बीजापुर में एक समूह पर ईसाई दंपति को कथित तौर उनके धर्म को लेकर प्रताड़ित किए जाने का आरोप है. पीड़ितों के उनकी शिकायत लेकर स्थानीय अदालत पहुंचने के बाद इसे लेकर एफआईआर दर्ज की गई है.
नई दिल्ली: कर्नाटक के बीजापुर के एक ईसाई दंपति को कथित तौर पर उनके धर्म को लेकर पुरुषों के एक समूह ने पीटा. उन्हें इस धर्म का पालन करते रहने और अधिक हिंसा की चेतावनी दी गई.
यह घटना तब सामने आई जब पीड़िता विजयलक्ष्मी और उनके पति अशोक चव्हाण ने अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए एक स्थानीय अदालत का दरवाजा खटखटाया. पुलिस ने अदालत के आदेश के आधार पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 143, 147, 509, 323, 504, 506 और 149 के तहत एफआईआर दर्ज की है.
विजयलक्ष्मी ने अपनी शिकायत में कहा, ‘संविधान के अनुसार मुझे ईसाई धर्म का पालन करने का अधिकार है.’ उनके अनुसार, इसे लेकर उन्हें पुरुषों के एक समूह से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें उन पर अपमानजनक टिप्पणियां की जा रही हैं. उनके और उनके परिवार के जीवन को बर्बाद करने की धमकियां दी जा रही हैं और यहां तक कि उन्हें सरकारी दस्तावेज रद्द करने, खाद्य सुरक्षा कार्ड, आधार कार्ड और अन्य चीजें वापस लेने की चेतावनी भी दी जा रही है. उन्होंने बताया कि आरोपियों ने उन्हें नौकरी से निकलवाने की भी धमकी दी है.
एफआईआर में रवि दरप्पा लमानी, सुरेश शिवप्पा लमानी, राजशेखर लमानी, पुनीत लमानी, परसु रत्नप्पा लमानी और धनसिंग लमानी को आरोपी बनाया गया है.
विजयलक्ष्मी और उनके पति पर यह हमला स्थानीय स्तर पर ‘जबरन धर्मांतरण’ का आरोप लगाए जाने और स्थानीय स्तर पर और पूरे कर्नाटक में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर उनके खिलाफ अभियान चलाए जाने के एक दिन बाद हुआ.
विजयलक्ष्मी आशा स्वास्थ्यकर्मी हैं, जिनके काम में घर-घर जाकर बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल के बारे में जागरूकता फैलाना शामिल है.
दुनिया भर में ईसाई समुदाय के लिए काम करने वाली संस्था क्रिश्चियन सॉलिडेरिटी वर्ल्डवाइड (सीएसडब्ल्यू) ने बताया कि कुछ ग्रामीणों ने एक ईसाई महिला के उनके घरों में प्रवेश करने पर आपत्ति जताई और उनके परिवार को धमकी दी, उन्हें नौकरी से निकलवाने की कोशिश की.
जबरन धर्म परिवर्तन के आरोपों के बाद उप्पलादिन्नी क्षेत्र के अन्य ईसाइयों ने बसवाना बागेवाड़ी नगर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है. यह कोई अकेली घटना नहीं है, क्योंकि उप्पलादिन्नी के तीन अन्य ईसाई परिवार, जो चव्हाण और उनकी पत्नी के साथ उसी चर्च में जाते हैं, को भी इस महीने उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है.
बीते 3 जनवरी को समुदाय प्रमुख ने स्थानीय सेवा-प्रदाताओं को इन परिवारों की बिजली-पानी आपूर्ति में कटौती करने का निर्देश दिया और सार्वजनिक रूप से उन्हें चेतावनी दी कि यदि वे ईसा मसीह को मानना जारी रखेंगे तो उन्हें मार दिया जाएगा.
सीएसडब्ल्यू के संस्थापक अध्यक्ष मर्विन थॉमस ने इस बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ‘सीएसडब्ल्यू उप्पलादिन्नी में ईसाइयों के लिए चिंतित हैं, जिन्हें उनकी आस्था के कारण अलग-थलग, परेशान किया गया है और उन पर हमला किया गया है. हम पुलिस से आग्रह करते हैं कि महिला और उनके पति पर हमला करने वाले अपराधियों की जांच की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी हमलावरों को न्याय के कटघरे में लाया जाए. यह भारत भर में धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति सामाजिक शत्रुता की बढ़ती प्रवृत्ति का हिस्सा है जिस पर अधिकारियों को तत्काल ध्यान देना चाहिए.’
पिछले वर्ष भारत में 300 से अधिक चर्च जला दिए गए थे और 2023 के पहले आठ महीनों में ईसाइयों के खिलाफ 525 हमले हुए थे.
आंकड़े बताते हैं कि 2012 से 2022 के बीच दर्ज ऐसी घटनाएं चार गुना बढ़ गईं. पहली महत्वपूर्ण वृद्धि 2016 में हुई, जिसमें ईएफआई रिपोर्ट में 247 घटनाओं का विवरण दिया गया है. अगले वर्षों में यह संख्या बढ़ती रही, 2021 में 505 घटनाओं तक पहुंच गई और 2022 में बढ़कर 599 हो गई.
यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में 23 राज्यों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा हुई. उत्तर प्रदेश में 155 घटनाएं हुईं, इसके बाद छत्तीसगढ़ में 84, झारखंड में 35, हरियाणा में 32, मध्य प्रदेश में 21, पंजाब में 12 घटनाएं हुईं.
इसी तरह कर्नाटक में 10, बिहार में 9, जम्मू-कश्मीर में 8, गुजरात में 7, उत्तराखंड में 4, तमिलनाडु में 3, पश्चिम बंगाल में 3, हिमाचल प्रदेश में 3, महाराष्ट्र में 3, ओडिशा में 2, दिल्ली में 2, और आंध्र प्रदेश, असम, चंडीगढ़ और गोवा में एक-एक घटना हुई.
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