केंद्र सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, भारत में जम्हूरियत भी तभी तक है और लोकतंत्र तभी तक सुरक्षित है जब तक बहुसंख्यकों की आबादी है.
भोपाल: केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि भारत में लोकतंत्र तभी तक सुरक्षित है जब तक बहुसंख्यकों की आबादी है. बहुसंख्यक आबादी गिरेगी उस दिन लोकतंत्र भी खतरे में होगा, इसलिए देश की जनसांख्यिकी में हो रहे बदलाव को रोकने के लिए देश की जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में कानून बनना चाहिए.
सरोकार समिति द्वारा गुरुवार को ‘राष्ट्रवाद के संकल्प से नव भारत की सिद्धि’ विषय पर व्याख्यान देते हुए सिंह ने कहा, मैं कहना चाहता हूं कि भारत में जम्हूरियत भी तब तक है और लोकतंत्र भी तभी तक सुरक्षित है जब तक बहुसंख्यकों की आबादी है. जिस दिन बहुसंख्यकों की आबादी गिरेगी उस दिन लोकतंत्र भी, मैं तो कहता हूं विकास और सामाजिक समरसता दोनों खतरे में होंगे.
उन्होंने कहा, देश में जनसांख्यिकी बदलाव हो रहा है. उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, केरल और अन्य राज्यों सहित देश के 54 जिलों में हिंदू आबादी गिर गई है और ये जिले मुस्लिम बहुसंख्यक हो गए हैं. जनसांख्यिकी बदलाव भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा बन रहा है. इसलिए आबादी नियंत्रण के संबंध में देश में एक कानून बनना चाहिए जो सभी धर्म के लोगों पर एक समान रूप से लागू हो.
सिंह ने दावा किया, मैं चुनौती और जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि देश में जहां-जहां हिंदुओं की आबादी गिरी है, वहां-वहां सामाजिक समरसता कम हुई है और राष्ट्रवाद कमजोर हो रहा है. राष्ट्रवाद के लिए जनसांख्यिकी बदलाव घातक है और इससे निपटने के लिए गांव-गांव से आवाज उठनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि आज देश की जनसांख्यिकी बदल गई है. आजादी के वक्त विभाजन के समय 1947 में पाकिस्तान के हिस्से आए भूभाग पर 22 फीसद हिंदू आबादी थी जो अब वहां मात्र 1 प्रतिशत रह गई है. इसके उलट भारत में आबादी के वक्त 90 फीसद हिंदू थे और मुस्लिम 8 प्रतिशत थे. मीडिया के अनुसार लेकिन अब भारत में मुस्लिम आबादी 8 प्रतिशत से बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई और हिंदू आबादी 90 प्रतिशत से घटकर 72 प्रतिशत हो गई है.
उन्होंने कहा कि देश के बढ़ती जनसंख्या सरकार की चिंता तो है लेकिन यह आप की भी चिंता होना चाहिए, क्योंकि इसके कारण देश में किया जा रहा विकास और रोजगार दिखाई नहीं देता है.
सिंह ने दावा किया, अगर नेहरू देश के प्रधानमंत्री नहीं होते और पटेल होते तो आज पाक अधिकृत कश्मीर भारत का अंग होता और आज फारूक अब्दुला जैसे लोग नहीं होते जो ये कहते कि कश्मीर किसी के बाप का नहीं. शुक्र मनाओ कि यह भारत है, यदि पाकिस्तान में बोलते तो तुम्हारी (अब्दुला की) जीभ काट लेते.
उन्होंने कहा कि हमारे लोकतंत्र का नंगा सच है जो राष्ट्रवाद पर भी विवाद खड़ा करते हैं. यहां राष्ट्रवाद की परिभाषा राजनीतिक दलों के हिसाब से अलग-अलग हो गई है. फारूक अब्दुला का राष्ट्रवाद अलग है, वो खाएगा यहां का और गाएगा पाकिस्तान का और कांग्रेस को राष्ट्रवाद की कल्पना का ही पता नहीं है.
उन्होंने कहा, राष्ट्रवाद के साथ देशप्रेम, देशभक्ति भी आती है. दोनों का कहीं न कहीं मिलन है. अग्रेजी में इसे नेशनलिज्म कहते हैं और उर्दू में इसे कौमियत कहते हैं. इनसाइक्लोपिडिया आॅफ इस्लामिक में कौम शब्द का अर्थ राष्ट्र से नहीं होता है. कौम शब्द का प्रयोग एक वंशानुक्रम से है यानी इस्लाम में राष्ट्रवाद की कल्पना नहीं के बराबर हैं. शायद मेरी बात से कुछ लोग सहमत नहीं होंगे.