2023 अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार हार्वर्ड प्रोफेसर क्लॉडिया गोल्डिन को महिलाओं की श्रम बाज़ार में स्थिति को लेकर किए उनके शोध को लेकर मिला है. उनकी रिसर्च दर्शाती है कि परिवार बनाने और नौकरी करने में कोई द्वंद्व नहीं है, बशर्ते समाज उसके लिए तैयार हो.
इस साल का अर्थशास्त्र नोबेल पुरस्कार हार्वर्ड अर्थशास्त्री प्रोफेसर क्लॉडिया गोल्डिन को दिया गया है. यह कई मायनों में ख़ास है. प्रो. गोल्डिन के शोध के नतीजे कई विषयों के लिए महत्वपूर्ण हैं और उन विषयों के विशेषज्ञों को उन पर ध्यान देना चाहिए. मेरे लिए प्रो. गोल्डिन को दिया गया पुरस्कार ये बताता है कि किस तरह अलग- अलग विषय अलग होते हुए भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और सभी का मक़सद वास्तव में इंसानी जीवन से जुड़ी समस्याओं का हल पाना ही है. ये काम सब विषय अपनी तरह से करते हैं पर अंत में सबकी मंज़िल एक ही है और शायद होनी भी चाहिए. अगर कोई रिसर्च या शोध जीवन के पहलुओं पर नया प्रकाश नहीं डालता तो उसकी उपयोगिता पर सवाल उठना लाज़मी है.
बहरहाल, प्रो. गोल्डिन की रिसर्च न सिर्फ अर्थशास्त्र बल्कि अन्य विषयों जैसे इतिहास, मैनेजमेंट (प्रबंध), सोशियोलॉजी (समाजशास्त्र), विमेंस स्टडीज़, कानून इत्यादि पर भी प्रकाश डालती है.
नोबेल पुरस्कार देने वाली रॉयल स्वीडिश अकादमी ने कहा कि प्रो. गोल्डिन को ये पुरस्कार ‘महिलाओं की श्रम बाजार में स्थिति पर हमारी समझ बढ़ने के लिए’ दिया गया है. वास्तव में प्रो. गोल्डिन के शोध ने यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के श्रम बाजार (Labor Market) में पिछले दो सौ सालों में महिलाओं की स्थति का बेहद सटीक आकलन किया है और इसी कारण से उनकी रिसर्च सिर्फ अर्थशास्त्र पर नहीं रुक जाती बल्कि अन्य कई महत्वपूर्ण विषयों से भी जुड़ती है.
ये कहना कोई नई बात नहीं कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम नौकरियां करती हैं और पुरुषों के बराबर पढ़ी- लिखी और काबिल होने के बावजूद वे कम वेतन पाती हैं और ऊपर के पदों पर भी कम ही महिलाएं दिखती है. पर प्रो. गोल्डिन उन कारकों पर प्रकाश डालती है जो श्रम बाजार में महिलाओं की इस स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है. वे कई वर्षों से इस विषय पर शोध कर रही है. उन्होंने इस मान्यता, कि आर्थिक विकास की दरों के बढ़ने के साथ महिलाओं की वेतन भोगी रोज़गारों में संख्या भी बढ़ जाएगी, को झूठा साबित किया. अमेरिका, जहां उन्होंने शोध किया, वहां पर ऐसा नहीं हो रहा था.
जैसा कि स्वीडिश अकादमी ने लिखा,
‘गोल्डिन के शोध ने यह दिखाया है कि महिलाओं की श्रम बाजार में भागीदारी हमेशा बढ़ती हुई नहीं रही है, बल्कि उसका ग्राफ अंग्रेजी के ‘U’ के समान रहा है, जहां पिछले दो सौ वर्षों में, उन्नीसवें शताब्दी की शुरुआत में जब समाज कृषि से औद्योगिक प्रधान बन रहा था, तब श्रम बाजार में विवाहित महिलाओं की भागीदारी घट रही थी, लेकिन बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में सर्विस सेक्टर में बढ़ोतरी के साथ उनकी भागीदारी भी बढ़ने लगी. गोल्डिन के शोध ने बदलाव के इस स्वरूप को समझाया है कि किस तरह से ये बदलाव वास्तव में समाज में हो रहे संरचनात्मक परिवर्तन और महिलाओं की घर और परिवार के प्रति ज़िम्मेदाररियों में बदलते हुए सामाजिक मानदंडों की वजह से हो पाया था.’
स्वीडिश अकादमी ने अपनी प्रेस रिलीज़ में ये भी कहा कि ‘बीसवीं शताब्दी में आधुनिकीकरण, आर्थिक विकास और महिलाओं की रोज़गार में बढ़ती दर के बावजूद पुरुषों और महिलाओं की कमाई का अंतर कम नहीं हुआ. गोल्डिन के अनुसार, इसका एक कारण ये है कि शिक्षा के संबंध में निर्णय, जो अपेक्षाकृत कम उम्र में ले लिए जाते हैं, वो ज़िंदगी भर हमारे करिअर में अवसरों को प्रभावित करते हैं. अगर युवा महिलाओं की अपेक्षाओं का आधार पिछली पीढ़ी के अनुभव बनते हैं, जैसे कि उनकी मांओं से, जो तब तक वापस काम पर नहीं गईं जब तक उनके बच्चे बड़े नहीं हो गए- तो फिर विकास धीमा होगा.’
उपरोक्त कथन ये भी बताता है कि जो बेटियां कामकाजी मांओं के साथ बड़ी होती है, उनकी घर के बाहर जाकर काम करने की संभावना भी बढ़ जाती है.
कमेटी फॉर द प्राइज इन इकोनॉमिक साइंसेज़ के चेयरमैन जैकब स्वेनसन ने कहा कि ‘श्रम में महिलाओं की भागीदारी समझना समाज के लिए ज़रूरी है. क्लॉडिया गोल्डिन के अभूतपूर्व शोध को धन्यवाद कि हम अब इससे जुड़े कारकों को बेहतर तरीके से जानते हैं और भविष्य में (इससे संबंधित) किन बाधाओं को संबोधित करना है, उसे भी.’
अपने एक पेपर ‘why women won’, जो पुरस्कार की घोषणा वाले दिन ही प्रकाशित हुआ था, में प्रो. गोल्डिन शुरुआत में ही लिखती हैं कि ‘क्यों मतदान का अधिकार प्राप्त होने के कई दशकों बाद अमेरिका में महिलाओं को रोज़गार की जगह विवाह, परिवार, सामाजिक सुरक्षा, आपराधिक न्याय के क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर कानूनी अधिकार मिले? यह कैसे, कब और क्यों हुआ ?’
प्रो. गोल्डिन का शोध इन्हीं सवालों का जवाब देता है.
इस मौके पर अकादमी द्वारा जारी प्रेस रिलीज़ में ये भी कहा गया कि ‘वैश्विक श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी कम रही है और जब वे काम करती भी हैं तो ये पुरुषों की तुलना में कम कमाती हैं. क्लॉडिया गोल्डिन ने अमेरिका में पिछले दो सौ सालों के आंकड़े देखे और ये दर्शाया कि कैसे और क्यों कमाई का अंतर और महिलाओं की रोज़गार दर बदली है.’
प्रो. गोल्डिन के शोध को बेहतर समझने के लिए 2021 में आई उनकी किताब Career and Family: Women’s Century long Journey towards Equity (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित) एक बेहतरीन जरिया है. 1946 में पैदा हुई प्रो. गोल्डिन लिखती हैं कि उनकी मां, जो खुद एक एलीमेंट्री स्कूल की प्रतिष्ठित प्रिंसिपल थी, ने उन्हें सुझाव दिया कि वो भी अपनी बड़ी बहन की तरह ‘टीचिंग सर्टिफिकेट’ ले लें. ये एक ऐसी योग्यता थी जिस पर आप निर्भर कर सकते थे.
वो आगे लिखती हैं, ‘ये उनका सुरक्षित नौकरी पाने का एक तरीका था. जब आपके बच्चे स्कूल में हों या आपका पति आपको छोड़ दे तो आप इस योग्यता पर निर्भर रह सकते हैं.’
लेकिन क्लॉडिया ऐसा नहीं करना चाहती थीं. वो एक ऐसा करिअर नहीं चुनना चाहती थीं जो उन्हें सिर्फ महिला होने के कारण ही चुनना पड़े. वे लिखती हैं,
‘मैं पारंपरिक रूप से महिलाओं के लिए तय रोज़गार में एक सुरक्षित और नियमित नौकरी नहीं चाहती थीं. मैं एक प्रतिस्पर्धी क्षेत्र में पीएचडी का कौतुहल और उसके साथ जुड़ी असुरक्षा चाहती थी.’
गोल्डिन अपनी ही ज़िंदगी से इस सवाल का भी उत्तर देती हैं कि क्यों कई महिलाएं मां बनने के बाद श्रम बाज़ार से बाहर हो जाती है. इसका कारण सिर्फ ये नहीं कि समाज में चाइल्ड केयर या बच्चों का ध्यान रखने के लिए औपचारिक प्रावधान नहीं है, जहां पर यदि महिला काम पर जाए तो वो इस बात से निश्चिंत हो कि पीछे से उसका बच्चा सुरक्षित हाथों में होगा. इसका एक और कारण भी है.
गोल्डिन फिर अपनी मां का ज़िक्र करते हुए कहती हैं,
‘जब मैं छोटी थी तो मेरी मां अक्सर दोहराती थीं कि छोटे बच्चे अपनी मां के साथ ही अच्छे रहते हैं. उन्होंने खुद अपना शिक्षिका का करिअर तब तक शुरू नहीं किया जब तक मैं ठीक से स्कूल में नहीं पहुंच गई. लेकिन आज जब वो सौ साल की हो चुकी हैं, तो वो ये मानती हैं कि जब मां काम पर जाए तो एक प्री स्कूली बच्चा ये फिर उससे भी छोटा, एक बेहतरीन डे केयर सेंटर में बिल्कुल ठीक रहेगा या शायद उसका और भी बेहतर ध्यान रखा जायेगा. एक समय था जब वो ये सोचती थी कि घर पर रहने वाली मां के लिए कोई विकल्प नहीं है; बाद में वो ऐसे समय की कल्पना भी नहीं कर सकती थीं जब वो इससे इतर कुछ सोचती भी थीं.’
प्रो. गोल्डिन की रिसर्च महिलाओं की श्रम बाजार में उपस्थिति को लेकर एक दूसरे महत्वपूर्ण पहलू भी दर्शाती है. दिलचस्प बात ये है कि ये अर्थशास्त्र नहीं बल्कि मेडिकल साइंस से जुड़ा पहलू है और परिवार नियोजन में महिलाओं की भूमिका और उनके इस संबंध में फैसले लेने की काबलियत से जुड़ा है.
गोल्डिन लिखती हैं कि अमेरिका में एक ऐसी ‘Pill’ (गर्भ निरोधक गोलियां) का आना किसी चमत्कार से कम नहीं था. साठ के दशक में जब ये हुआ तो महिलाओं के लिए इन गोलियों को खरीद पाना कई कारणों से आसान नहीं था. उसके ऊपर हर एक अमेरिकी राज्य के अलग-अलग कानून और फिर धार्मिक रूप से भी समाज महिलाओं को इन गोलियों का इस्तेमाल इजाज़त नहीं देता था. इसी कारण इस तरह की गोली पर रिसर्च के लिए कोई फंडिंग भी मौजूद नहीं थी. खैर, इसका आना महिलाओं की श्रम स्थिति में एक क्रांति से कम नहीं था और इसी कारण महिलाओं की श्रम बाजार में भागीदारी बढ़ने लगी.
तो प्रो. गोल्डिन की रिसर्च का हमारा समाज किस तरह फायदा उठा सकता है?
भारत जैसे विकासशील देशों को यह ध्यान देना होगा कि किस तरह महिलाएं श्रम बाजार, खासकर विवाह और बच्चे होने के बाद, से बाहर हो जाती हैं और एक बार बाहर होने के सालों बाद फिर से आना उनके लिए कितना मुश्किल हो सकता है. यदि वे फिर से आ भी जाती हैं, तो वे अपने मर्द सहकर्मियों से पीछे रह जाती हैं. इसीलिए नीतिगत स्तर पर सिर्फ मैटरनिटी लीव ही नहीं, बल्कि बेहतरीन चाइल्ड केयर फैसिलिटी भी महिलाओं की श्रम बाज़ार में स्थिति को बेहतर करने में निर्णायक साबित हो सकती है.
क्या प्रो. गोल्डिन की रिसर्च में पुरुषों के लिए भी कुछ है? शायद इस मुद्दे को यूं देखना ठीक न होगा. आज का पढ़ा-लिखा पुरुष ये नहीं चाहता कि उसकी हमसफ़र पढ़ी-लिखी और काबिल होने के बावजूद घर पर ही रहे. यदि वो काम करना चाहे तो उसे ये मौका मिलना चाहिए, इस बात का पुरुष भी हिमायती है.
प्रो. गोल्डिन की रिसर्च यह दर्शाती है कि परिवार बनाने और नौकरी करने में कोई द्वंद्व नहीं है, बशर्ते समाज उसके लिए तैयार हो.
(लेखक आईआईटी बॉम्बे में शोधार्थी हैं.)