ग्राउंड रिपोर्ट: मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में पत्नी समेत जेल में बंद पूर्व विधायक अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी भी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में हैं. अमनमणि जेल से ही महराजगंज ज़िले की नौतनवा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव प्रचार की कमान उनकी बहनों के हाथ में है.
‘भउजी मारेली ऑटो पे मोहरिया होंटलाली में रोटी बोर के…’ हमने महराजगंज की विधानसभा सीट नौतनवा की सीमा में प्रवेश किया तो एक प्रचार वाहन मिला, जिसमें भोजपुरी भाषा में यह गाना बज रहा था. आॅटो निर्दलीय प्रत्याशी अमनमणि त्रिपाठी का चुनाव निशान है. अमनमणि, चार बार विधायक और मंत्री रह चुके अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं. अमरमणि त्रिपाठी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी समेत फ़िलहाल मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सज़ा काट रहे हैं.
अमनमणि त्रिपाठी ख़ुद भी जेल में हैं. उन पर उनकी पत्नी सारा की हत्या का आरोप है. वे जेल से ही निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. पहले अमनमणि को सपा से टिकट मिला था. लेकिन सारा की मां के प्रखर विरोध और सपा में बाप-बेटे के क्षद्मयुद्ध में उनका टिकट कट गया. वजह बताई गई थी कि सपा में अखिलेश यादव दागियों को टिकट नहीं देना चाहते. यह अलग बात है कि बाक़ी पार्टियों की तरह सपा ने भी तमाम दागियों को टिकट दिया. टिकट न मिलने पर अमनमणि ने निर्दलीय पर्चा दाख़िल किया. अपराधमुक्त राजनीति की चर्चा में अमनमणि त्रिपाठी का चुनाव लड़ना प्रदेश में काफी आकर्षण का विषय बना हुआ है.
विधानसभा क्षेत्र में प्रवेश करते ही हम ललाइन पैंसिया इलाके में रुके. यहीं पर अमरमणि त्रिपाठी का एक डिग्री कॉलेज है. इस कॉलेज में भोजपुरी गायक खेसारी लाल यादव का कार्यक्रम होने जा रहा था. एक ग्रामीण ने बताया कि अगले दिन अमनमणि के प्रचार के लिए भोजपुरी स्टार निरहुआ का कार्यक्रम होना है. एक अमनमणि के प्रचार दल में शामिल एक युवक ने बताया, ‘भोजपुरी स्टार लोग के आने से पब्लिक थोड़ा कनेक्ट होगी. यहां ये सब ज़्यादा चलता है.’
नौतनवा सीट पर भाजपा से समीर त्रिपाठी उम्मीदवार हैं. कांग्रेस से मुन्ना सिंह मौजूदा विधायक हैं. वे कांग्रेस छोड़कर सपा में चले गए थे लेकिन सपा कांग्रेस गठबंधन के बाद पूनर्मूषको भव वाली मुद्रा में आ गए हैं. अब वे दोनों पार्टियों के संयुक्त उम्मीदवार हैं. पूरे क्षेत्र में अलग अलग वोटरों की प्रतिक्रिया से यह अंदाज़ा लगा कि मुख्य लड़ाई मुन्ना सिंह और अमनमणि त्रिपाठी के बीच है.
ललाइन पैंसिया में होटल चलने वाले अर्जुन प्रसाद ने बताया, ‘अमरमणि त्रिपाठी ने पहले यहां पर बहुत काम किया है. उनकी सेवा को जनता बहुत सम्मान से देखती है. सड़क, बिजली, पानी, स्कूल आदि को लेकर उन्होंने बहुत किया. जनता यह मानती है कि उन्होंने गलत किया लेकिन उनको समर्थन भी कर रही. हालांकि, लग रहा है कि भाजपा यहां से जीतेगी.’
लेकिन नौतनवा विधानसभा के अंतर्गत चंडीथान के अजीत ने कहा, ‘अमरमणि पर जो आरोप हैं, वह कोर्ट का मामला है, लेकिन हम लोग यह जानते हैं कि उनके साथ षड्यंत्र किया गया है. इस बार अमनमणि को जिताने का मूड बन गया है.’
अमनमणि त्रिपाठी के लिए उनकी बहनें तनुश्री त्रिपाठी (27) और अलंकृता त्रिपाठी (24) प्रचार कर रही हैं. तनुश्री ने डीयू से बीए ऑनर्स किया है और लंदन से मास्टर डिग्री ली है. अलंकृता भी दिल्ली में रहकर डीयू से पढ़ाई कर रही हैं. पिता और भाई के जेल में रहने के कारण प्रचार की कमान मुख्य रूप से तनुश्री के हाथ में है. वे जनता से इस बात की शिकायत कर रही हैं कि उनके ‘परिवार के साथ षड्यंत्र हुआ है.’ उन्हें इस चुनाव से काफी आशा है. तनुश्री के साथ में उनके पिता और भाई के कुछ वफ़ादार दिनभर घूमकर प्रचार करते हैं. दोनों बहनें विरोधियों के ख़िलाफ़ आक्रामक होकर भाषण देती हैं लेकिन विरोधियों पर हमले शुरू होकर उनका भाषण भावुक अपील पर पहुंच जाता है. इलाक़े के लोग और स्थानीय पत्रकारों की राय है कि दोनों बहनों का पढ़ाई छोड़कर मैदान में कूदना और भावुक अपील करना उनके प्रति सहानुभूति पैदा कर रहा है.
हम अमनमणि के प्रचार कार्यालय पहुंचे जो नौतनवा रेलवे स्टेशन के ठीक बगल में है. स्थानीय पत्रकारों और नागरिकों ने बताया कि यह प्रचार कार्यालय क़ब्ज़े की ज़मीन पर बना है. वहां पर उनके कुछ समर्थक और कार्यकर्ता मौजूद थे. वहां पर बड़े-बड़े हंडे में खाना बनाया गया था. कुछ लोग खाना खा रहे थे. खाना खाने वालों में एक गुब्बारा बेचने वाला भी था और एक बुजुर्ग जो काफ़ी बूढ़ा और फटेहाल दिख रहा था. उसकी हालत निहायत दयनीय थी. फटे हुए कपड़े इतने मैले थे कि काले पड़ गए थे. उन काले पड़ चुके चीथड़ों के ऊपर, सीने और पीठ पर अमनमणि का चुनाव परचा चिपकाया गया था.
एक तरफ खाने की मेज लगी थी जिस पर खाने के चमकदार टब रखे थे, जिन पर सब्ज़ी और दाल गिरकर बिखरी थी. ऐसा लग रहा था कि शाम को खाना कार्यकर्ताओं ने खाना खाया होगा. पूरे अहाते में कुर्सियां बिखरी थीं और वहां पर कुछ महंगी गाड़ियां खड़ी थीं. कार्यकर्ताओं में ज़्यादातर नवजवान थे. उनमें से एक हमें तनुश्री त्रिपाठी से मिलवाने ले गया. हम वहां से निकल कर करीब दो किलोमीटर गए, जहां एक पुराने से घर की लान में तनुश्री कुछ कार्यकर्त्ताओं के साथ मौजूद थीं. वे अपनी चुनावी सभा और प्रचार के बारे में योजना बना रही थीं.
तनुश्री पढ़ी लिखी हैं और नेताओं की पारंपरिक वेशभूषा से अलग एक आम लड़की की तरह दिखती हैं. ज़्यादातर नेताओं से उलट वे बातचीत में सहज हैं और उनके जवाब में कुटिलता नहीं है, जैसा कि आम तौर पर नेताओं में होती है. हमने उनसे पूछा, इस चुनाव में मुद्दे क्या-क्या हैं, जिन्हें लेकर आप जनता के बीच जा रही हैं?
इसके जवाब में तनुश्री कहती हैं, ‘हमारे पिता ने इस इलाके में बहुत काम किया है. बच्चे 8वीं के बाद पढ़ नहीं पाते थे. उन्होंने स्कूल खुलवाए, शिक्षा की दूसरी व्यवस्थाएं करवाईं, 20 साल पहले यहाँ कंप्यूटर लाए, उस समय भी यहां 24 घंटे बिजली आने लगी थी. आदिवासी इलाके में बिजली नहीं पहुंच सकती थी तो सोलर लाइट की व्यवस्था की. सड़कें बनवाईं. कुछ इलाकों में विकास नहीं पहुंचा है. हमारे लिए वही मुद्दा है.’
लंदन से मास्टर डिग्री लेने वाली तनुश्री राजनीतिक परिवार से हैं और वे विचारधारा की राजनीति चाहती हैं और मार्क्सवाद को पसंद करती हैं. वे कहती हैं, ‘मैं अपने विचारों में समाजवादी हूं लेकिन समाजवादी पार्टी को पसंद नहीं करती. मेरे ख़्याल से मार्क्स का विचार आदर्श विचार है.’
छात्र राजनीति को अच्छा मानते हुए तनुश्री कहती हैं, ‘जेएनयू और डीयू में मज़बूत छात्र राजनीति है, ये अच्छी बात है. फ़िलहाल विचारधारा की राजनीति बंद होकर यह मुद्दों पर केंद्रित हो गई है. ये अच्छा नहीं है. हालांकि, विचारधारा की राजनीति फिर से लौट रही है. कुछ वर्षों में वह फिर से शुरू होगी. राजनीति के लिए विचारधारा ज़रूरी है.’
तनुश्री ख़ुद चुनाव नहीं लड़ रही हैं, फिर भी उन्हें चुनाव में क्यों उतरना पड़ा, इसके जवाब में तनुश्री कहती हैं, ‘यह हमारे सर्वाइवल की लड़ाई है. हमारी स्थिति ऐसी है कि हमें तैरना नहीं आता, लेकिन पानी में फेंक दिया गया है. हालांकि, हमारी लड़ाई सपा के उम्मीदवार से है. इस बार जनता हमारे साथ है, हम जीतेंगे.’ उनके पिता और भाई, जिनकी जीत के लिए वे मैदान में उतरी हैं, वे दोनों दो महिलाओं की हत्या के सिलसिले में जेल काट रहे हैं. इन आरोपों के बारे में पूछने पर तनुश्री कहती हैं, ‘हमारे परिवार के षडयंत्र हुआ है. उन आरोपों में कुछ सच्चाई नहीं है. उन्हें फंसाया गया है.’
वहां से निकलकर हम सपा के उम्मीदवार मुन्ना सिंह के कार्यालय में पहुंचे. उनके यहां समर्थकों की संख्या कुछ ज़्यादा थी. वे कार्यालय के अंदर थे, जहां हमें एक स्थानीय पत्रकार महोदय लेकर गए. मुन्ना सिंह का दावा रहा, ‘हमने इलाक़े में विकास किया है, सड़कें, बिजली, पानी के लिए अपनी विधायक निधि से पैसा ख़र्च किया है और पुस्तिका छपवाकर जनता को पूरा हिसाब दिया है. हम रोहिण बैराज का नवीनीकरण कराकर सिंचाई की व्यवस्था कराएंगे.’ वे सिंचाई, बिजली, सड़क और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने का वादा कर रहे हैं. वे पूर्व विधायक अमरमणि पर आरोप लगाते हैं, ‘उन्होंने अपनी विधायक निधि का पूरा पैसा अपने ही कॉलेज को दे दिया, जबकि कोई विधायक अपनी निधि से किसी कार्यदायी संस्था को 25 से ज़्यादा नहीं दे सकता.’
मुन्ना सिंह दो बार सपा से और एक बार राजद से चुनाव लड़े और अमरमणि त्रिपाठी से हार गए. 2012 में कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. वे आरोप लगाते हैं, ‘तनुश्री त्रिपाठी पर वोटर 200-200 रुपये बांट रही हैं. अमरमणि त्रिपाठी जेल से जनता को मोबाइल मैसेज भेजकर प्रचार कर रहे हैं.’
वे ज़मीन क़ब्ज़ाने जैसे गंभीर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘अमरमणि ने कर्नल ओम प्रकाश त्रिपाठी की दो एकड़ ज़मीन क़ब्ज़ा कर ली थी, जिसे अभी ख़ाली कराया गया है. उनका कार्यालय भी क़ब्ज़े की ज़मीन में है. हमने विधानसभा में शिकायत की लेकिन शिवपाल यादव ने कह दिया कि जाने दो.’
अमरमणि पर प्रदेश भर में ज़मीन क़ब्ज़ाने का आरोप लगाते हुए मुन्ना सिंह कहते हैं, ‘उन्होंने कटका जंगल में 40 एकड़ ज़मीन क़ब्ज़ा कर रखी है. 250 एकड़ ज़मीन तुलसीपुर में क़ब्ज़ा कर रखी है. लखनउ के चिनहट में 5 बीघा ज़मीन का बैनामा है जबकि क़ब्ज़ा 70 एकड़ पर है.’
वे गांधी, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद का हवाला देते हुए कहते हैं, ‘क्या ऐसी ही राजनीति के लिए भारत निर्माण का सपना देखा गया था?’ तनुश्री की तरह वे भी स्वीकार करते हैं कि उनकी लड़ाई अमरमणि परिवार से है और वे जीतेंगे.
बसपा और भाजपा के उम्मीदवार से हमारा संपर्क नहीं हो सका. बसपा के एक ज़िला पदाधिकारी और ग्राम प्रधान ने कहा, ‘ज़मीनी सच्चाई यही है कि नौतनवा में 103 प्रधान हैं, इनमें से ज़्यादातर अमनमणि के साथ हैं. सपा की तरफ़ से दबाव काफ़ी है लेकिन लोग अमनमणि को ही जिताना चाहते हैं. अमरमणि त्रिपाठी इस इलाक़े में एक ब्रांड हैं, उनको यहां विकास पुरुष माना जाता है. उनके बेटे चुनाव जीत रहे हैं.’
अमरमणि परिवार पर संगीन आरोप के सवाल पर वे कहते हैं, ‘जो आरोप हैं उसे अदालत जाने, क़ानून अपना काम करेगा, लेकिन सच यही है कि बाक़ी पार्टियां चुनाव से बाहर हैं. मुख्य लड़ाई साइकिल और आॅटो में है.’
अमरमणि दंपति और बेटे अमनमणि के संगीन आरोप में जेल में होने के बावजूद जनता उनके साथ क्यों दिख रही है? इस सवाल का जवाब तनुश्री की सभा में मिलता है जब एक युवक बुलंद आवाज़ में एक कविता पढ़ता है, जिसकी अंतिम पंक्ति थी, ‘अवाम मेहरबान है तो क्या करेगी हथकड़ी…’ जनता की निगाह में राजनीति और नेताओं की छवि चाहे जैसी हो, लेकिन शायद वह नेता के हाथ में हथकड़ी को नज़रअंदाज़ करके उस पर मेहरबान हो जाती है.