उत्तर प्रदेश के मेरठ निवासी रॉबिन उपाध्याय को पेशे से सिविल इंजीनियर बताया जा रहा है. वर्तमान में बेरोज़गार उपाध्याय की नज़र गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना के उपाध्यक्ष-सह-परियोजना समन्वयक के पद पर थी, जिसके लिए उन्होंने ख़ुद को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के ऑफिसर-ऑन-स्पेशल-ड्यूटी के रूप में प्रस्तुत किया था.
नई दिल्ली: किरण पटेल नाम का वह ठग तो याद होगा ही, जो खुद को पीएमओ का वरिष्ठ अधिकारी बताता था और पिछले साल पकड़ा गया था.
अब वैसा ही एक और मामला सामने आया है. एक सिविल इंजीनियर जो वर्तमान में बेरोजगार है, कथित तौर पर खुद को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के ऑफिसर-ऑन-स्पेशल-ड्यूटी के रूप में पेश करने के आरोप में पकड़ा गया है.
सूत्रों ने बताया कि आरोपी की पहचान उत्तर प्रदेश के मेरठ निवासी 48 वर्षीय रॉबिन उपाध्याय के रूप में हुई है. आरोपी ने दावा किया कि वह 25 वर्षों से अधिक समय से विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम करने वाला एक पेशेवर है.
पुलिस के मुताबिक, उपाध्याय की नजर गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना के उपाध्यक्ष-सह-परियोजना समन्वयक के पद पर थी. मामला तब सामने आया, जब अक्षत शर्मा नामक व्यक्ति ने नई दिल्ली के साइबर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई.
शर्मा ने बताया कि उनकी आधिकारिक आईडी पर एक फर्जी प्रतीत होते ईमेल एड्रेस से एक ईमेल प्राप्त हुआ था, जो कथित तौर पर केंद्रीय गृह मंत्री के ओएसडी राजीव कुमार का था.
ईमेल में आरोपी रॉबिन उपाध्याय ने शर्मा को गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए वरिष्ठ एसोसिएट उपाध्यक्ष-सह-परियोजना समन्वयक के रूप में अपनी नियुक्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया.
अपनी जांच में पुलिस को पता चला कि ईमेल आईडी [email protected] एक फर्जी अकाउंट था जो पूरी तरह से लोगों को धोखा देने के लिए बनाया गया था.
तकनीकी निगरानी के माध्यम से पुलिस टीम ने मुख्य संदिग्ध रॉबिन उपाध्याय की सफलतापूर्वक पहचान कर ली. आगे के विश्लेषण से पता चला कि ईमेल आईडी छह से सात दिन पहले बनाई गई थी और उपाध्याय के नाम से पंजीकृत थी.
अधिकारियों ने त्वरित कार्रवाई करते हुए शनिवार (8 जुलाई) शाम को उपाध्याय का पता लगाया और उन्हें मेरठ स्थित उनके आवास पर हिरासत में ले लिया. इसके बाद उन्हें मामले के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया, जैसा कि नई दिल्ली के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त हेमंत तिवारी ने पुष्टि की.
पूछताछ के दौरान उपाध्याय ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उन्होंने कहा कि एक सिविल इंजीनियर होने के नाते उनके पास सिविल निर्माण परियोजनाओं में व्यापक अनुभव है और उन्होंने अपनी जगह बनाने के लिए वर्तमान में जारी राजमार्ग परियोजनाओं और उनकी प्रगति पर शोध भी किया.
दिलचस्प बात यह है कि यह घटना इस साल की शुरुआत में हुई ऐसी ही एक घटना के बाद हुई है, जहां गुजरात के किरण पटेल को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करने के आरोप में पकड़ा गया था. पटेल जेड प्लस सुरक्षा और अन्य विशेषाधिकारों का लाभ उठा रहे थे, उन्होंने जम्मू कश्मीर के अधिकारियों को सफलतापूर्वक धोखा देकर संवेदनशील इलाकों का भी दौरा किया था.
वहीं, एक ताजा मामले में गुजरात के ही मयंक तिवारी को खुद को पीएमओ अधिकारी बताकर एक निजी स्कूल में दो बच्चों का दाखिला कराने की कोशिश करने और अपनी फर्जी पहचान का इस्तेमाल करके स्कूल से बड़ी रकम ठगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
सवाल आरोपी व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत आईडी प्रूफ्स की प्रमाणिकता पर उठते हैं. आश्चर्यजनक रूप से, पटेल के मामले में वह अहमदाबाद के मणिनगर क्षेत्र में छपा विजिटिंग कार्ड प्रस्तुत करते थे, जो छपाई/मुद्रण सेवाओं का एक जाना-पहचाना इलाका माना जाता है.
इस घटना ने साधारण मुद्रण फर्मों तक आधिकारिक टिकटों की पहुंच को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. पटेल पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था, जिनमें किसी और की पहचान धारण करना, धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और विश्वासघात शामिल हैं.
यह घटना गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी हितेश पंड्या से जुड़े हालिया घोटाले को भी उजागर करती है, जिसने स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया है. पंड्या का बेटा, अमित पंड्या, किरण पटेल की फर्जी ‘आधिकारिक टीम’ का हिस्सा था और उसने जेड प्लस सुरक्षा और आधिकारिक आवास का लाभ उठाया था.
सुरक्षा बलों के साथ अमित की तस्वीरें सामने आने के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिए समन भेजा था. इन घटनाओं के आलोक में हितेश पंड्या ने प्रधानमंत्री कार्यालय और गुजरात मुख्यमंत्री कार्यालय की प्रतिष्ठा के प्रति अपनी चिंता व्यक्त हुए अपना इस्तीफा दे दिया था.
लगभग 22 वर्षों तक सीएमओ में जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) के रूप में कार्य करने के बाद हितेश पंड्या ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को अपना इस्तीफा सौंप दिया था.
भले ही अधिकारियों ने सांठगांठ का पता लगाने और नापाक गतिविधियों को खत्म करने की कसम खाई है, लेकिन देश के शीर्ष नेताओं के सुरक्षा तंत्र पर सवाल बने हुए हैं, खासकर साइबर स्पेस में, जिसमें इतनी आसानी से और बार-बार सेंध लगाई जा रही है.
यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में वाइब्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित हुआ है.