर संजीवनी मिल गई है. लेकिन उन्हें इस बात को भी समझना होगा कि भाजपा के वोट प्रतिशत में कोई ख़ास नुकसान नहीं हुआ है.

/
कर्नाटक में सिद्दरमैया के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस नेताओं के साथ विभिन्न विपक्षी दलों के नेता. (फोटो साभार: फेसबुक/@INCKarnataka)

कर्नाटक की जीत से कांग्रेस और विपक्षी दलों की एकता को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए निश्चित तौर पर संजीवनी मिल गई है. लेकिन उन्हें इस बात को भी समझना होगा कि भाजपा के वोट प्रतिशत में कोई ख़ास नुकसान नहीं हुआ है.

कर्नाटक में सिद्दरमैया के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस नेताओं के साथ विभिन्न विपक्षी दलों के नेता. (फोटो साभार: फेसबुक/@INCKarnataka)

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की जीत के तौर पर राज्य की जनता ने कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर पहली मुहर लगाकर एक नया संदेश देने की कोशिश की है. निश्चित तौर पर कर्नाटक की जीत से कांग्रेस और विपक्षी दलों की एकता को आगामी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए संजीवनी मिल गई है.

कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक में 1989 के बाद से सबसे अधिक 42.9 फीसदी मत प्राप्त करके 136 सीटों पर जीत हासिल की है, वहीं भाजपा को मात्र 36 प्रतिशत वोट शेयर प्राप्त हुआ है. यह सच है कि कर्नाटक जीत से भाजपा को तगड़ा झटका लगा है क्योंकि भाजपा की इस हार से दक्षिण की राजनीति का मुख्य प्रवेश-द्वार कहे जाने वाले इस प्रांत ने भाजपा के लिए करीब-करीब दरवाजे बंद कर दिए हैं.

दक्षिण भारत का कर्नाटक इकलौता ऐसा राज्य था, जहां भाजपा ने अपना सर्वस्व झोंककर पहली बार किसी तरह से सत्ता पर काबिज होकर बड़ी कामयाबी हासिल की थी. भाजपा को उम्मीद थी कि कर्नाटक की विजय का असर दक्षिण के अन्य राज्यों के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा. यही कारण है कि पीएम मोदी ने कर्नाटक के साथ-साथ केरल में भी रोड शो किया था.

भाजपा 104 सीटों से सिमटकर 65 पर आ गई है, अर्थात 2018 के मुकाबले उसे इस चुनाव में 39 सीटों का नुकसान हुआ है हालांकि भाजपा के वोट प्रतिशत में कोई खास बदलाव नहीं आया है क्योंकि भाजपा को 2018 की बनिस्बत केवल 0.2 प्रतिशत यानी मोटे तौर पर नगण्य वोट का नुकसान हुआ.

कांग्रेस को करीब 4.9 % वोट का इजाफा हुआ है इसका प्रमुख कारण है कि कर्नाटक के तीन मजबूत समुदायों लिंगायत, कुरुबा और वोक्कालिगा ने भाजपा से इतर कांग्रेस को वोट किया है. जोश से लबरेज कांग्रेस पार्टी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत का श्रेय इस समय वरिष्‍ठ नेता राहुल गांधी को देगी, क्‍योंकि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान उन्‍होंने सबसे ज्‍यादा वक्त कर्नाटक में बिताया.

स्वाभाविक रूप से, इस जीत से पार्टी के कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के बीच उनकी जुझारू छवि का उम्दा असर पड़ना तय है. वहीं, मल्लिकार्जुन खड़गे का मुकाम भी पार्टी में पहले से और अधिक दृढ़ होगा, चूंकि कर्नाटक उनका गृह राज्‍य है.

कर्नाटक की जीत से पूरे देश में कांग्रेस की इमेज बेहतर होने की प्रबल संभावना है, क्योंकि इस चुनाव का असर हाल ही में होने वाले चुनावी राज्यों राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्‍तीसगढ़ में अवश्य देखने को मिल सकता है. कांग्रेस की इस जीत का प्रभाव बाकी विपक्षी दलों पर भी नजर आ सकता है क्योंकि इससे पहले तक कई क्षेत्रीय विपक्षी दल केंद्र की राजनीति में कांग्रेस पर दांव लगाने को तैयार नहीं थे, लेकिन इस जीत से विपक्षी दल कांग्रेस के पीछे खड़े होने की संभावना जता सकते हैं.

दूसरी ओर, भाजपा को कर्नाटक की हार से दोहरा झटका लगा है. पहला, दक्षिण भारतीय राज्‍यों में धीरे-धीरे बढ़ रहे जनाधार पर विराम लग सकता है. दूसरा, भाजपा के कांग्रेसमुक्‍त भारत के दिवास्वप्न पर भी कांग्रेस ने विराम लगा दिया है. इस विराम ने पीएम मोदी की अजेय छवि को भी नुकसान पहुंचाया है जबकि पीएम मोदी की अधिक से अधिक रैलियों से राज्‍यों की जीत के लिए बड़ी भूमिका मानी जाती रही है.

वहीं, भाजपा को आने वाले पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनावों में जीत के लिए ज्‍यादा ताकत लगानी पड़ेगी, ताकि वह आगामी लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी को लगे इस डेंट से उबर सके.

इसी क्रम में हाल ही में हुए कर्नाटक के मंत्रिमंडल विस्तार में कांग्रेस ने अभी से होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी कर दी है. और कांग्रेस ने कर्नाटक मंत्रिमंडल में जातीय समीकरणों से लेकर क्षेत्रीय पसंद का ख़याल रखते हुए और उन्हें कैबिनेट में उचित जगह देकर यह साबित करने की कोशिश की है कि कांग्रेस की इस जीत का फॉर्मूला केवल कर्नाटक तक ही सीमित नहीं रहने वाला है. बल्कि ऐसा भी माना जा सकता है कि मंत्रिमंडल विस्तार के जरिये कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 में पड़ोसी राज्यों में भी अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए अभी से कमर कस ली है.

कांग्रेस ने अपने मंत्रिमंडल में नामधारी रेड्डी समुदाय से एक, वोक्कालिगा समुदाय से चार, अनुसूचित जाति से तीन, वीरशैव लिंगायत समुदाय से एक, अनुसूचित जनजाति से दो, ब्राह्मण समुदाय से एक, रेड्डी लिंगायत समुदाय से एक, पंचमशाली लिंगायत समुदाय से दो, सदर लिंगायत समुदाय से एक, आदि बनजिगा लिंगायत समुदाय से एक, मोगावीरा (पिछड़ा वर्ग) से एक, मुस्लिम समुदाय से एक, जैन समुदाय से एक, मराठा (पिछड़ा वर्ग) से एक, राजू (पिछड़ा वर्ग) से एक, कुरुबा (पिछड़ा वर्ग) से एक, एडिगा (पिछड़ा वर्ग) से एक मंत्री बनाया है.

इस मंत्रिमंडल में समावेशी भागीदारी के निहतार्थ सीधे अगले साल होने वाला लोकसभा चुनाव हैं. कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं. कांग्रेस कर्नाटक से अधिकतम सीट जीतने का प्लान कर रही है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कर्नाटक में सिर्फ एक सीट पर संतोष करना पड़ा था और वह सीट बेंगलुरु (ग्रामीण) से डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश चुनाव जीते थे. जबकि भाजपा ने कर्नाटक में कुल 25 सीटें जीतने में सफलता प्राप्त की थी.

कांग्रेस कास्ट कैबिनेट कॉकटेल का फायदा लोकसभा चुनाव में उठाना चाहती है, लेकिन कांग्रेस के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव इतना आसान भी नहीं है क्योंकि लोकसभा चुनाव के मुद्दे और किसी राज्य के चुनाव के मुद्दे बहुत कुछ अलग होते हैं.

गौरतलब है कि भाजपा के वोट प्रतिशत में कोई खास नुकसान नहीं हुआ है, भाजपा को मात्र 0.2 प्रतिशत वोट शेयर का घाटा हुआ है. यह तब संभव हो पाया है, जब कर्नाटक राज्य के तीन सबसे बड़े समुदायों ने कांग्रेस को वोट किया है. कर्नाटक में लिंगायत समुदाय लगभग 17 प्रतिशत अनुपात के साथ एक शक्तिशाली समुदाय है, और अब तक राज्य में नौ मुख्यमंत्री लिंगायत समुदाय से रह चुके हैं.

लंबे समय से लिंगायत समुदाय भाजपा का कोर वोट बैंक रहा है और बीएस येदियुरप्पा को दरकिनार किए जाने से भाजपा को लिंगायत समुदाय के गुस्से का सामना करना पड़ा. दूसरी ओर, कांग्रेस ने वोक्कालिगा समुदाय को 42 टिकट दिए थे जिसमें से 22 ने जीत दर्ज की और इसी समुदाय से डीके शिवकुमार आते हैं.

भाजपा ने 13 ब्राह्मण प्रत्याशियों को टिकट दिया जिसमें से 8 को जीत हासिल हुई, जबकि कांग्रेस ने 7 ब्राह्मण को उम्मीदवार बनाया, जिनमें से महज 3 ने जीत दर्ज की है. इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस को अति पिछड़ी जातियों के राजनीतिक  प्रतिनिधत्व की ओर ध्यान  देने की जरूरत है क्योंकि अति पिछड़ी जातियां और ब्राह्मण वोट बैंक ही भाजपा का परंपरागत वोट बैंक है. अगर कांग्रेस अति पिछड़ी जातियों को लुभाने में कामयाब होती है तो कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है.

इसलिए जरूरी है कि कांग्रेस अति पिछड़ी जातियों के सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों को पहचाने और उनके लिए विशेष नीतियों की शुरुआत करें अन्यथा भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि उसका कोर वोट बैंक अब भी बरकरार है.

(डॉ. विनोद यादव शिक्षाविद हैं. पंकज चौरसिया जामिया मिलिया इस्लामिया में रिसर्च स्कॉलर हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq