जो हिंदुत्ववादी संगठन गो-रक्षा के नाम पर निर्दोष लोगों से मारपीट करने पहुंच जाते हैं कभी सरकार से यह नहीं पूछते कि गोशालाओं के निर्माण को लेकर उसकी क्या योजना है? क्यों गो-आश्रय स्थल के निर्माण हेतु ग्राम पंचायतों को धन नहीं दिया जा रहा? क्यों चारे और उचित रखरखाव के अभाव में पशु जान गंवा रहे हैं?
हरदोई जिले की संडीला तहसील के भरावन विकास खंड की ग्राम पंचायत छावन का गांव है गोढ़ी. जनवरी 2023 में गांव में खुले पशुओं से परेशान ग्रामीणों ने गांव में ही धरना शुरू किया. यदि ये गोवंश गोशालाओं में नहीं जाते तो ग्रामीणों को रात-रात भर जागकर अपनी फसलें बचानी पड़ती हैं. धरना शुरू होते ही शाम को खंड विकास अधिकारी गांव पहुंचते हैं. रातोंरात एक जेसीबी मशीन बुलाकर पहले जहां एक अस्थाई गो-आश्रय स्थल बनाया गया था, वहीं फिर से गड्ढों को गहराकर और उसकी सीमा पर लगे तारों को ठीककर गो-आश्रय स्थल को पुनः सक्रिय किया गया.
गांव से पकड़ कर गोवंश उसमें लाए गए. गो-आश्रय स्थल के निर्माण के वक्त ग्राम प्रधान के पति ने बताया कि गो-आश्रय स्थल के निर्माण के लिए उसके पास कोई पैसा नहीं है, उससे कहा गया है कि राज्य वित्त के पैसे से बनवा लो. पिछली बार जब गो-आश्रय स्थल बना था तो बताया गया कि चूंकि चारा का पैसा भी नहीं मिल रहा था, तो अंत में गायें वहां लगा तिरपाल खाकर चली गईं.
वैसे उत्तर प्रदेश सरकार की घोषणा यह है कि प्रति पशु को खिलाने के लिए 30 रुपये प्रतिदिन दिया जाएगा. गो-आश्रय स्थल, गोशालाओं और यदि कोई किसान किसी खुले पशु को बांधकर खिलाता है तो तीनों स्थितियों में पैसा मिलेगा. लेकिन वास्तविकता में यह पैसा मिल जाना और उसमें निरंतरता बनी रहने में बड़ी कठिनाई आती है. ग्राम प्रधानों से कहा जाता है कि अभी अपनी जेब से खिला दो बाद में भरपाई हो जाएगी. इस चक्कर में कई प्रधानों का पैसा डूब चुका है.
शुरू-शुरू में तो जनता का दबाव था इसलिए गोढ़ी में अस्थाई गो-आश्रय स्थल बना दिया गया और ग्राम प्रधान ने पैसा खर्च किया. लेकिन जब ग्रामीणों का दबाव कम पड़ा तो चारा आना बंद हो गया. वैसे इस समय उत्तर प्रदेश में गोशालाओं के नाम पर बड़ा चारा घोटाला हो रहा है.
गोढ़ी में जहां धीरे धीरे करके पशुओं की संख्या जनवरी में 53 से बढ़कर 130 तक पहुंच गई थी, चारे के अभाव में करीब 80 पशु तार तोड़कर खाई फांदकर भाग गए. करीब दस पशु भूख व बीमारी के कारण मर गए जिन्हें वहीं दफना दिया गया. सबसे कमजोर 41 पशु रह गए. 7 अगस्त को इनमें से एक पशु जान गंवा चुका था और दो मरणासन्न अवस्था में हैं. जिलाधिकारी व प्रमुख सचिव, पशुधन को सूचित किया गया. ग्राम प्रधान आए और मरे पशु को हटवा दिया. एक महीने से ऊपर हो चुका है किंतु पशु चिकित्साधिकारी नहीं आए हैं.
इससे पहले मार्च में सीतापुर जिले की सिधौली तहसील के गोंदला मऊ विकास खंड के हिंडोरा गांव से ग्रामीण दो बार पशुओं को लेकर निकले इस ऐलान के साथ कि उन्हें लखनऊ ले जाकर योगी आदित्यनाथ के घर बांधा जाएगा ताकि योगी ही पशुओं को खिलाएं. पुलिस ने दोनों बार रास्ता रोक लिया किंतु कोई भी ऐसा अधिकारी- खंड विकास अधिकारी, पशु चिकित्साधिकारी अथवा उप-जिलाधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा जो समस्या का समाधान कर सकते था.
अंत में ग्राम प्रधान पर दबाव डालकर एक जेसीबी मशीन लगाकर खाई खुदवाने का काम शुरू हुआ. एक दिन काम होकर रुक गया. आज तक गो-आश्रय स्थल का काम अपूर्ण है और वहां कोई पशु रखा ही नहीं गया. इससे समझा जा सकता है कि योगी सरकार गायों को बचाने के लिए कितनी गंभीर है?
असल में योगी सरकार ने गाय के नाम पर सिर्फ राजनीति की है. यह बात इसी से साफ है कि जानवरों को खिलाने के लिए 30 रुपये प्रति पशु प्रतिदिन का ऐलान कर दिया गया है किंतु गो-आश्रय स्थल के निर्माण हेतु ग्राम पंचायतों को कोई धन नहीं उपलब्ध कराया जा रहा. आखिर राज्य वित्त के पैसे से अच्छा गो-आश्रय स्थल कैसे बन सकता है?
क्या ग्राम प्रधान राज्य वित्त का सारा पैसा गो-आश्रय स्थल निर्माण में लगा दें? फिर गांव के विकास, सड़क, नाली, आदि के काम कैसे होंगे?
हिंदुत्ववादी संगठन जो गो-रक्षा के नाम पर निर्दोष लोगों से मार-पीट करने पहुंच जाते हैं कभी अपनी सरकार से यह नहीं पूछते कि उसकी गोशालाओं के निर्माण को लेकर क्या योजना है? कैसे पहुंचेंगे सारे खुले पशु गोशालाओं में? जब प्रशासनिक अधिकारियों को समस्या के वृहद रूप का ज्ञान होता है तब वे किसानों के खिलाफ मुकदमा लिखाने की कार्रवाई शुरू कर देते हैं कि उन्होंने क्यों अपने पशु छोड़ रखे हैं? यानी जो किसान पहले से ही परेशान है उसे और परेशान किया जाता है.
ठीक इसी तरह जब किसानों ने अपनी फसल बचाने के लिए ब्लेड वाले खतरनाक तार खेत के चारों तरफ लगाने शुरू किए तो सरकार ने किसानों की समस्या हल करने के बजाय इन खतरनाक तारों पर प्रतिबंध लगाकर किसान पर जुर्माने का प्रावधान कर दिया. किसानों के सामने जब यह मजबूरी आती है कि वह अनुपयोगी पशु को खिला पाने की स्थिति में नहीं होता है तो अपने पशु को छोड़ देता है. यह बात शासन-प्रशासन में बैठे लोग और वे गोरक्षक, जिन्होंने कभी गाय नहीं पाली, नहीं समझ पाते या नहीं समझना चाहते.
यदि सिर्फ संडीला तहसील का उदाहरण लें, तो पूरी तहसील में 250-300 पशु की क्षमता वाली दो गोशालाएं हैं- एक संडीला में और दूसरी बालामऊ में. लेकिन तहसील के गोमती किनारे सिर्फ एक ही गांव भटपुर में हजारों पशु खूले घूम रहे हैं. अब तो प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक या एक से ज्यादा गोशालाओं की जरूरत है. जब तक सरकार इन गोशालाओं का निर्माण नहीं करा लेती उसे पशु बाजार खोल देने चाहिए ताकि किसान की फसल तो बचे.
योगी आदित्यनाथ निकले तो गाय बचाने के लिए थे किंतु गाय तो अब भी मर रही है. कहीं गोशालाओं में भूख से, कहीं सड़क पर दुर्घटना से, गाय के छोटे बच्चों को सियार उठा ले जा रहे हैं. और गोहत्या तो बंद हुई नहीं है. बल्कि कत्लखानों के मालिकों के लिए तो अब और आसान हो गया है. पुलिस की मिलीभगत से कहीं भी गाड़ी खड़ीकर झुंड के झुंड जो पशु बगीचे में बैठे मिल जाएंगे उन्हें उठा ले जाओ. प्रशासन भी इन पशुओं से छुटकारा चाहता है नहीं तो इनके लिए गो-आश्रय स्थल बनवाने पड़ेंगे.
अब सरकार को कटघरे में खड़ा करने का वक्त आ गया है. 7 अगस्त, 2023 को गोढ़ी स्थित गो-आश्रय स्थल में जिस बछड़े की मौत हुई है उसकी हत्या का ज़िम्मेदार योगी आदित्यनाथ को कहा जाना चाहिए. योगी सरकारी पैसे से गायों के संरक्षण का नाटक कर पुण्य कमाना चाहते हैं. लेकिन वास्तविकता में उन्होंने किसानों को परेशान करके रख दिया है.
(लेखक सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के महासचिव हैं.)