विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों की जीत के बाद नरेंद्र मोदी ने ‘हैट्रिक’ शब्द कहते हुए आगामी लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार की ज़मीन तैयार कर दी है. हालांकि, आंकड़ों के साथ इस दावे की पड़ताल भाजपा के लिए उतनी आश्वस्तकारी नहीं है, जितनी समझी जा रही है.
प्रधानमंत्री ने बोला ‘हैट्रिक’. बाकी सब भी बोले ‘हैट्रिक’. सुबह होते-होते पूरे देश में यह संदेश फैल गया कि तीन राज्यों की विजय के बाद अब भाजपा को तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतने से कोई रोक नहीं सकता. भाजपा के समर्थक अभी से विजयोन्माद में हैं, विरोधी मायूस हैं. किसी को यह पूछने की फुर्सत नहीं है: क्या यह निष्कर्ष सच है?
मनोवैज्ञानिक खेल इसी तरह से खेले और जीते जाते हैं. एक छोटे से सच का इतना बड़ा गुब्बारा फुला दो कि उसमें हर विरोधाभासी सच छिप जाए. लड़ाई शुरू होने से पहले ही विरोधी के हौसले पस्त हो जाएं, मैच में वॉकओवर ही मिल जाए. इसलिए जरूरी है कि ठंडे दिमाग से इस दावे की पड़ताल की जाए.
पहला: शुरुआत चुनाव आयोग की वेबसाइट से कीजिए. चारों राज्यों में सभी पार्टियों को मिले कुल मतों को जोड़ दीजिए. विजय का शंखनाद करने वाली भाजपा को कुल वोट मिले हैं 4,81,33,463 जबकि चुनाव में ‘परास्त’ हुई कांग्रेस को मिले हैं 4,90,77907 वोट. यानी भाजपा की तुलना में कांग्रेस को कुल मिलाकर लगभग साढ़े नौ लाख वोट ज्यादा मिले हैं. फिर भी चारों ओर चर्चा ऐसे है मानो भाजपा ने कांग्रेस को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है.
तीनों हिंदी राज्यों में अगर सीटों की संख्या देखें, तो भाजपा ही भाजपा नजर आती है, लेकिन मतों में बहुत बड़ा अंतर नहीं है.
राजस्थान में भाजपा को 41.7% वोट मिले हैं तो कांग्रेस को 39.6% वोट, यानी अंतर सिर्फ दो प्रतिशत का है. उधर छत्तीसगढ़ में फासला 4 प्रतिशत का है: भाजपा को 46.3 प्रतिशत वोट मिले हैं तो कांग्रेस को 42.2% वोट. सिर्फ मध्य प्रदेश में फासला 8% से भी ज्यादा है: भाजपा को 48.6% तो कांग्रेस को 40% वोट. तीनों राज्यों में हारने के बावजूद कांग्रेस के पास 40 प्रतिशत या अधिक वोट है, जहां से वापसी करना बहुत मुश्किल काम नहीं है.
तीनों हिंदी भाषी प्रदेशों में कुल मिलाकर भाजपा को जो बढ़त मिली है उसकी भरपाई सिर्फ एक तेलंगाना से हो जाती है. तेलंगाना में कांग्रेस पार्टी को 39.4 प्रतिशत (92 लाख से ज्यादा) वोट मिले, जबकि भाजपा को 13.9 प्रतिशत (32 लाख से भी कम). जिस राज्य में 2018 के बाद कांग्रेस चुनावी दौड़ से बाहर होने की कगार पर थी, वहां उसका शीर्ष पर पहुंचना राजनीतिक उभार और जिजीविषा का संकेत है.
दूसरा: हैट्रिक वाले मिथक की जांच के लिए इतिहास की समीक्षा कीजिए. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव के कुछ ही महीनों में लोकसभा का चुनाव पिछले दो दशक से चला आ रहा है. पिछली बार 2018 में भाजपा इन तीनों राज्यों में हार गई थी. लेकिन तब प्रधानमंत्री या मीडिया ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार निश्चित होने का दावा नहीं किया. जब संसदीय चुनाव हुए तो भाजपा ने इन तीनों राज्यों और बाकी हिंदी पट्टी में जबरदस्त जीत हासिल की.
इससे पहले साल 2003 में जब कांग्रेस इन तीनों राज्यों में हारी थी उसके कुछ ही महीने बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आशातीत सफलता प्राप्त की थी. मतलब यह है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव की तासीर अलग होती है और सीधे विधानसभा से लोकसभा के बारे में निष्कर्ष निकालना गलत होगा. अगर भाजपा इसे पलट सकती है तो कांग्रेस क्यों नहीं?
तीसरा: 2024 में सत्ता परिवर्तन के समीकरण को देखिए. भाजपा हिंदी पट्टी के इन तीनों राज्यों पर निर्भर है, लेकिन विपक्ष की उम्मीद इनके सहारे नहीं टिकी है. ‘इंडिया’ गठबंधन का चुनावी गणित कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार और बंगाल में भाजपा की सीट कम करने पर टिका है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की 65 सीटों में भाजपा के खाते में 61 पहले से ही हैं और कांग्रेस के पास सिर्फ 3 हैं. यानी भाजपा की चुनौती है की वो इन सभी सीटों को बनाए रखे और संभव हो, तो तेलंगाना में जो चार सीट जीती थीं, उसमें इजाफा करें. उधर, कांग्रेस के पास इन राज्यों में खोने को कुछ नहीं है. मतलब इन विधानसभा चुनाव में भाजपा को कुछ भी नया हासिल नहीं हुआ है.
चौथा: विधानसभा के इस परिणाम को लोकसभा के हिसाब से गिन लीजिए. दरअसल, कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में विधानसभा के इन नतीजे को पलटने की जरूरत भी नहीं है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में कुल मिलाकर लोकसभा की 83 सीटें हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां 65 सीट मिली थीं, कांग्रेस के हिस्से आईं सिर्फ 6, बाकी बीआरएस, एमएनएफ और एमआईएम के हिस्से में थीं.
अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में हर विधानसभा हलके में भाजपा और कांग्रेस को ठीक वही वोट मिलें जो 2023 के विधानसभा चुनाव में मिले हैं, तो आंकड़ा इस तरह होगा-
राजस्थान; भाजपा 14, कांग्रेस 11,
छत्तीसगढ़: भाजपा 8, कांग्रेस 3,
मध्य प्रदेश: भाजपा 25, कांग्रेस 4,
तेलंगाना: कांग्रेस 9, भाजपा 0 (बीआरएस को 7 और एमआईएम को 1),
मिजोरम: जे़डपीएम 1 सीट.
कुल मिलाकर इन विधानसभा चुनावों के हिसाब से लोकसभा में 83 सीटों में भाजपा को 46 और कांग्रेस को 28 सीट बनती हैं. मतलब इन विधानसभा परिणाम के हिसाब से फायदे की बजाय भाजपा को 19 सीट का घाटा हो सकता है जबकि कांग्रेस को 22 सीटों का फायदा. बस कांग्रेस को इतना ही सुनिश्चित करना है कि जो वोट उसे विधानसभा चुनावों में मिलें, वही लोकसभा में भी मिल जाएं.
अब कोई कहेगा कि यह तो सादा गणित है. आपने ‘मोदी मैजिक’ का हिसाब तो किया ही नहीं. मोदी का जादू चलेगा तो इन सब राज्यों में भगवा लहराएगा और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जाएगा.
लेकिन अगर ‘मोदी है तो कुछ भी मुमकिन है’ तो उसके लिए विधानसभा चुनाव में हैट्रिक का तर्क देने की क्या जरूरत है? जादू में भरोसा है तो इसे आस्था कहिए, विधानसभा चुनाव के परिणाम की आड़ लेने की क्या जरूरत है?
(मूल रूप से पंजाब केसरी में प्रकाशित लेख को लेखक की अनुमति से पुनर्प्रकाशित किया गया है.)