दिल्ली: वेतन कटौती और यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ अस्पताल के सफाई कर्मचारियों का विरोध प्रदर्शन

दिल्ली सरकार द्वारा संचालित बुराड़ी अस्पताल का मामला. आरोप है कि अस्पताल के सफाई कर्मचारी लंबित वेतन और वेतन में कटौती से परेशान हैं. महिला कर्मचारियों को लगातार दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. उनसे अक्सर यौन संबंधों बनाने के लिए कहा जाता है. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के आश्वासन के बाद कर्मचारियों ने फिलहाल प्रदर्शन ख़त्म कर दिया है.

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विरोध प्रदर्शन के दौरान बुराड़ी अस्पताल की महिला सफाई कर्मचारी. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

दिल्ली सरकार द्वारा संचालित बुराड़ी अस्पताल का मामला. आरोप है कि अस्पताल के सफाई कर्मचारी लंबित वेतन और वेतन में कटौती से परेशान हैं. महिला कर्मचारियों को लगातार दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. उनसे अक्सर यौन संबंधों बनाने के लिए कहा जाता है. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के आश्वासन के बाद कर्मचारियों ने फिलहाल प्रदर्शन ख़त्म कर दिया है.

विरोध प्रदर्शन के दौरान बुराड़ी अस्पताल की महिला सफाई कर्मचारी. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार द्वारा संचालित एक अस्पताल के सफाई कर्मचारी लंबित वेतन समय अन्य चिंताओं को लेकर विरोध प्रदर्शन किया है. इस दौरान तीन कर्मचारियों ने विरोध स्वरूप अपने सिर मुंडवा लिए, जबकि उनके सहयोगियों ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पुतले के नकली अंतिम संस्कार का आयोजन किया.

इसी जनवरी माह में बुराड़ी अस्पताल में 10 दिनों की लंबी हड़ताल के बाद दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने प्रदर्शनकारी कर्मचारियों को आश्वासन दिया है कि वह उनकी चिंताओं पर ध्यान देंगे. इसके बाद कर्मचारियों ने फिलहाल अपनी हड़ताल खत्म कर दी है.

नवीनतम प्रदर्शन तब शुरू हुआ, जब अस्पताल में स्वच्छता का काम संभालने वाली ग्लोबल वेंचर्स के पर्यवेक्षकों से सफाई कर्मचारियों ने समय पर वेतन जारी करने की मांग की.

उनके प्रदर्शन के बाद अंततः उनका वेतन निर्धारित अवधि से काफी समय बाद बीते 19 जनवरी को जारी किया गया. वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 के अनुसार, पिछले महीने का वेतन हर महीने की 7 या 10 तारीख तक भुगतान किया जाना चाहिए.

अस्पताल में ट्रेड यूनियन नेताओं में से एक हरीश गौतम ने कहा, ‘यह पहली बार नहीं था, जब कर्मचारियों को समय पर अपना वेतन पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा. कर्मचारी कंपनी के पर्यवेक्षकों की दया पर निर्भर हैं.’

गौतम ने द वायर को बताया कि महिला सफाई कर्मचारियों को लगातार दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘उनसे अक्सर यौन संबंधों के लिए कहा जाता है और कंपनी के कर्मचारियों द्वारा कहा जाता है कि अगर उन्होंने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो उन्हें काम से हाथ धोना पड़ेगा.’

अस्पताल के सभी सफाई कर्मचारियों को अनुबंध फर्म द्वारा काम पर रखा गया है और उन्हें वेतन के रूप में न्यूनतम 17,000 रुपये प्रति माह से थोड़ा अधिक मिलना चाहिए. हालांकि, श्रमिकों ने शिकायत की कि अनुबंध फर्म द्वारा लगभग हर महीने उनके वेतन में अचानक कटौती की गई.

कर्मचारियों को संगठित करने में मदद कर रहीं दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर माया जॉन ने कहा, ‘यहां तक कि समय पर वेतन जारी करने की बुनियादी मांग को भी पर्यवेक्षकों द्वारा अपमान के रूप में लिया जाता है. चूंकि इनमें से कई कर्मचारी बहुत अधिक शिक्षित नहीं हैं, इसलिए कंपनी द्वारा उन्हें अक्सर अनुपस्थित या स्वीकृत छुट्टी पर चिह्नित किया जाता है. पर्यवेक्षकों के ये काम वास्तव में उन कर्मचारियों के लिए धमकी के रूप में काम करते हैं, जिन्हें लगता है कि वे कंपनी की दया पर निर्भर हैं.’

गौतम ने कहा कि अधिकांश महीनों में कर्मचारी इस बात को लेकर अनिश्चित रहते हैं कि उनके बैंक खातों में कितनी राशि जमा की जाएगी.

गौतम ने कहा, ‘किसी को कोई भी राशि मिल सकती है. यह कभी 8,000 रुपये तो कभी 11,000 रुपये होती है, जो निर्धारित न्यूनतम वेतन से काफी कम है. कर्मचारियों की शिकायतों का इस्तेमाल कंपनी ज्यादातर मौकों पर उन्हें किसी नाजायज आधार पर नौकरी से निकालने के लिए करती है.’

उन्होंने आरोप लगाया कि पर्यवेक्षक अक्सर सफाई कर्मचारियों से कहते हैं कि वे यह न बताएं कि उन्हें न्यूनतम वेतन 17,000 रुपये से कम राशि मिली है.

पिछले साल महिला श्रमिकों द्वारा इन पर्यवेक्षकों के खिलाफ कम से कम दो एफआईआर दर्ज कराई गई थीं, जिन्होंने आरोप लगाया था कि उनके साथ या तो यौन उत्पीड़न किया गया था या उनसे यौन संबंध बनाने के लिए कहा गया था.

हालांकि, जॉन ने कहा कि पर्यवेक्षकों पर नजर रखने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा बहुत कुछ नहीं किया गया था. गौतम ने कहा, ‘आम तौर पर पर्यवेक्षक उन महिलाओं से यौन संबंध बनाने की मांग करते हैं जो विधवा या अविवाहित हैं.’

दिलचस्प बात यह है कि अस्पताल में अनिवार्य आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) नहीं थी, जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के आरोपों को देखती हो.

एफआईआर और कुछ महिला संगठनों द्वारा अस्पताल के चिकित्सा निदेशक को लिखे एक पत्र ने अस्पताल प्रबंधन को दिसंबर 2023 में जल्दबाजी में एक आईसीसी इकाई स्थापित करने के लिए मजबूर किया.

फिर भी महिला संगठनों ने पत्र में कहा कि पिछले महीने कथित यौन उत्पीड़न के कुछ मामलों की जांच के लिए आयोजित एकमात्र आईसीसी बैठक में महिला सफाई कर्मचारियों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था.

इसके अलावा आईसीसी की बैठक शिकायतों के कारण नहीं बल्कि चिकित्सा निदेशक और दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सचिव के निर्देश पर बुलाई गई थी.

इनमें से अधिकांश सफाई कर्मचारी दलित वाल्मीकि समुदाय से हैं. उनका जीवन स्तर निम्न है और उन्हें ऐतिहासिक रूप से सामाजिक-आर्थिक सीढ़ी में नीचे धकेल दिया गया है. जॉन ने कहा, ‘अक्सर इन कर्मचारियों को अपने नियोक्ताओं द्वारा जातिवादी अपमान का सामना करना पड़ता है.’

गौतम ने कहा कि इस तरह की शोषणकारी प्रथाएं बुराड़ी अस्पताल के लिए अनोखी नहीं हैं, क्योंकि दिल्ली के अधिकांश अस्पताल अपने सफाई कर्मचारियों को एक ठेका फर्म के माध्यम से नियुक्त करते हैं, जो इस मामले में ग्लोबल वेंचर्स है.

गौतम ने कहा, ‘अनुबंध कर्मचारियों के रूप में नौकरी की सुरक्षा की कमी प्राथमिक समस्या है. तमाम विरोधों के बावजूद कर्मचारी फर्म और उसके पर्यवेक्षकों की दया पर निर्भर रहते हैं. आमतौर पर ये कंपनियां कई भ्रष्ट प्रथाओं को लागू करने के लिए अस्पताल प्रबंधन के साथ सांठगांठ करती हैं और कर्मचारियों को उनके अधिकारों से भी वंचित करती हैं.’

गौतम ने कहा कि वेतन आदि की मांग को लेकर इसी तरह के विरोध प्रदर्शन पिछले साल तीन बार हुए थे.

उन्होंने कहा, ‘अस्पताल प्रशासन अपनी देखरेख में होने वाली इन हड़तालों और शोषणकारी प्रथाओं का गवाह रहा है. फिर भी उसने ठेका फर्म के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है. इसका मतलब केवल यह हो सकता है कि फर्म और अस्पताल प्रबंधन दोनों मिलकर काम करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘कुछ सफाई कर्मचारियों ने यह भी आरोप लगाया कि इनमें से कई अनुबंध कंपनियां उन्हें काम पर रखने के लिए 30,000 से 40,000 रुपये के बीच रिश्वत लेती हैं. रकम नहीं देने पर नौकरी नहीं मिलेगी. यह प्रथा दिल्ली के अस्पतालों में संविदाकर्मियों को नियुक्त करने के समय प्रचलित है.’

अस्पताल स्थल और मुख्यमंत्री आवास पर कर्मचारियों के प्रदर्शन पर पुलिस कार्रवाई हुई. पुलिस ने हड़ताल कर रहे कुछ कर्मचारियों पर लाठीचार्ज किया और उन्हें हिरासत में लिया, लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.

दिल्ली सरकार के श्रम मंत्री गोपाल राय ने ठेका कंपनियों के बीच हायर एंड फायर प्रथा को स्वीकार किया था. उन्होंने एक आदेश पारित किया था कि जब सरकारी निकाय नई फर्मों को नियुक्त करते हैं, तब भी 80 प्रतिशत अनुबंध श्रमिकों को बनाए रखना अनिवार्य है.

हालांकि, गौतम ने कहा कि नियम को शायद ही कभी लागू किया जाता है और समस्या पूरी अनुबंध प्रणाली में ही है, जहां श्रमिकों को कोई बोलने का अधिकार नहीं है.

प्रदर्शनकारी सफाई कर्मचारियों ने बीते 25 जनवरी को बुराड़ी अस्पताल में प्रदर्शन का वर्तमान दौर समाप्त कर दिया, जब दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने उनके एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की और एक बैठक के बाद उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा.

गौतम ने कहा, सौरभ भारद्वाज ने हमें आश्वासन दिया कि ग्लोबल वेंचर्स के साथ अनुबंध रद्द कर दिया जाएगा, क्योंकि वह बार-बार उल्लंघन कर रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर तुरंत अस्पताल प्रबंधन से चर्चा की जाएगी और एक जांच समिति गठित की जाएगी.

भारद्वाज ने कोई आदेश पारित नहीं किया है. हालांकि, आश्वासन श्रमिकों के लिए राहत के रूप में आया है. अस्पताल प्रबंधन और ठेका कंपनी ग्लोबल वेंचर्स दोनों ने अपनी ओर से कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया है.

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