तमिल फिल्म अन्नपूर्णी, जिसे नेटफ्लिक्स ने हटा दिया है, को लेकर उपजा विवाद हुआ ही नहीं होता, अगर फिल्म के दृश्य से आहत होने वाले कथित धार्मिकों ने वाल्मीकि रामायण पढ़ ली होती.
एक और बेकार का विवाद, फिर एक बार विवेकविहीन हिंदुत्व सिरफिरों का खड़ा किया हुआ! इस बार ये फिल्मकार नीलेश कृष्ण कीतमिल फ़िल्म ‘अन्नपूर्णी’ को लेकर है, जिसमें नयनतारा, जय और सत्यराज ने अभिनय किया है.
फ़िल्म की कहानी दिलचस्प है.
एक ब्राह्मण लड़की (अन्नपूर्णी- नयनतारा) शेफ बनने का सपना संजोती है. वो अपने शुद्ध शाकाहारी पिता से छुपकर एक होटल मैनेजमेंट कोर्स में दाख़िला लेती है. समस्या तब आती है जब उसे मांसाहारी भोजन बनाना पड़ता है. उसका एक मुस्लिम दोस्त फ़रहान उसे समझाता है कि मांसाहारी व्यंजन बनाने में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए. उसे यक़ीन दिलाने के लिए फ़रहान वाल्मीकि ‘रामायण’ का एक श्लोक सुनाता है जिसमें इस बात का जिक्र है कि अपनी भूख मिटाने को राम और लक्ष्मण शिकार करते हैं और मांस पकाते हैं.
इसे हिंदुत्व के सिरफिरों ने बतंगड़ बना दिया है. क्यों? उनकी भावनाओं पर ठेस लग गई है- राम को मांसाहारी कैसे बताया जा सकता है और वो भी तब जब अयोध्या में राम की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा का माहौल है! मामला और पेचीदा हो जाता है क्योंकि ये सब एक हिंदू औरत और मुसलमान पुरुष के बीच हुआ संवाद है. गोया सवाल सिर्फ़ राम के खान-पान का ही नहीं बल्कि ‘लव जिहाद’ का बखेड़ा भी शामिल है. नतीजतन, फ़िल्म निर्माताओं के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में पुलिस में शिकायत दर्ज की गई. नेटफ़्लिक्स को इस फिल्म को अपने प्लेटफॉर्म से हटाने का फ़ैसला लेना पड़ा. इस फ़िल्म के निर्माता ज़ी स्टूडियोज़, अभिनेत्री नयनतारा ने ‘हिंदू भावनाओं को ठेस’ पहुंचाने के लिए माफ़ी मांग ली.
जो सवाल पूछने की जरूरत है वो ये कि- क्या राम, लक्ष्मण और सीता मांस खा सकते हैं? क्या हम ऐसा सोच भी सकते हैं?
ज़ाहिर है वाल्मीकि के दिमाग़ में इसे लेकर कोई दुविधा नहीं थी.
मैंने फिल्म देखी है. तो फ़िल्म में ये सीन, जिसने हिंदुत्व सिरफिरों को भड़का दिया है. इस तरह घटता है: नायिका और उसका मुसलमान दोस्त सीढ़ियों पर हैं और बातचीत के दौरान दोस्त नायिका की मांसाहारी व्यंजन बनाने की दुविधा के चलते वाल्मीकि रामायण का ये श्लोक सुनाता है:
तौ तत्र हत्वा चतुरो महामृगान्
वराहमृश्यं पृषतं महारुरुम्।
आदाय मेध्यं त्वरितं बुभुक्षितौ
वासाय काले ययतुर्वनस्पतिम्।।2.52.102।।
मुझे तो इसमें कुछ भी अजीब नहीं लगता कि एक मुसलमान चरित्र वाल्मीकि रामायण का श्लोक सुनाए. मेरी समझ में वाल्मीकि रामायण का बेहतरीन अंगेज़ी अनुवाद एक संस्कृत स्कॉलर अर्शिया सत्तार, ने किया है, जो इत्तेफ़ाक़न मुसलमान हैं.
हालांकि मैं आस्तिक नहीं हूं, मगर मैं वाल्मीकि रामायण को कवित्त के लिहाज़ से पढ़ता हूं, और वो भी संस्कृत में.
जिस श्लोक की बात हो रही है वो अयोध्या कांड के अध्याय 52 में 102वां श्लोक है. (ये उत्तरकांड के बीच में डाला हुआ नहीं है जैसा कुछ अज्ञानी दावा कर रहे हैं.)
इसमें राम के वनवास की शुरुआत के उस समय का बखान है जब अयोध्या को छोड़ने और सरयू नदी को पार करने के बाद वे वत्स क्षेत्र में भूखे, थकेहारे पहुंचते हैं और वहां खाने और पेड़ के नीचे रात बिताने का फ़ैसला करते हैं. इस श्लोक का अनुवाद को ध्यान से देखते हैं:
‘भूखे राम और लक्ष्मण तब चार बड़े जानवरों का शिकार करते हैं- महामृगन, वराह, मृष्यम, पृषतम, महारुरुम्; शीघ्र ही शाम को पेड़ के नीचे मांस खाते हैं.’
किसी को भी अगर इन शब्दों और उनके अर्थ के बारे में शक हो तो वो कोई भी मानक संस्कृत शब्दकोष देख सकते हैं. वाल्मीकि रामायण में मांस खाने के संदर्भ कई जगह में बिखरे हुए हैं. एक और हिस्सा जो याद आ रहा है, वो है वाल्मीकि रामायण में अयोध्या कांड के भाग 56 के, 34 और 35वें श्लोकों में, जहां वनवास की शुरुआत में राम, लक्ष्मण और सीता के चित्रकूट में आगमन का बखान है- वहां मांसाहार सेवन का एक और मिलता जुलता ज़िक्र है.
मूल संस्कृत और उसका हिंदी अनुवाद मैं नीचे दे रहा हूं. इनके मूल शब्द और कई भाषाओं में अनुवाद इंटरनेट पर मिलते हैं. जिन्हें ढूंढकर पढ़ने में वाक़ई दिलचस्पी हो वे ओरिएंटल इंस्टिट्यूट ऑफ द एमएस यूनिवर्सिटी, बड़ोदा द्वारा 1962 में प्रकाशित और पीएल वैद्य द्वारा संपदित वाल्मीकि रामायण (6 खंड) को देख सकते हैं.
तो ये श्लोक है:
वन्यैर्मालयैह फलैरमुउलाईह पक्वैरमांसैर्यथाविधि ।
अदभारजापैश्च वेदोक्ताई रधरभिष्का ससमितकुशाईह || 2.56.34
ताऊ तर्पेयत्वा भूतनी राघवौ सह सितया |
तदा विविशतुः शालम सुशुभां शुभलक्षनौ || 2.56.35
‘राम-लक्ष्मण ने सीता सहित शुभ लक्षणों से युक्त वन में प्राप्त फूलों के मुकुट, फलों की जड़ों और पके हुए मांस से, जल से, पवित्र ग्रंथों (वेदों) में वर्णित प्रार्थनाओं द्वारा, पवित्र घास से, वहां के भूत और देवगणों को तृप्त किया. ईंधन और कुशा घास साथ लिए और फिर शुभ पत्ते से निर्मित झोपड़ी में प्रवेश किया.’
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सयुंक्त शब्द- ‘पक्वैरमांसैर्यथाविधि’ का एक और सिर्फ़ मतलब है – ‘सही विधि से अच्छी तरह से पकाया हुआ मांस’!
मैंने इसी को फ़ेसबुक पर 10 अप्रैल 2022 पर पोस्ट किया था, जब कुछ अज्ञानी एबीवीपी से संबद्ध लोगों ने जेएनयू के छात्रों पर रामनवमी के दिन मांस खाने को लेकर हमला किया था. उन अज्ञानियों की नज़र में राम के संदर्भ में किसी भी मामले में मांसाहारी होने का हल्का सा इशारा भी अमान्य है.
हिंदुत्व उबाऊ, आत्मा-विहीन, एकरंगी और बार-बार दोहराए जाने वाला है. उन्हीं क़िस्सों को बार-बार उछाला जा रहा है. प्यार और खान-पान के संदर्भ में ये मुंह कड़वा देने वाली बातें हैं. मुझे शाकाहारियों या वीगन लोगों से कोई ऐतराज़ नहीं है. मगर जो मांस खाना चाहते हैं उन पर शाकाहारीपन थोपना हेकड़ी और हिंसात्मक है. और जब ऐसा फ़र्ज़ी शास्त्रीय प्रमाण के आधार पर किया जाता है, तो यह हास्यास्पद हो जाता है.
(लेखक की फेसबुक पोस्ट पर आधारित इस लेख का अनुवाद अशोक लाल द्वारा किया गया है.)