कांग्रेस ने कहा, सांसदों को उनके दायित्व निर्वहन से वंचित किया जा रहा है. राष्ट्रपति को संविधान के संरक्षक के रूप में फौरन हस्तक्षेप की आवश्यकता है.
नई दिल्ली: कांग्रेस ने सरकार पर बिना कोई स्पष्टीकरण दिए संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने में विलंब करने का आरोप लगाया और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से सदन यथाशीघ्र बुलाने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया.
कांग्रेस संसदीय दल ने 21 नवंबर को राष्ट्रपति को लिखे पत्र में दावा किया कि समय पर संसद सत्र आहूत नहीं करने से अस्वस्थ्य परंपरा बनेगी. पार्टी ने राजग सरकार पर बिना कोई स्पष्टीकरण दिए सत्र में विलंब करने का आरोप लगाया.
इसमें दावा किया गया कि प्रतीत होता है कि विलंब का कारण गुजरात विधानसभा चुनाव है जो सरकार ने अनौपचारिक रूप से बताया है. कांग्रेस ने दलील दी कि सत्र को स्थापित परंपराओं के अनुसार बुलाया जाता है न कि चुनाव कार्यक्रम के अनुरूप.
इस पत्र पर राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, राज्यसभा में पार्टी के उपनेता आनंद शर्मा, लोकसभा में इसके मुख्य सचेतक ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचेतक दीपेन्द्र हुड्डा के हस्ताक्षर हैं.
उन्होंने पार्टी के इस आरोप को भी दोहराया कि सरकार संसद का सामना करने तथा अपनी त्रुटिपूर्ण एवं अलोकप्रिय नीतियों के बारे में सवालों के जवाब से बच रही है.
पार्टी ने यह पत्र गुरुवार को मीडिया को जारी किया. इस पत्र में कांग्रेस नेताओं ने कहा, हम आपका ध्यान सरकार द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र को आहूत करने में सरकार द्वारा की जा रही असमान्य देरी की ओर आकृष्ट करना चाहते हैं, जिसके बारे में अभी तक कोई सफाई नहीं दी गई है.
इन नेताओं ने कहा कि 2012 गुजरात विधानसभा चुनाव 13 एवं 17 दिसंबर को हुआ था. बहरहाल, संसदीय सत्र को परंपराओं के अनुरूप 22 नवंबर को आहूत किया गया, इसे 20 दिसंबर को स्थगित किया गया.
उन्होंने कहा, यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक होगा कि मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र के बीच जो अंतराल होता है वह अन्य सत्रों के बीच के अंतराल की तुलना में सबसे लंबा होता है. लिहाजा समय पर सत्र नहीं बुलाने से अस्वस्थ परंपरा बनेगी.
कांग्रेस नेताओं ने दावा किया कि सरकार सदन में सवालों का सामना करने से कतरा रही है. उन्होंने कहा यह बेहद चिंता का विषय है कि सांसदों को उनके दायित्व के कथित रूप से समय पर निर्वहन करने से वंचित किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, इससे संसद स्वयं संस्था के रूप में कमतर होती है तथा माननीय राष्ट्रपति को संविधान के संरक्षक के रूप में फौरन हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है.