निरंतर विभाजित किए जा रहे भारत में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ का आयोजन पाखंड है

‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ को राजनीतिक एजेंडा कहना ज़्यादा बेहतर है. जहां इसके सरकारी आयोजन से जुड़ी प्रदर्शनी की सामग्री में विभाजन की त्रासदी में मुसलमानों से जुड़ा कोई दुखद पहलू प्रदर्शित नहीं किया गया है, वहीं आयोजक अतिथियों को 'अखंड भारत' के नक़्शे वाले स्मृति चिह्न भेंट करते दिखे.

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(फोटो साभार: ट्विटर/@IndiaInSL)

‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ को राजनीतिक एजेंडा कहना ज़्यादा बेहतर है. जहां इसके सरकारी आयोजन से जुड़ी प्रदर्शनी की सामग्री में विभाजन की त्रासदी में मुसलमानों से जुड़ा कोई दुखद पहलू प्रदर्शित नहीं किया गया है, वहीं आयोजक अतिथियों को ‘अखंड भारत’ के नक़्शे वाले स्मृति चिह्न भेंट करते दिखे.

(फोटो साभार: ट्विटर/@IndiaInSL)

अब भारत के विश्वविद्यालयों के लिए रिवाज़ हो गया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली (यूजीसी) से कोई भी सूचना ज़ारी होती है, जिस में उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए ‘अनुरोध’ होता है पर उच्च शिक्षण-संस्थान उसे आदेश की तरह ग्रहण कर उस के क्रियान्वयन में लग जाते हैं. तो इस बार भी साल 2021 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ आयोजित करने के लिए देश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों एवं कॉलेजों के प्राचार्यों को एक ‘अनुरोध’ यूजीसी द्वारा भेजा गया.

क्या 14 अगस्त को विभाजन हुआ था?  

सब से पहले तो यही कि दिनांक 14 अगस्त का भारत विभाजन की विभीषिका से कोई लेना-देना नहीं है. इस दिन पाकिस्तान देश का जन्म हुआ था न कि विभाजन की विभीषिका की शुरुआत! मान्य इतिहासकार आदित्य मुखर्जी ने स्पष्ट किया है कि विभाजन की विभीषिका की शुरुआत 17 अगस्त 1947 से होती है जब भारत-पाकिस्तान बंटवारे के लिए ‘रेडक्लिफ लाइन’ की घोषणा होती है.

ऐसी स्थिति में सोचा जा सकता है कि 14 अगस्त को इस दिन के लिए क्यों चुना गया? स्पष्ट है कि भारत के हिंदुओं के मन में पाकिस्तान को लेकर एक नफ़रत की ग्रंथि बहुत गहराई से बैठाई गई है. इसका सबसे घटिया रूप इस मानसिकता में सामने आता है कि हिंदी क्षेत्र में पाखाने जाने के लिए ‘पाकिस्तान जाना’ मुहावरे की तरह इस्तेमाल होता है. इसी तरह मुसलमान बहुल क्षेत्रों के लिए ‘मिनी पाकिस्तान’ का प्रयोग भी प्रचलित है. इसी नफ़रत और उग्रता का मिश्रण भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में भी देखा जाता है. इन उदाहरणों से हम यह समझ सकते हैं कि पाकिस्तान को निशाना बनाने के बहाने भारत के मुसलमानों को लक्ष्य बनाया जाता है.

प्रदर्शनी में जानकारी या प्रोपेगेंडा?

‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ आयोजन में विभाजन से जुड़ी प्रदर्शनी को प्रदर्शित करने का सुझाव है जिसे भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली संचालित कर रहे हैं. इस प्रदर्शनी के लिए तैयार की गई सामग्री का भी संवेदनशील, शोधपरक और आलोचनात्मक दृष्टि से विश्लेषण किया जाना चाहिए.

52 पृष्ठों की इस सामग्री में लगभग 72 तस्वीरें और अख़बार की कतरनें लगाई गई हैं. लगाई गई तस्वीरों के स्रोत की कोई जानकारी नहीं दी गई है. हां, अख़बारों की कतरनों का स्रोत अवश्य दिया गया है. जिन कतरनों को यहां संलग्न किया गया है उन में प्रकाशित ख़बरों की सुर्खी देखिए.  पृष्ठ संख्या 10 पर एक कतरन का शीर्षक है– ‘INDIAN MUSLIMS PLEDGE LOYALTY.’ पृष्ठ संख्या 11 पर एक अख़बार, जो अंबाला कैंट से दिनांक 21 जुलाई 1948 को प्रकाशित है,में यह ख़बर है – ‘MISSING HINDUS AND SIKH OF MULTAN AND MUZAFFARGARH.’

पृष्ठ 13 पर किसी अख़बार की कतरन तो अत्यंत विचित्र है. उस में एक साथ लिखा गया है कि ‘Muslims Pass Through Amritsar Safely. Hindu Village In Ambala Distt. Attacked.’ पृष्ठ 16 पर शिमला से प्रकाशित ‘द ट्रिब्यून’ के 3 अक्टूबर 1947 अंक की ख़बर है – ‘2,000 Hindus and Sikhs Killed Near Tandlianwala.’ इसी अख़बार के 12 अक्टूबर 1947 में मुख्य ख़बर छपी है – ‘10,000 HINDUS AND SIKHS IN DANGER AT JHELUM.’

इसी अख़बार के 26 सितंबर 1947 की एक ख़बर की कतरन लगाईं गई है – ‘500,000 Hindus & Sikhs Held Up. Village Attacked By Muslim Mob. 340 Sikhs and Hindus killed, 250 wounded.’ पृष्ट 20 पर वाराणसी से प्रकाशित ‘आज’ अख़बार के 17 जुलाई 1947 वाले अंक में एक ‘कार्टून’ प्रकाशित हुआ था जिस के आधार पर नीचे टिप्पणी की गई है कि ‘पाकिस्तान सरकार ने भारत को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का आश्वासन दिया था, लेकिन वास्तविक तस्वीर कुछ और थी.’

इसी प्रकार ‘आज’ अख़बार के अंक 13 जनवरी 1948 में छपी एक ख़बर की कतरन लगाईं गई है जिसमें लिखा है कि ‘सिन्ध के हिन्दू खतरे में , शीघ्र स्थानान्तरण किया जाय.’  इस दस्तावेज़ के ‘घबराहट, डर और हिंसा’ वाले भाग में यह भी लिखा गया है कि ‘विभाजन के दौरान सिन्ध के अल्पसंख्यकों (हिन्दू एवं सिख) को जितनी विकराल एवं भयावह त्रासदी सहनी पड़ी, उसका कटु अनुभव सिन्ध छोड़कर आए लोगों के मन में आज भी जीवन्त है.’

विभाजन विभीषिका दिवस पर आयोजित एक प्रदर्शनी. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

इस विवरण से यह समझा जा सकता है कि विभाजन की त्रासदी का कोई दुखद पहलू मुसलमानों से जुड़ा यहां नहीं प्रदर्शित किया जा रहा है. यहां सिर्फ़ हिंदुओं एवं सिखों की बात है. सोचने की बात है कि इन ख़बरों को पढ़कर आज की नौजवान पीढ़ी, ख़ासकर हिंदू, उस पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इनसे उसके मन में किस तरह के निष्कर्ष जन्म लेंगे?

यही कि ‘विभाजन से ज़्यादा नुकसान हिंदुओं को हुआ. मुसलमान तो भारत से सुरक्षित निकल गए. पाकिस्तान ने वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं को सुरक्षा नहीं दी. विभाजन से मुसलमानों को फ़ायदा हुआ. उनको तो धर्म के नाम पर एक नया देश मिला. हिंदुओं को क्या मिला? कुछ नहीं.’

इन सारी बातों को सोचने का मनोवैज्ञानिक असर यह होगा कि उस के मन में भारत के वर्तमान मुसलमानों के प्रति गुस्सा और अपार नफ़रत पैदा होगी. और ऐसा होते ही भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का उद्देश्य पूरा हो जाता है. इसीलिए ऐसे आयोजन किए जा रहे हैं.

राजनीतिक एजेंडा

भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की नीति ही यही रही है कि हिंदू दिमाग़ सदा खौलता रहे. जब वह खौलता रहेगा तो वह ठहरकर सोच नहीं सकेगा. ऐसा होने पर ‘वोट की राजनीति’ की दुनिया में भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अजेय दल एवं संगठन बने रहेंगे. इन सबसे स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ नफ़रत के सहारे सत्ता हासिल करती है और फिर उसी सत्ता का प्रयोग अत्यंत महीन तरीक़े से नफ़रत फैलाने में करती है.

यहां यह भी लक्ष्य किया जा सकता है कि 2021 में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ की घोषणा हुई थी. पिछले वर्ष इतने बड़े पैमाने पर यह आयोजन नहीं हुआ था. तब इस बार इतने वृहद स्तर पर आयोजन की क्या ज़रूरत पड़ी? क्या 2024 में लोकसभा चुनाव हैं इसलिए! जैसा कि ऊपर कहा गया कि ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के दस्तावेज़ में मुसलमानों की पीड़ा से जुड़े तथ्य लगभग नहीं ही हैं. यह कितनी दुखद बात है कि यह आयोजन मुसलमानों के दुख, पीड़ा और त्रासदी को भी उन से छीन लेना चाहता है!

आज जब भारत में खुलेआम मुसलमानों के नरसंहार की बात की जाती हो, उन्हें ‘गद्दार’, ‘बाबर की औलाद’ कहकर उन्हें पूरे सामाजिक जीवन से बहिष्कृत करने का सुनियोजित अभियान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग एवं संस्थाएं चला रहीं हों तो ऐसे समय में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ का आयोजन पाखंड और कुटिलता के अलावा और कुछ है ही नहीं.

विभाजन विभीषिका और ‘अखंड भारत’ एक साथ?

ऐसा नहीं है कि इस ‘दिवस’ का सैद्धांतिक पहलू ही कुटिलता से भरा है बल्कि इसे आयोजित करने/कराने के व्यावहारिक पक्ष भी चालाकी एवं महीन उद्देश्य से भरे हैं. जैसा कि विदित ही है कि यूजीसी के ‘अनुरोध’ को भी फ़ौरी ‘आदेश’ मानकर उच्च शिक्षण-संस्थान कार्रवाई करने लगते हैं. तो जैसा कि होना था बिहार के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी उक्त आयोजन हुआ.

इसमें नीचे दी जा रही एक आकृति प्रदर्शित की गई और उसी तरह की रंगोली भी निर्मित की गई तथा आगत अतिथियों को इसी भाव-भूमि का स्मृति-चिह्न रूप भी भेंट किया गया:

(फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

इस आकृति में तथाकथित ‘अखंड भारत’ का नक्शा है. यूजीसी ने अपने पत्र में और अपने पत्र के साथ संलग्न उक्त प्रदर्शनी के आयोजन के लिए दिए निर्देश में इस बात का उल्लेख किया है कि इस आयोजन में कुछ भी ऐसा न किया जाए जिससे कोई भी समुदाय आहत महसूस करे.

अब ऊपर अख़बार की जिन कतरनों का ज़िक्र किया गया है उन्हें यदि कोई भारत का मुसलमान नौजवान पढ़े तो उस पर सामान्य प्रतिक्रिया क्या होगी? वह कितना आहत महसूस करेगा/करेगी! दूसरी बात यह भी ऊपर जिस तथाकथित ‘अखंड भारत’ के नक़्शे को प्रदर्शित किया जा रहा है उससे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तिब्बत, म्यांमार और नेपाल के लोग आहत महसूस करेंगे. इसके साथ-साथ ऐसे नक़्शे का प्रदर्शन इन देशों की संप्रभुता और अखंडता का अपमान भी है.

कल्पना की जा सकती है कि इस तर्क के आधार पर इन देशों को तथाकथित ‘अखंड भारत’ का हिस्सा बताया जा रहा कि प्राचीन काल में ये सभी भारत के ही हिस्से थे. ऐतिहासिक रूप से तो कभी ऐसा हुआ ही नहीं था कि प्राचीन काल के किसी भी एक समय में ये सभी देश भारत के अंग थे. लेकिन अगर यही तर्क है तो कल को यदि ब्रिटेन अपने ‘अखंड ब्रिटेन’ का नक्शा बनाए और उसमें आज के पूरे भारत को अपना हिस्सा दिखा दे तब भारतीयों को कैसा लगेगा?

कहावत की तरह एक पंक्ति प्रचलित है कि ‘अपने दिल से जानिए पराए दिल का हाल!’ यह अत्यंत अनैतिक, क्रूर और हिसंक है कि ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ का आयोजन एक ओर तो विभाजन के एक बड़े भुक्तभोगी हिस्से यानी मुसलमानों को पराया कर रहा है तो दूसरी ओर पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तिब्बत, म्यांमार और नेपाल के स्वतंत्र अस्तित्व से उन्हें वंचित करने की कोशिश में तब्दील हो गया है.

(लेखक दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाते हैं.)