दिल्ली: जन सुविधा के कर्मचारियों से ले रहे अत्यधिक काम, लेकिन महीनों से नहीं किया वेतन भुगतान

दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड दिल्ली में 662 से अधिक जन सुविधा परिसर चलाता है, जो झुग्गी बस्तियों में रहने वाली आबादी को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए सेवा प्रदान करते हैं. परिसरों में कार्यरत केयरटेकर, सुपरवाइज़र और सफाई कर्मचारी बताते हैं कि उन्हें महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. पीएफ और ईएसआईसी की सुविधा भी नहीं दी जा रही है.

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दिल्ली के दयाल सिंह कैंप स्थित जन सुविधा कॉम्प्लेक्स के केयरटेकर चंद्र कुमार झा. (फोटो: दिव्या तिवारी/इंडियास्पेंड)

दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड दिल्ली में 662 से अधिक जन सुविधा परिसर चलाता है, जो झुग्गी बस्तियों में रहने वाली आबादी को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए सेवा प्रदान करते हैं. परिसरों में कार्यरत केयरटेकर, सुपरवाइज़र और सफाई कर्मचारी बताते हैं कि उन्हें महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. पीएफ और ईएसआईसी की सुविधा भी नहीं दी जा रही है.

दिल्ली के दयाल सिंह कैंप स्थित जन सुविधा कॉम्प्लेक्स के केयरटेकर चंद्र कुमार झा. (फोटो: दिव्या तिवारी/इंडियास्पेंड)

नई दिल्ली: दिल्ली के जन सुविधा परिसरों के कर्मचारियों को लंबे समय से वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है, ऊपर से उनसे क्षमता से अधिक काम भी लिया जा रहा है.

काम में लगे केयरटेकर, पर्यवेक्षक (सुपरवाइजर) और सफाई कर्मचारी बात करने पर बताते हैं कि उन्हें महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. वहीं, ठेकेदार और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) इसके लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.

बिहार के 50 वर्षीय प्रवासी चंद्र कुमार झा पिछले सात वर्षों से दिल्ली के दयाल सिंह कैंप में 49 सीटों वाले जन सुविधा परिसर (कॉम्प्लेक्स) – जिसमें सामुदायिक शौचालय और स्नानघर शामिल हैं – के कार्यवाहक (केयरटेकर) के रूप में काम कर रहे हैं.

वह अपनी बस्ती के लोगों के लिए परिसर के उपयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए सुबह 5 बजे जागते हैं. अपनी पत्नी और बेटे (जो सफाई कर्मचारी है) के साथ वह परिसर के एक गंदे कमरे में रहते हैं, जो डीयूएसआईबी द्वारा प्रदान किया गया है. एक महीने पहले उनकी पत्नी का हाथ टूट गया था, जिसके इलाज में उन्हें काफी ज्यादा खर्च करना पड़ा.

उनका कहना है कि इससे वह कर्ज में डूब गए, क्योंकि अगस्त 2023 से उन्हें वेतन नहीं मिला है. झा कहते हैं, ‘ईएसआईसी (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) कार्ड भी नहीं है कि कुछ मदद हो पाए.’

डीयूएसआईबी के जन सुविधा परिसरों की यही कहानी है. कर्मचारी महीनों से वेतन के इंतजार में हैं.

जन सुविधा कॉम्प्लेक्स दिल्ली के विभिन्न स्थानों पर झुग्गी बस्तियों में रहने वाली आबादी को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए सेवा प्रदान करते हैं. यह केंद्र सरकार के प्रमुख स्वच्छ भारत अभियान के अनुरूप किया गया था.

परिसर पहले डीयूएसआईबी द्वारा ‘भुगतान और उपयोग’ के आधार पर चलाए जाते थे; हालांकि, जनवरी 2018 से सभी शौचालय सुविधाएं नि:शुल्क कर दी गईं. वर्तमान में डीयूएसआईबी दिल्ली में 662 से अधिक परिसर चलाता है.

अधिक काम लिया जाता है, लेकिन कम वेतन दिया जाता है

आरके पुरम की डॉ. अंबेडकर बस्ती स्थित जन सुविधा परिसर (जेएससी) के केयरटेकर कन्हैया सिंह भी परिसर में ही रहते हैं. बीते दिनों जब बिहार में उनकी पत्नी बीमार पड़ी तो वे इलाज के लिए उन्हें दिल्ली ले आए और किराये पर एक कमरा लिया.

वह कहते हैं, ‘मेरे पास इलाज के पैसे नहीं थे, उधार लेना पड़ा. अक्टूबर 2023 का वेतन जनवरी 2024 के अंतिम सप्ताह में मेरे खाते में जमा हुआ.’

वह कहते हैं, ‘मैं प्रतिदिन 12 घंटे से अधिक काम करता हूं और प्रति माह 11,700 रुपये मिलते हैं. एक अन्य सफाई कर्मचारी निरंजन को तो प्रति माह 7,000 रुपये ही मिलते हैं. मुझे न्यूनतम वेतन की परवाह नहीं है, बस मेरा बकाया वेतन मुझे मिल जाए.’

वह 15 वर्षों से जन सुविधा परिसर में काम कर रहे हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपना बकाया पाने के लिए सुपरवाइजर से बात की, जिसने ठेकेदार से इस पर चर्चा की. जब कुछ नहीं हुआ तो हमने विधायक प्रमिला टोकस को पत्र लिखा.

कन्हैया सिंह के सुपरवाइजर जितेंद्र कुमार कहते हैं कि उनका भी यही हाल है. उन्हें न्यूनतम भुगतान तो मिलता है, लेकिन अक्टूबर से वेतन नहीं मिला है. वह बताते हैं कि उन्होंने अपनी जेब से 50,000 रुपये खर्च किए, जिसके बिल ठेकेदार को भेजे हैं, लेकिन अब तक प्रतिपूर्ति (भुगतान) नहीं हुआ है.

ठेकेदारों द्वारा नियमों के उल्लंघन के कीमत कर्मचारी चुका रहे हैं

दिल्ली भर के परिसरों के कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन में एकरूपता का अभाव है. नियमों में कहा गया है कि न्यूनतम वेतन अधिनियम के अनुसार, केयरटेकर और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान सीधे उनके व्यक्तिगत बैंक खातों में समय पर किया जाना चाहिए. हस्तांतरित राशि शौचालयों की संख्या और उपयोग की आवृत्ति के आधार पर निर्धारित की जाती है.

आरके पुरम की डॉ. अंबेडकर बस्ती में स्थित जन सुविधा परिसर. (फोटो: दिव्या तिवारी/इंडियास्पेंड)

हालांकि, श्रमिकों का आरोप है कि ठेकेदार नियमों का उल्लंघन करके उनके अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं.

पिछले एक साल से इंदर कैंप स्थित जन सुविधा परिसर में केयरटेकर के तौर पर काम कर रहे राजकुमार बताते हैं कि ठेकेदार उन्हें नकद भुगतान करता है. वह कहते हैं, ‘मुझे हमारी न्यूनतम मजदूरी नहीं पता, पारिश्रमिक के रूप में 9,000 रुपये नकद मिलते हैं, जिसमें से 3,000 रुपये सफाई कर्मचारी को देता हूं.’

सुपरवाइजर अभय सिंह कई बार ठेकेदारों के पास पहुंचे, लेकिन उन्हें बताया गया कि विभाग से बिलों का भुगतान नहीं किया जा रहा है. उन्हें यह भी धमकी दी गई कि अगर वह इस संबंध में फोन करेंगे तो उनकी नौकरी चली जाएगी. वह पिछले 20 दिनों से काम छोड़कर बैठे हैं.

कर्मचारियों के भविष्य निधि खाते और ईएसआई कार्ड तक नहीं हैं, जिससे उनकी सामाजिक सुरक्षा का प्रश्न खड़ा हो जाता है.

कर्मचारियों का कहना है कि दो महीने से सफाई के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री भी नहीं दी गई है, जिससे उन्हें अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है.

सितंबर 2022 में डीयूएसआईबी ने अपने रैन बसेरों और शौचालय परिसरों के खराब रखरखाव की शिकायतों के बाद उनकी निगरानी के लिए एक एकीकृत नियंत्रण कक्ष शुरू किया था.

कालकाजी में 24 घंटे संचालित 54 सीटों वाले जन सुविधा परिसर के केयरटेकर गोविंद सिंह बताते हैं, ‘अगर सफाई नहीं होती है तो लोग फोन करके शिकायत कर देते हैं. अधिकारी हमसे स्पष्टीकरण मांगते हैं, जबकि ठेकेदार हमें सफाई सामग्री उपलब्ध ही नहीं कराता.’

ठेकेदारों और डीयूएसआईबी का एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालना

एनजीओ भारतीय मनोज जन कल्याण समिति के पास 2022 से दक्षिण दिल्ली में 16 जन सुविधा परिसरों का अनुबंध है. कर्मचारियों के वेतन भुगतान में देरी पर इसके अध्यक्ष मनोज सिंह ने जिम्मेदारी डीयूएसआईबी पर डालते हुए कहा, ‘मैंने वेतन के सभी बिल भेज दिए हैं, लेकिन विभाग ने बकाया भुगतान जारी नहीं किया है. अधिकारियों ने हमें बताया कि फंड नहीं है, इसलिए भुगतान में देरी हुई है. अगर महीनों तक बिलों का भुगतान नहीं किया जाता है तो हम कर्मचारियों की मदद करने में असमर्थ हैं.’

दूसरी ओर, डीयूएसआईबी के प्रधान निदेशक पीके झा ने भुगतान न होने की समस्या के लिए ठेकेदारों को जिम्मेदार ठहराया.

पीके झा ने कहा, ‘विभाग ठेकेदारों को बिल व्यय साझा करने के बाद वास्तविक आधार पर प्रतिपूर्ति करता है. परिसर को चलाने की निविदाओं के लिए आवेदन करते समय ठेकेदार को परिसर चालू रखने के लिए अपनी वित्तीय क्षमता घोषित करनी होती है, ताकि अगर विभाग बिलों के भुगतान करने में समय लेता है तो उस स्थिति में वह उसे चला सकें.’

उन्होंने आगे कहा, ‘एनजीओ/ठेकेदार कर्मचारियों को समय पर भुगतान करने और यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी हैं कि कोई शोषण न हो. हमने अक्टूबर 2023 तक के लिए धनराशि जारी कर दी है. यदि किसी कर्मचारी को भुगतान नहीं किया गया है, तो ठेकेदार को जवाबदेह ठहराया जाएगा.’

झा ने यह भी कहा कि ठेकेदार ईपीएफ में योगदान के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए जवाबदेह हैं कि कर्मचारियों के पास ईएसआईसी कार्ड हो. वे बोले, ‘हम इस पर ध्यान देने के लिए कदम उठा रहे हैं. हम ठेकेदारों से कर्मचारियों की सूची और उन्हें संविदा कर्मचारी के रूप में प्राप्त लाभों के साथ एक वचन-पत्र मांगेंगे.’

यह रिपोर्ट सबसे पहले इंडिया स्पेंड में प्रकाशित हुई थी. इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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