तेलंगाना पुलिस ने अगस्त 2022 में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं पर ‘हथियारों के बल पर लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार गिराने’ की साज़िश का आरोप लगाते हुए केस दर्ज किया था, जिसमें यूएपीए सहित विभिन्न धाराओं में 152 लोगों को आरोपी बनाया गया. नामजद लोगों का कहना है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी.
नई दिल्ली: तेलंगाना पुलिस ने अगस्त 2022 में राज्य में मानवाधिकार कार्यकर्ता और हैदराबाद विश्वविद्यालय (यूओएच) के सेवानिवृत्त प्रोफेसर जी. हरगोपाल और 151 अन्य के खिलाफ कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामले दर्ज किए हैं.
उन पर ‘बंदूक की नोक पर लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार की सत्ता छीनने’ की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है.
हालांकि मुलुगु जिले की ताड़वाई पुलिस ने 19 अगस्त, 2022 को मामला दर्ज किया था, लेकिन यह गुरुवार (15 जून) को प्रकाश में आया, जब पीपुल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) के अध्यक्ष चंद्रमौली ने रंगारेड्डी जिले में एलबी नगर अदालत का दरवाजा खटखटाया.
चंद्रमौली की अपील के आधार पर अदालत ने संबंधित अधिकारियों को उनके खिलाफ दायर सभी एफआईआर पेश करने का निर्देश दिया. पुलिस ने एक एफआईआर पेश की, जिसमें यूएपीए सहित विभिन्न धाराओं के तहत 152 व्यक्तियों को आरोपी बनाया गया है.
इसमें नामजद लोगों में प्रोफेसर हरगोपाल के अलावा, उस्मानिया विश्वविद्यालय (ओयू) की प्रोफेसर पद्मजा शॉ, तेलंगाना सिविल लिबर्टीज कमेटी के अध्यक्ष प्रोफेसर गड्डम लक्ष्मण, इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लॉयर्स के जस्टिस (सेवानिवृत्त) एच. सुरेश, कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज, वकील सुरेंद्र गाडलिंग और कार्यकर्ता अरुण फरेरा प्रमुख हैं.
जब साउथ फर्स्ट वेबसाइट ने एफआईआर में नामजद लोगों में से कुछ से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि उन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है और उन्हें पुलिस से कोई नोटिस नहीं मिला है.
152 लोगों पर निम्नलिखित धाराओं के तहत आरोप लगाया गया है:
आईपीसी की धारा 120बी: आपराधिक साजिश
आईपीसी की धारा 147: दंगा करना
आईपीसी की धारा 148: दंगे में घातक हथियार का उपयोग
यूएपीए की धारा 10: गैरकानूनी संगठन में सदस्यता
यूएपीए की धारा 13: गैरकानूनी गतिविधियां
यूएपीए की धारा 18: साजिश
यूएपीए की धारा 20: आतंकवादी गिरोह या आतंकवादी संगठन की सदस्यता
यूएपीए की धारा 38: किसी आतंकवादी संगठन को समर्थन देना
आर्म्स एक्ट की धारा 25(1-बी)(ए): बिना लाइसेंस के हथियार रखना
क्या कहती है एफआईआर
साउथ फर्स्ट द्वारा एक्सेस की गई एफआईआर से पता चला है कि परसा पुलिस के सर्कल इंस्पेक्टर वी. शंकर की शिकायत के आधार पर मामला दर्ज किया गया था.
उन्होंने दावा किया है कि उन्हें 19 अगस्त, 2022 को तेलंगाना में सीपीआई (माओवादी) के सदस्यों के एक अवैध सभा के बारे में सूचना मिली थी. बैठक में भाग लेने के लिए बी. चोक्का राव, कंकनला राजी रेड्डी, कोयदा संबैया, कुर्सम मग्गू, मड़कम सन्नाल, कुंजू वीरैया, कोवासी गंगा, मुचाकी उंगल, जमुना, रोशन और अन्य समूहों और मिलिशिया सदस्यों को शामिल किया गया था.
इंस्पेक्टर ने आरोप लगाया, ‘वे सरकारी अधिकारियों पर हमला करने, सरकारी संपत्ति को नष्ट करने, आदिवासी युवाओं को प्रतिबंधित सीपीआई-माओवादी में भर्ती करने, निर्दोष लोगों को आतंकित करने और पार्टी को वित्तीय सहायता प्रदान करने सहित विभिन्न गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल थे.’
एफआईआर कहती है, ‘इसकी सूचना मिलने पर शंकर और पुलिस अधिकारियों की एक टीम ताड़वई के आसनगुड़ा, एल्लापुर गई. उन्होंने कथित तौर पर हरे रंग की वर्दी पहने सशस्त्र व्यक्तियों का सामना किया, जिनकी पहचान प्रतिबंधित सीपीआई- माओवादी के सदस्यों के रूप में की गई थी. अधिकारियों ने उन्हें आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन वे घने जंगल में भाग गए.’
यह भी कहा गया है कि ऑपरेशन के दौरान पुलिस ने कथित तौर पर माओवादियों के मिलने की जगह- एक प्लास्टिक से ढके तंबू की खोज की. अंदर उन्हें तीन किट, सोलर पैनल का एक सेट, पांच पानी के डिब्बे, दो लीटर की सात पानी की बोतलें, दो स्टील की थालियां, एक रस्सी (लगभग 10 मीटर), एक चाकू, एक पत्थर, दो काली चादरें, दो चावल के कटोरे, दो घंटियां, दो बोरी, एक जोड़ी सैंडल, एक लाइटर, दो प्लास्टिक के गिलास और तीन छाते मिले. इसके साथ ही प्रतिबंधित माओवादी साहित्य और 152 लोगों और विभिन्न संगठनों के नाम भी कथित तौर पर पाए गए थे.
प्राथमिकी में कहा गया है कि साहित्य में तेलंगाना विद्यार्थी संगम (टीवीएस), डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन (डीएसयू), तेलंगाना रैयतंगा समिति (टीआरएस), तेलंगाना डेमोक्रेटिक फोरम, कुला निर्मूलन पोराटा समिति, प्रजा कला मंडली (पीकेएम), पीपुल्स डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम), तेलंगाना प्रजा फ्रंट (टीपीएफ), सिविल लिबर्टीज कमेटी (सीएलसी), राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए समिति (सीआरपीपी), संयुक्त हिंदू-विरोधी फासीवादी बल, क्रांतिकारी लेखक संघ (वीरसम), डेमोक्रेटिक टीचर्स फोरम (डीटीएफ), इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपल्स लॉयर्स जैसे विभिन्न सार्वजनिक संगठनों के नेताओं और सदस्यों के सक्रिय कार्यों का उल्लेख है.
एफआईआर कहती है कि केंद्रीय समिति के सदस्य पुल्लुरी प्रसाद राव, जिन्हें चंद्रन्ना के नाम से जाना जाता है, के निर्देशों के आधार पर सरकारी अधिकारियों और संपत्तियों को निशाना बनाया गया था. उन्होंने निर्दोष लोगों को आतंकित करने और पार्टी के लिए धन जुटाने के लिए आदिवासी युवाओं को सीपीआई- माओवादी में भर्ती किया.
एफआईआर में कहा गया है, ‘उक्त माओवादी पार्टी के एजेंडा के अनुसार, अज्ञात नेता, सेना समूह के सदस्य, मिलिशिया समूह के सदस्य और प्रतिबंधित माओवादी पार्टी सरकार के खिलाफ काम कर रहे हैं जो राजनेताओं, पुलिसकर्मियों को मारने और बंदूक की नोक पर लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार की सत्ता पर कब्जा करने के लिए काम कर रहे हैं.’
एफआईआर से बेखबर ‘आरोपी’
साउथ फर्स्ट से बात करते हुए हैदराबाद विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सोशल साइंस के एक सेवानिवृत्त डीन प्रोफेसर हरगोपाल ने कहा कि गुरुवार को यह मामला सामने आने तक उन्हें एफआईआर के बारे में पता नहीं था. उन्हें 42वां आरोपी बनाया गया है.
प्रो. हरगोपाल ने कहा, ‘नहीं, हमें पहले से कोई जानकारी नहीं थी. यह हमारे लिए हैरानी की बाथ थी. 10 महीने पहले हमें इसकी जानकारी नहीं थी. यह किसी अन्य केस में सामने आया. अदालत ने उनके (चंद्रमौली) खिलाफ मामलों की संख्या के बारे में पूछताछ की और पुलिस ने खुलासा किया कि उस पर अन्य मामलों में मामला दर्ज किया गया है. तभी उक्त मामला सामने आया जिसमें 152 लोग शामिल थे.’
उन्होंने आगे कहा कि उन्हें पुलिस की ओर से कोई समन या नोटिस नहीं मिला है.
इस बीच हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की प्रोफेसर पद्माजा शॉ ने कहा कि उन्हें भी इस मामले की जानकारी नहीं है.
41वें आरोपी के तौर पर नामजद प्रो. शॉ ने साउथ फर्स्ट को बताया, ‘हम सब जो नामजद हैं, उन्हें इस मामले के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. पहले, मैंने केवल यूएपीए के बारे में पढ़ा था और यह नहीं जानती थी कि लोग इस तरह के कानूनी मामलों को कैसे देखते हैं. हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कैसे आगे बढ़ना है.’
उन्होंने कहा, ‘यह लोकतांत्रिक प्रणाली का पतन है. यह देखकर दुख होता है कि यूएपीए के तहत उन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं जो केवल अपनी असहमति व्यक्त कर रहे हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खड़े हैं. ऐसा लगता है कि सार्वजनिक क्षेत्र में अपनी चिंताओं को रखने वालों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है.’
आगे के कदम के बारे में पूछने पर प्रो. हरगोपाल ने कहा कि वे एक बैठक करेंगे और वहां लिए गए निर्णयों के आधार पर उनके कार्यों का निर्धारण किया जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘यह स्थिति लोकतंत्र, संवैधानिक मूल्यों और स्वतंत्रता संग्राम के सार के टूटने का प्रतीक है. क्या हम वास्तव में एक लोकतांत्रिक समाज में रह रहे हैं या नहीं, यह अब महत्वपूर्ण सवाल है.’
प्रो. हरगोपाल ने अभियुक्तों के खिलाफ सरकार द्वारा मनमानी शक्ति के दुरुपयोग की आलोचना की. उन्होंने जोर देकर कहा कि उन सभी के कुछ सामाजिक सरोकार हैं और वे समाज में नैतिक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
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