‘साबरमती के संत’ पर सियासत, कवि प्रदीप की बेटी और बापू के परपोते आहत

'नेता साबरमती के संत गीत की आलोचना कर बापू और अहिंसक आंदोलन के प्रति अपनी नफ़रत दिखा रहे हैं. अगर दिक्कत है तो इस गीत को प्रतिबंधित क्यों नहीं करा देते.'

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'साबरमती के संत' गाने के फिल्मांकन से महात्मा गांधी की तस्वीर. (फोटो साभार: यूट्यूब)

‘नेता साबरमती के संत गीत की आलोचना कर बापू और अहिंसक आंदोलन के प्रति अपनी नफ़रत दिखा रहे हैं. अगर दिक्कत है तो इस गीत को प्रतिबंधित क्यों नहीं करा देते.’

'साबरमती के संत' गाने के फिल्मांकन से महात्मा गांधी की तस्वीर.  (फोटो साभार: यूट्यूब)
‘साबरमती के संत’ गाने के फिल्मांकन से महात्मा गांधी की तस्वीर. (फोटो साभार: यूट्यूब)

इंदौर: कवि प्रदीप के क़रीब साढ़े छह दशक पहले लिखे फिल्मी गीत ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ को सियासी अखाड़े में जब-तब खींचे जाने पर गीतकार की बेटी और बापू के परपोते ने गहरी नाराज़गी जताई है. यह मार्मिक गीत महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि के रूप में फिल्म जागृति (1954) के लिए रचा गया था.

कवि प्रदीप की बेटी मितुल प्रदीप ने मुंबई से फोन पर कहा, बेहद दु:खद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनेता सस्ता प्रचार हासिल करने के लिए इस गीत ‘साबरमती के संत’ को लेकर बार-बार विवादास्पद बयान देते हैं.

उन्होंने कहा, मेरे पिता किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं थे. उन्होंने यह गीत कांग्रेस के लिए नहीं, बल्कि देश की आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के महान योगदान के सम्मान में लिखा था.

मितुल ने तल्ख़ लहज़े में कहा, राजनेता इस गीत की आलोचना कर दरअसल बापू और उनके अहिंसक आंदोलन के प्रति अपनी नफ़रत दिखा रहे हैं. अगर राजनेताओं को इस गीत से इतनी ही दिक्कत है, तो वे इसे प्रतिबंधित क्यों नहीं करा देते.

हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के कुछ दिन पहले दिए इस बयान ने विवाद खड़ा कर दिया था कि कांग्रेस नेताओं द्वारा साबरमती के संत गीत गाना उन क्रांतिकारियों का अपमान है, जिन्होंने देश की आज़ादी की लड़ाई में अपनी जान क़ुर्बान कर दी थी.

हालांकि, यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब किसी राजनेता ने इस गीत को लेकर विवादास्पद बयान दिया हो. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने वर्ष 2016 में एक सार्वजनिक समारोह में कहा था, अगर इस देश को आज़ादी मिली है, तो यह गीत गाकर नहीं मिली है कि ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल. वास्तव में हमें भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद… इन लोगों के बलिदान के कारण आज़ादी मिली है.’

महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने बातचीत में आरोप लगाया कि ‘साबरमती के संत’ गीत के ख़िलाफ़ सुनियोजित रणनीति के तहत बयानबाज़ी की जा रही है, क्योंकि बापू की याद कुछ लोगों की आंखों में चुभती है.

उन्होंने कहा, यह गीत केवल एक किरदार बापू पर केंद्रित है. इसमें आज़ादी की लड़ाई में बापू की योगदान की सराहना की गई है. लेकिन इसमें शहीदों की क़ुर्बानियों को कतई नीचा नहीं दिखाया गया है. लोकतंत्र में किसी गीतकार को पूरी रचनात्मक स्वतंत्रता तो मिलनी ही चाहिए. उसे यह तो नहीं कहा जा सकता कि वह नाप-तौल कर गीत लिखे.

बापू के परपोते ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी की अगुवाई वाले अहिंसक आंदोलन और क्रांतिकारियों के सशस्त्र संघर्ष के बीच तुलना को अनुचित बताते हुए कहा, मैं हमेशा कहता हूं कि देश की आजादी में बापू का जितना योगदान है, उतना ही योगदान क्रांतिकारियों का भी है.

फिल्म जागृति के ‘साबरमती के संत’ गीत को आशा भोंसले ने अपनी आवाज़ दी थी और इसे हेमंत कुमार ने संगीतबद्ध किया था. सत्येन बोस की निर्देशित इस फिल्म के अन्य देशभक्ति गीत भी काफ़ी मशहूर हैं.