बीते कुछ महीनों में ऐसे छोटे-बड़े क़रीब दर्जनभर ठग सामने आए हैं जो पीएमओ या गृह मंत्रालय के नाम पर चूना लगा रहे हैं. यह कुछ नेताओं के इर्द-गिर्द केंद्रित कामकाज की अपारदर्शी शैली का नतीजा है, जिसने सत्ता के धंधेबाजों की तरह-तरह की प्रजातियों के पनपने के लिए मुफ़ीद माहौल तैयार किया है.
नटवरलाल का नाम भारत के लोग भूले नहीं हैं. नटवरलाल ने ‘ताजमहल’ को तीन बार और लाल किले को एक बार बाकायदा स्टांप पेपर पर न सिर्फ बेच दिया बल्कि इनकी रजिस्ट्री भी करवा दी. ठगी की बात आए, तो आज नटवरलाल नाम अपने आप में संज्ञा नहीं विशेषण या उपाधि बन गया है. नटवरलाल की प्रसिद्धि का आलम यह है कि उस पर फिल्में तक बनीं. एक फिल्म इसी नाम से बनी, जिसमें अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका थी. नटवरलाल एक आत्मविश्वास से भरे जालसाज का पर्यायवाची बन गया. वह कई बार जेल गया और उससे बाहर निकला. एक बार वह जेल से भागा भी.
लगभग चार दशक के बाद जालसाजों या कहें नटवरलालों की एक नई प्रजाति सामने आई है- एक दर्जन से ऐसे नटवरलालों का मामला सामने आया है. स्मार्ट, नफीस, वाकपटु. उनमें एक समानता है- वे सब संघ परिवार की पृष्ठभूमि से होने का दावा करते हैं. या यह कहा जा सकता है कि वे नरेंद्र मोदी सरकार की कार्यशैली और इनके कर्ता-धर्ताओं के उत्तरदायित्वों और उनके कामकाजों से अच्छी तरह से वाकिफ हैं. और गुजरात से रिश्ता, चाहे सांस्कृतिक या पेशेवर, एक सटीक मिश्रण तैयार कर देता है.
भारत के इतिहास में कभी भी सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से संबंध होने का दावा करते हुए सामने आने वाले लोगों की इतनी बड़ी संख्या को नहीं देखा गया है. भारत में मनमोहन सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी के समय के कुछ हद तक पारदर्शी शासन में राजनीतिक कारक आधिकारिक फैसलों का निर्धारण करते थे. यह शासक के नाम पर ठगी करने वाले नटवरलालों के लिए ज्यादा अवसर नहीं छोड़ता था. नटवरलाल उन परिस्थितियों में फलते-फूलते हैं, जब फैसले एक व्यक्ति की पसंद के हिसाब से लिए जाते हैं.
ये सब के सब सीधे प्रधानमंत्री से संपर्क या उनके शीर्ष सहयोगियों तक पहुंच का दावा करते हैं. अमित शाह से संपर्क या नातेदारी या उनके साथ साझेदारी का दावा भी उतना ही प्रभावशाली है. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ संबंध भी काम आता है, लेकिन दूसरे विकल्प के तौर पर ही.
यही कारण है कि आपको मोदी काल के राजनीतिक नटवरलालों और सत्ता के धंधेबाजों में नड्डा के वरदहस्त का दावा करने वाले काफी कम लोग हैं. इन नटवरलालों में एक है नीरज सिंह राठौड़, जिसका संबंध मूल रूप से गुजरात के मोरबी से है.
राठौड़ का महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और झारखंड के भाजपा विधायकों के बीच उठना-बैठना था और वह मंत्री पद के अभ्यर्थियों के लिए कैबिनेट में स्थान की दलाली करने का विशेषज्ञ था. इसके लिए उसने नड्डा के ‘पर्सनल असिस्टेंट’ के अपने पद का इस्तेमाल किया. अपनी गिरफ्तारी के समय, उसके ‘क्लाइंटों’ (ग्राहकों) की सूची में 28 विधायक थे. इनमें से तीन विधायकों ने पैसे देकर कैबिनेट में स्थान लेने की सेवा के तहत उसे ‘दलाली’ की फीस का भुगतान भी किया था.
राठौड़ के शिकारों में गोवा और नगालैंड के दूरदराज के राज्यों के लाभार्थी विधायक थे. पुलिस को पता चला कि इस तरह से लिया गया पैसा राठौड़ के घर के पास की एक मोबाइल की दुकान के ऑनलाइन खाते में डाला जाता था. राठौड़ को दिल्ली के एक भाजपा विधायक की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया, जिनसे उसने पीएम आवास योजना में एक वरिष्ठ पद दिलाने का वादा किया था.
पुलिस को पता चला कि नड्डा तक संपर्क होने का भरोसा दिलाने के लिए राठौड़ ने एक बार फोन पर नड्डा की आवाज की नकल भी की थी.
इन जालसाज नटवरलालों की लंबी सूची पर नजर डालें, तो सरकार में सबसे ज्यादा दबदबा अमित शाह का दिखाई देता है. उनके कई ‘भतीजे/भांजे’ और प्रतिनिधि हैं. उनमें से कई 2019 में उनके गृह मंत्री बनने से पहले से ही सक्रिय थे.
‘भतीजा- 2016’ अमित शाह के नाम पर धोखाधड़ी करने वालों का पहला दर्ज मामला है. उसका असली नाम यश अमीन था, लेकिन वह विराज शाह के नाम से अपना परिचय देता था और वह भाजपा नेताओं को मंत्री पद और दूसरे पद दिलाने की दलाली करता था. 2016 में उसे एक भाजपा नेता से 80,000 रुपये ठगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. पीड़ित का आरोप था कि यश ने उससे पैसा ले लिया, मगर उसका काम नहीं किया.
चार साल बाद यश अमीन शाह के भतीजे के तौर पर फिर से प्रकट हुआ और उसने पहली वाली कार्य पद्धति पर ही काम करना शुरू किया. ‘भतीजा-2020’ से ठगे जाने वाले ज्यादातर लोगों ने बुद्धिमानी का परिचय देते हुए बदनामी से बचना ही बेहतर समझा, लेकिन एक भाजपा विधायक योगिंद्र उपाध्याय ने पुलिस में उसके खिलाफ उनसे 40,000 रुपये ठगने का मामला दर्ज कराया.
सबसे हाल में सामने आने वाला मामला ‘भतीजा -2023 का है. यह विराज शाह जिसका असली नाम अश्विन पटेल है, भी खुद को अमित शाह का भतीजा बताता है और गुजरात के मुख्यमंत्री के कार्यालय में काम करने का दावा करता है. वह अपना परिचय गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक सिटी (गिफ्ट सिटी) के प्रेसिंडेंट के तौर पर भी देता है.
उसने कई मॉडलों को भी गिफ्ट सिटी का ब्रांड एंबेसडर बनाने का झांसा देकर चूना लगाया. इनमें से कुछ ने पुलिस में शिकायत दर्ज की है. वह मूल रूप से गुजरात के गांधीनगर के सरगासन का रहने वाला है. इसके मुख्य लाभार्थी मुख्य तौर पर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के भाजपा विधायक थे. उसने इनसे केंद्र में या भाजपा शासित राज्यों में मंत्रिपद ‘दिलाने’ का वादा किया था.
ब्रजेश रतन एक और जालसाज है. हालांकि वह अपना परिचय भतीजे के तौर पर नहीं कराता है, लेकिन वह अमित शाह के नाम का धड़ल्ले से इस्तेमाल करता है. पिछले साल अप्रैल महीने के आसपास मुंबई के व्यापारी प्रवल चौधरी ने पुलिस में एक शिकायत दायर की, जिसके अनुसार ब्रजेश रतन और अन्यों ने 2 करोड़ रुपये की ठगी की है. यह पैसा रेलवे से 100 करोड़ रुपये का ठेका दिलाने के एवज में लिया गया था.
हालांकि रतन के पिता, जो एक भाजपा नेता और रेलवे पैनल के सदस्य हैं, ने अपने बेटे के खिलाफ इन आरोपों का खंडन किया. वे सवाल करते हैं, ‘अगर मैं एक दागी व्यक्ति होता, तो सरकार फिर से मुझे यह जिम्मेदारी क्यों देती?’
अमित शाह के नाम से जुड़ाव ने मीडिया को इस तरह से डरा दिया कि इसके बाद से इस शिकायत के बारे में कुछ ज्यादा जानकारी नहीं मिली है.
अब जरा किरणभाई जगदीशभाई पटेल की कहानी सुनिए, जिन्हें नए भारत का सबसे बड़ा राजनीतिक नटवरलाल कहा जा सकता है, जिसने इस साल की शुरुआत में अपने कई दुस्साहसी कारनामों से खूब सुर्खियां बटोरीं.
पटेल पीएमओ केंद्रित प्रशासनिक नियंत्रण और इसकी अपारदर्शी कार्यप्रणाली की मोदी की शैली की उपज हैं. लोकतंत्र और खुलेपन के पुराने भले दिनों में कोई भी गैर-अधिकृत व्यक्ति ऐसे किसी राज्य में जाकर प्रधानमंत्री के नाम पर जेड प्लस सुरक्षा, मुफ्त रहने की व्यवस्था नहीं पा सकता था और राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर उन्हें आदेश नहीं दे सकता था.
लेकिन ठीक यही काम अहमदाबाद में जन्मे किरण पटेल ने सालों तक किया. उसकी सांस्कृतिक पहचान और बात-बात में बड़े-बड़े नामों के जिक्र ने जम्मू कश्मीर की पूरी नौकरशाही को मूर्ख बनाया. कश्मीर में ऐसा होना इसलिए खास है, क्योंकि वहां सुरक्षा तंत्र देश में सबसे ज्यादा सक्रिय है. जब उसने दावा किया कि वह पीएमओ में एडिशनल डायरेक्टर (स्ट्रेटजी एंड कैंपेन) है, जब उसने अपनी ताकत दिखाई और अधिकारियों को आदेश दिया, तब हर कोई विस्मय और भय से उनकी बात मानने लगा. महीनों तक वह बुलेटप्रूफ कार में दो एस्कॉर्ट गाड़ियों और दर्जन भर एसएसबी बंदूकधारी जवानों के साथ यहां-वहां घूमता रहा.
अपनी पहली यात्रा में वह अपनी बेटी और पत्नी मालिनी पटेल के साथ था, जिस पर 15 करोड़ रुपये के एक धोखाधड़ी के मामले में शामिल होने का आरोप है. एक दूसरी यात्रा में पटेल अपने साथ गुजरात मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी के बेटे और कारोबारी जय शिवजी सीतापारा को साथ लेकर गया. बाद में मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
पटेल अपने दल के साथ भारी-भरकम सुरक्षा व्यवस्था के साथ नियंत्रण रेखा, गुलमर्ग और डल झील गया. इन जगहों पर अक्सर राज्य के अधिकारी उसके साथ थे. उसे सबसे पहले कश्मीर के अधिकारियों से एक वरिष्ठ आरएसएस नेता ने मिलवाया था. उसने भाजपा के मीडिया प्रभारी के साथ भी राज्य के हालातों पर चर्चा की. कुलगाम में उसने पर्यटन विभाग की खातिरदारी का लुत्फ उठाया. पिछले जनवरी में उसने प्रधानमंत्री की तरफ से सूरत में जी-20 से संबंधित एक बैठक की. एक स्थानीय आभूषण निर्माता का कहना है कि उसे पटेल द्वारा निजी तौर पर आमंत्रित किया गया था.
गुजरात पुलिस का कहना है कि पटेल 2015 से ही कश्मीर घाटी जा रहा था. ये यात्राएं प्रधानमंत्री के प्रतिनिधि के तौर पर ‘समीक्षा बैठकों’ के लिए होती थी. उसने गुजरात में भाजपा कार्यकर्ताओं की बैठकें कीं और कोबा में भाजपा मुख्यालय ‘कमलम’, मुख्यमंत्री कार्यालय और राज्य सचिवालय में उसका खूब आना-जाना था. पटेल रक्षा सहयोग पर ‘चर्चा’ करने के लिए रूस भी गया.
मोदी युग के एक और बड़े कारनामे करने वाले जालसाज का नाम है संजय प्रकाश शेरपुरिया. हालांकि, गुजराती मूल का नहीं होना, उसकी कमजोरी थी. लेकिन उसने इस कमी की भरपाई अपनी वाकपटुता और रचनात्मकता से की. उसका आवासीय पता था, 1, बिसाइड रेस कोर्स (रेसकोर्स के बगल में), दिल्ली. उसकी नरेंद्र मोदी, अमित शाह, नड्डा, मोहन भागवत और अनुराग ठाकुर के साथ फोटो है, जिसका वह वह भव्य प्रदर्शन करता था.
अप्रैल में उसकी गिरफ्तारी के बाद यह पता चला कि उसने दिल्ली के एक उद्योगपति से अपने ट्रस्ट के लिए 6 करोड़ रुपये जमा किए थे. केंद्रीय पशु कल्याण विभाग ने उसकी संस्था को 2 करोड़ रुपये की ‘सहयोग’ राशि दी थी. यूपी पुलिस ने शेरपुरिया के सहयोगी को भी गिरफ्तार किया है, जिसका नाम काशिफ है.
शेरपुरिया खुद को ‘लेखक, कोविड हीरो और व्यवसायी’ बताता था. वो अपने संपर्कों के जरिये थर्ड पार्टी के साथ मामले ‘फिक्स’ किया करता था. दिल्ली के एक कारोबारी से प्रवर्तन निदेशालय ईडी के साथ चल रही समस्याओं को ‘मैनेज’ करने के नाम से 11 करोड़ रुपये लिए. उसकी पत्नी कंचन पर भारतीय स्टेट बैंक को 350 करोड़ रुपये का चूना लगाने का आरोप है. वह गाजीपुर से भाजपा का टिकट पाने की भी भरपूर कोशिश कर रहा था.
उसकी गतिविधि का दायरा इतना व्यापक था कि उसने जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा को 25 लाख रुपये का बिना जमानत वाला कर्ज (अनसिक्योर्ड लोन) भी दिया. उसने डमी निदेशकों वाली 56 कंपनियां बनाईं जिनमें उसने स्टार्टअप सपोर्ट के नाम पर पैसे डाले. कहा जाता है कि यह, जैसा कि कहा जाता है, गलत तरीके से कमाए गए पैसे को सफेद करने का एक चालाक तरीका था.
ये बड़े जालसाजों को नाम हैं, लेकिन वास्तव में मोदी युग हर कद के नटवरलालों के लिए ‘अमृतकाल’ साबित हुआ है. यहां कुछ छोटे जालसाज के नाम हैं, जिन्होंने कोशिश की, मगर वे कोई बड़ा हाथ मार पाने में नाकाम रहे :
अंकित कुमार सिंह का दावा था कि वह पीएमओ में सेक्रेटरी है और मोदी के वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में काम करता है. उसे स्थानीय अधिकारियों और अन्यों से पैसे/उपहार आदि मांगने के लिए गिरफ्तार किया गया.
वासुदेव निवतुती तायदे को पुणे में पकड़ा गया, जहां वह पीएमओ की तरफ से एक गोपनीय मिशन पर था. उसका दावा था कि वह पीएमओ में डिप्टी सेक्रेटरी है.
पुलिस ने एक लॉ ग्रैजुएट को मुंबई से गिरफ्तार किया है, जो खुद को मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) के यहां एक आईएएस अधिकारी के तौर पर पेश कर रहा था.
सत्येंद्र प्रकाश चतुर्वेदी एक अन्य छोटा जालसाज था, जिसे बरेली से गिरफ्तार किया गया. वह खुद को पीएमओ में कार्यरत एक आईएएस बता रहा था.
दिल्ली में गृह मंत्रालय के एक ‘आईएएस अधिकारी’ को उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वह भारत सरकार की गाड़ी में घूम रहा था.
यह सब महज संयोग नहीं है. यह नतीजा है कुछ नेताओं के इर्द-गिर्द केंद्रित कामकाज की अपारदर्शी शैली, एक सहमे हुए मीडिया, निगरानी रखने वाली संस्थाओं के अवसान और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की निष्क्रियता का, जिसने सत्ता के धंधेबाजों की तरह-तरह की प्रजातियों के पनपने के लिए उपजाऊ जमीन मुहैया कराने का काम किया है.
नटवरलाल वे होते हैं, जो सिर्फ लेना जानते हैं, बदले में कुछ भी देना नहीं. अगर किस्मत अच्छी हुई, तो वे पकड़े जाते हैं और हमें उनके बारे में पढ़ने के लिए मिलता है. लेकिन यहीं एक वास्तविक डरावना ख्याल भी आता है: क्या हो अगर बाजार में ‘अधिकृत’ दलाल भी हों, जिनका शीर्ष से असल में संपर्क हो और वे बाहर अपना दरबार लगा रहे रहे हों?
(पी. रमण वरिष्ठ पत्रकार हैं.)
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