‘जवान’ के साथ शाहरुख़ ख़ान ने सवाल पूछने को आकर्षक बना दिया है

शाहरुख़ ख़ान की 'जवान' का स्पष्ट राजनीतिक संदेश यह है कि 'सक्रिय नागरिकों' की निरंतर निगरानी के बिना लोकतंत्र को नेताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता.

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'जवान' फिल्म का एक पोस्टर. (साभार: फेसबुक/@RedChilliesEnt)

शाहरुख़ ख़ान की ‘जवान’ का स्पष्ट राजनीतिक संदेश यह है कि ‘सक्रिय नागरिकों’ की निरंतर निगरानी के बिना लोकतंत्र को नेताओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता.

‘जवान’ फिल्म का एक पोस्टर. (साभार: फेसबुक/@RedChilliesEnt)

निकोलो मैकियावेली ने अगर हालिया भारतीय ब्लॉकबस्टर ‘जवान’ तहलका मचाते हुए देखा होता, तो उन्हें खुशी होती कि उनका विचार- एक गणतंत्र में सक्रिय नागरिकता- इसके केंद्र में है. यूनानियों और रोमनों के प्रशंसक रहे मैकियावेली का मानना था कि नागरिकों को वोट देने के समय के बीच लगातार सक्रिय और सतर्क रहने की जरूरत है. नागरिक मामलों में इस सतर्कता और संलग्नता के बिना, कोई स्थायी गणतंत्र नहीं हो सकता है और ऐसे गणतंत्रात्मक मूल्यों के बिना कोई सच्चा लोकतंत्र नहीं हो सकता है.

अमेरिकी संस्थापकों ने उस सबक को अच्छी तरह से अपनाया, जैसा कि भारतीयों ने तब किया जब उन्होंने भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य का नाम दिया. और ‘जवान’ के जरिये दुनिया के सबसे बड़े फिल्म स्टार में से एक शाहरुख खान करिश्माई रूप से इस सरल लेकिन ताकतवर राजनीतिक संदेश को फैलाते हैं.

फिल्म रिलीज़ के पहले चार दिनों में ही 60 मिलियन डॉलर की कमाई करने के बाद यह फिल्म शाहरुख़ खान के कई रूप दिखाती है-  न्याय के लिए बदला लेने वाला, कम जानकारी वाले मंत्रियों को कटघरे में खड़ा करने, भ्रष्ट और अक्षम सरकारों और क्रोनी पूंजीपतियों को बेनकाब करने वाला, सबसे कमजोर लोगों को धन बांटने वाला, कृषि पर चर्चा करने वाला, सच बोलने के लिए दंडित किए गए लोगों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाला. और यह सब शाहरुख उनकी पहचान बन गए आकर्षण और एथलेटिकिज्म के साथ करते हैं और फिल्म, सिनेमाघरों में जनता के हीरो बन जाते हैं. वह लोगों को उन गंभीर असमानताओं के बारे में बताते हैं, जिन पर वे ध्यान नहीं देना चाहते हैं, साथ ही खलनायकों को मात देकर उन्हें रोमांचित करते रहते हैं.

यह सच है कि यह बढ़िया एक्शन सीन, रोमांटिक गानों और नायक की कई भूमिकाओं का स्टाइलिश सिनेमाई मैश-अप है. लेकिन सिर्फ इतना देखना इसके वास्तविक आकर्षण से चूक जाना है, जो शाहरुख के हालिया जीवन से जुड़ा है. अपने विशाल प्रशंसक वर्ग के लिए ‘किंग’ खान एकमात्र ऐसे सितारे हैं जिनकी ऑफ-स्क्रीन शख्सियत भी उतनी ही सराही जाती है जितना उनके द्वारा अभिनीत किरदार. लेकिन वे एक मुस्लिम हैं और भारत में रहते हैं जहां नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की प्रमुख विचारधारा ‘हिंदुत्व’ या हिंदू बहुसंख्यकवाद है, जो धार्मिक विविधता के प्रति भारत की संवैधानिक प्रतिबद्धता की घोर उपेक्षा है.

कुछ बरस पहले शाहरुख ने भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ी असहिष्णुता की आलोचना की थी और इसके लिए उन्हें दक्षिणपंथी ट्रोल्स के ज़बरदस्त हमले और उनकी फिल्मों का बहिष्कार के आह्वान का सामना करना पड़ा था. उन्होंने तब से कोई राजनीतिक बयान नहीं दिया है, जिससे उन लोगों को निराशा हुई है जो चाहते हैं कि सार्वजनिक जीवन जीने वाले सभी लोग एक स्टैंड लें. लेकिन उनकी इस ख़ामोशी के बावजूद दो साल पहले एक सरकारी एजेंसी ने उनके बेटे को ड्रग्स रखने, जिनके बारे में कोई सबूत भी नहीं दिए गए थे, के आरोप को लेकर जेल में डाल दिया. शाहरुख बेहद स्नेही पिता हैं और अक्सर अपने बच्चों के बारे में बात करते हैं. यह ऐसा था मानो सरकार ने तय कर लिया हो कि सबसे प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम को वहां चोट करनी है, जहां उसे सबसे ज्यादा दर्द हो.

शाहरुख और उनकी पत्नी ने इम्तिहान की इस कठिन घड़ी में सम्मानजनक चुप्पी बनाए रखी, लेकिन उनके प्रति भारी सहानुभूति उपजी. सोशल मीडिया पर हर जगह टेक्निशियनों, जूनियर पत्रकारों, युवा सहयोगियों और आम लोगों के प्रति सालों से की गई उनकी नेकी और शालीनता के अंतहीन किस्से बिखरे हुए हैं. महिलाओं ने उनकी उस शिष्टता को सराहा, जो वे आमतौर पर भले कोई देख न रहा हो, तब भी बरतते हैं. सभी ने उनकी समझ-बूझ को सराहा है. सभी सहमत थे कि उनके बेटे की गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित थी. उनके वकील उनके नौजवान बेटे को रिहा कराने में कामयाब रहे और सबूतों की कमी के कारण इस साल वे आरोप भी हटा दिए गए. इसके जवाब में कोई बयान देने और हजारों घरों को चलाने वाली किसी फिल्म को फिर से खतरे में डालने के बजाय शाहरुख़ ने वही किया जो वे सबसे अच्छा करते हैं, और ‘जवान’ उसी का नतीजा है.

फिल्म खत्म होने से कुछ मिनट पहले, इससे पहले की दर्शक चले जाएं, शाहरुख अकेले स्क्रीन पर आते हैं और सीधे कैमरा से बात करते हैं. हर दर्शक पर निगाह रखते हुए वह हमें हमारी चुनी सरकार की बजाय कपड़े धोने के पाउडर के बारे में ज्यादा सवाल करने को लेकर डांटते हैं. वे दर्शकों को याद दिलाते हैं और चेतावनी देते हैं कि उन्हें, आम नागरिकों को, यह पहचानने की जरूरत है कि वे असली सुपरहीरो हैं, क्योंकि वे लोकतंत्र में रहते हैं और उनके पास वोट है जो उनकी सुपरपावर है. वह उनसे कहते हैं कि वे समझदारी से चुनें- और एक बार जब किसी को चुन लें, तो सवाल पूछते रहें.

मैकियावेली की तरह उनका अचूक राजनीतिक संदेश यह है कि ‘सक्रिय नागरिकों’ की निरंतर निगरानी के बिना लोकतंत्र को नेताओं पर नहीं छोड़ा जा सकता है. फिल्म भारतीय है, लेकिन ये संदेश हर जगह के लिए सही है.

यह संदेश देते हुए वह इस बेहद मजेदार फिल्म के एक आखिरी, सांस रोक देने वाले स्टंट पर वापस जाते हैं. फिल्म को बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. ‘एसआरके’ फैन क्लब ने भारत और विदेशों के सिनेमाघरों में बड़े बैनर लगाते हुए समारोह आयोजित किए हैं. दर्शक शाहरुख़ के सिग्नेचर लुक- अपने चेहरे पर पट्टियों और मुखौटों को लगाकर फिल्म देखने पहुंच रहे हैं. शाहरुख के मशहूर डांस मूव्स को याद कर लिया गया है और स्क्रीनिंग के दौरान उन्हीं की तरह लाल शर्ट पहनकर और ‘उनके साथ’ इसे परफॉर्म किया जा रहा है. लोग कई बार फिल्म देखने के लिए वापस जा रहे हैं.

इस तरह का पागलपन क्यों? बेशक, इसके पीछे शाहरुख का बहुत बड़ा आकर्षण है, लेकिन लोग उनसे यह भी सुनना चाहते हैं कि वे भी साहसी हो सकते हैं और सक्रिय नागरिक बनकर ताकतवर लोगों को हरा सकते हैं और इस बारे में गहराई से सोच सकते हैं कि वे किस तरह के देश में रहना चाहते हैं. कुल मिलाकर, वे जज़्बाती भाषा में लोकतांत्रिक राजनीति और नागरिकों के गुणों के बारे में सच बताते हैं. प्रगतिशील राजनीति को भी भावनात्मकता की जरूरत होती है, जो दक्षिणपंथी राजनीति करने में माहिर है, लेकिन भारत और अन्य जगहों पर सेंटर और लेफ्ट मोर्चों में इसकी कमी रही है.

शाहरुख गंभीर मुद्दे उठाने के लिए लाखों लोगों के प्यार का आत्मविश्वासपूर्वक इस्तेमाल करके एक अलग राह दिखाते हैं, जिससे उनके दर्शकों को अपने बारे में अच्छा महसूस होता है और जिससे कठिन सवालों को उठाना उनकी तरह ही आकर्षक लगता है. जैसा कि ‘बार्बी’ और ‘ओपेनहाइमर’ ने दिखाया है कि नारीवाद, अहंकार और नैतिक भ्रम से जुड़े सबक भी मज़े के साथ दिए जा सकते हैं. जवान इसी बात को अगले स्तर पर ले जाती है.

(मुकुलिका बनर्जी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाती हैं.)

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