कोलकाता: लोकसभा चुनाव से पहले आयकर विभाग द्वारा विपक्षी दलों को नोटिस थमाने का सिलसिला जारी है. एक ही दिन जब कांग्रेस पार्टी ने कहा कि उसे पिछले वर्षों के कर रिटर्न में कथित विसंगतियों के लिए आयकर विभाग द्वारा 1,823 करोड़ रुपये का नोटिस दिया गया है, दो वामपंथी दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (माकपा) पर भी इसी तरह की कार्रवाई की गई है.
सीपीआई को ’11 करोड़ रुपये’ का नोटिस
सीपीआई को 11 करोड़ रुपये का कथित बकाया चुकाने के लिए आयकर विभाग का नोटिस मिला है. इस नोटिस में बीते कुछ वर्षों के दौरान आयकर रिटर्न दाखिल करते समय पुराने पैन कार्ड का उपयोग करने के लिए पार्टी को 11 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान करने को कहा गया है.
हालांकि, सीपीआई इस नोटिस को अदालत में चुनौती देने पर विचार कर रहा है.
माकपा को ‘15.59 करोड़ रुपये’ का नोटिस
माकपा को 2016-17 के टैक्स रिटर्न में बैंक खाता घोषित न करने पर 15.59 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूली का नोटिस भेजा गया है. पार्टी ने बताया कि 2016-17 के वित्तीय वर्ष के लिए उसकी कर छूट वापस ले ली गई थी.
पार्टी के एक सूत्र ने कहा कि उसे वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए धारा 148ए के तहत इस आधार पर नोटिस मिला है. इस नोटिस में कहा गया है कि ‘करदाता एक बैंक खाता रखता है, लेकिन करदाता ने इस बैंक खाते को कॉलम 13 (बी) में आयकर रिटर्न दाखिल करते समय घोषित नहीं किया है.’
धारा 148 उस आय पर नोटिस से संबंधित है जो मूल्यांकन से बच गई है. इस संबंध में पार्टी ने बताया कि किया कि उसने वित्तीय विवरण केंद्रीय समिति-स्तर पर दाखिल किया था और उस विशेष बैंक खाते को सूचीबद्ध न करना एक भूल थी.
पार्टी के इस जवाब को आयकर विभाग ने 29 जुलाई, 2022 को खारिज कर दिया और धारा 148 के तहत नोटिस जारी करते हुए एक बार फिर इस मामले को खोल दिया गया.
हालांकि, पार्टी का कहना है कि उसने समय-समय पर विभाग द्वारी जारी नोटिस के जवाब दिए हैं. बीते साल 13 मई, 2023 को भी पार्टी को एक कारण बताओ नोटिस प्राप्त हुआ था, जिसमें प्रस्ताव किया गया था कि धारा 13 ए के तहत कर छूट के दावे को अस्वीकार कर दिया जाए.
इसके बाद आईटी विभाग ने पार्टी से 22,66,30,516 रुपये की मांग की और माकपा को इस कारण बताओ नोटिस के खिलाफ 17 मई, 2023 तक चार दिन के भीतर जवाब देने को कहा.
इस संबंध में 16 मई को माकपा ने यह कहते हुए 29 मई तक जवाब देने का समय बढ़ाने की मांग की कि उसे अपना विस्तृत जवाब प्रस्तुत करने के लिए तथ्य जुटाने की जरूरत है. लेकिन 23 मई तक विभाग ने अंतिम आदेश पारित कर दिया जिसमें कहा गया कि माकपा ने जवाब दाखिल नहीं किया था और 2016-2017 के वित्तीय वर्ष के लिए 15.59 करोड़ रुपये का कर लगा दिया.
आयकर विभाग को हाईकोर्ट से फटकार
पार्टी ने इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया, जहां सूत्रों का कहना है कि अदालत ने आईटी विभाग को उसके इस दावे पर फटकार लगाई कि उसे समय विस्तार के लिए पार्टी का अनुरोध नहीं मिला.
सूत्र बताते हैं कि ऐसे मामलों में विस्तार नियमित रूप से दिया जाता है. अदालत ने निर्देश दिया कि जब तक आईटी विभाग जुलाई में अगली तारीख पर जवाब नहीं देता, तब तक पार्टी को कर राशि का भुगतान करने की जरूरत नहीं है.
सूत्रों ने आगे ये भी स्पष्ट किया कि ‘यह सिर्फ एक मूल्यांकन वर्ष 2016-17 के लिए है. विभाग ऐसा हर साल कर सकता है.’
बता दें कि माकपा का कर विवाद 2022 में शुरू हुआ था और अब तक जारी है. कांग्रेस और सीपीआई द्वारा प्राप्त नोटिस लोकसभा चुनावों से पहले कई सवाल उठाते हैं.
उल्लेखनीय है कि अपारदर्शी चुनावी बॉन्ड प्रणाली के खिलाफ अन्य नागरिक समाज याचिकाकर्ताओं के बीच माकपा अदालत में जाने वाली एकमात्र राजनीतिक पार्टी थी. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को असंवैधानिक करार देते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और चुनाव आयोग से सभी जानकारी को सार्वजनिक करने का आदेश भी दिया था.
माकपा के सूत्रों ने द वायर को बताया कि ‘यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि यह नोटिस विपक्ष को प्रभावित करने का एक ठोस प्रयास है लेकिन यह महज़ संयोग नहीं हो सकता!’
ज्ञात हो कि यह तीनों पार्टियां- कांग्रेस, सीपीआई और माकपा विपक्षी ‘इंडिया’ ब्लॉक का हिस्सा हैं. इसी ब्लॉक से जुड़े आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी हाल ही में दिल्ली आबकारी नीति मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसे राजनीति से प्रेरित कार्रवाई कहा जा रहा है.
केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया था, जो उन तीन केंद्रीय एजेंसियों में से एक है, जिन्हें लेकर एक्टिविस्ट्स और विपक्षी दलों का आरोप है कि आलोचकों को कमजोर करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर इसका दुरुपयोग किया जा रहा है. दो अन्य एजेंसियां आयकर विभाग और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शुक्रवार (29 मार्च) को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस संबंध मेंं सवाल पूछते हुए लिखा कि केवल विपक्ष के खिलाफ इस अनुचित तरीके से कार्रवाई करने के लिए आयकर विभाग पर कौन दबाव डाल रहा है?
खरगे ने आरोप लगाया है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी पर ‘4,600 करोड़ रुपये’ का जुर्माना लंबित है, जिसे भुगतान करने से उसे छूट मिली हुई है.
उन्होंने कहा, ‘इस तथ्य के बावजूद कि चुनाव आयोग की सार्वजनिक जानकारी स्पष्ट रूप से दिखाती है कि भाजपा को 1297 लोगों ने अपने नाम और पते का उल्लेख किए बिना 2017-18 में 42 करोड़ रुपये दिए हैं. इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही. वहीं 14 लाख रुपये जमा करने पर कांग्रेस पर 135 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया और उसका खाता फ्रीज कर दिया गया. लेकिन पिछले 7 वर्षों में भीजपा का यह जुर्माना 4,600 करोड़ रुपये के बराबर है, उस पर कुछ नहीं हुआ!’
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)