हम शांतिपूर्ण मार्च चाहते थे, लेकिन लेह को सरकार ने युद्धक्षेत्र में बदला: सोनम वांगचुक

जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और लद्दाख के नागरिक रविवार को लेह से चांगथंग तक के लिए एक मार्च निकालने वाले थे, जिसे 'पश्मीना मार्च' नाम दिया गया था. हालांकि, इसे मोदी सरकार द्वारा धारा 144 लगाने समेत अन्य कड़े कदम उठाए जाने के चलते रद्द कर दिया गया.

(फोटो: वीडियो से स्क्रीनग्रैब)

बेंगलुरु: जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने शनिवार (6 अप्रैल) की शाम लेह से एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कहा कि लद्दाख में नेताओं ने सर्वसम्मति से 7 अप्रैल को बहुप्रतीक्षित पश्मीना मार्च को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है.

वांगचुक ने कहा कि लेह को ‘युद्धक्षेत्र’ में बदल दिया गया है, धारा 144 लागू कर दी गई है और युवा नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा है. वांगचुक ने आगे कहा कि स्मोक ग्रेनेड इस्तेमाल के लिए तैयार हैं और शहर की ओर जाने वाली सड़कों पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए बैरिकेड्स के कारण लोगों को लेह पहुंचने से रोका जा रहा है.

वांगचुक ने दावा किया कि केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए इन प्रतिबंधों के कारण, भारत और दुनिया अब उन मुद्दों के बारे में जानते हैं जिन्हें ‘पश्मीना मार्च’ उजागर करना चाहता था – चीन की सीमा से सटे लद्दाख के चांगथंग क्षेत्र में पशुपालकों की जमीन परियोजनाओं (ऊर्जा परियोजनाओं सहित) के लिए कॉरपोरेट्स को दी जा रही है, और सीमा पर चीनी घुसपैठ के कारण कितनी जमीन गंवा दी गई है.

वांगचुक ने कहा, ‘इसलिए मार्च का उद्देश्य पहले ही प्राप्त किया जा चुका है… मार्च को रोकने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से पता चलता है कि सरकार को कितना कुछ छिपाना है.’

वांगचुक और लद्दाख के नागरिकों – जो लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और पर्यावरणीय कारणों का हवाला देते हुए राज्य में छठी अनुसूची लागू करने समेत अपनी जरूरतों पर ध्यान आकर्षित कराने के लिए बीते 4 अप्रैल से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं – ने एक शांतिपूर्ण मार्च की योजना बनाई थी, जिसे उन्होंने लेह से चांगथंग तक के लिए  ‘पश्मीना मार्च’ नाम दिया था. यहां स्वेदशी घुमंतू समुदाय अपनी बेशकीमती पश्मीना बकरियों को चराते हैं और पश्मीना ऊन का उत्पादन करते हैं.

लेह ‘युद्धक्षेत्र’ बन गया है

वांगचुक ने कहा, ‘कल (शुक्रवार) चांगथंग पठार की स्थिति को उजागर करने के लिए मार्च था कि कैसे वे (पशुपालक) चीनी घुसपैठ और परियोजनाओं को शुरू करने के लिए जमीन पर कब्जा करने वाले कॉरपोरेट्स दोनों से बड़ी मात्रा में अपनी जमीन खो रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि नेता कह रहे हैं कि एक इंच जमीन का भी नुकसान नहीं हुआ है लेकिन यह सच नहीं है. उन्होंने कहा, ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि हमारी सेना जवाब देने और हमारी ज़मीन वापस पाने में पूरी तरह सक्षम है.’

वांगचुक ने कहा, ‘अगर वे अपनी जमीन खोते हैं तो लद्दाख के खानाबदोश चरवाहे अपनी बकरियां बेचने और दिहाड़ी मजदूर बनने और शहरों में जाने के लिए विवश हो जाएंगे. किसी को उनकी दुर्दशा की परवाह नहीं है.’

वांगचुक ने इसे अन्यायपूर्ण बताते हुए द वायर से कहा कि वे लोग अब 15-20 किलोमीटर तक नहीं जा सकते हैं.

बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘शांति भंग होने की आशंका’ का हवाला देते हुए 5 अप्रैल को लेह जिले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत अनिश्चितकालीन निषेधाज्ञा लागू कर दी और 24 घंटे के लिए हाई स्पीड इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया था.

वांगचुक ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कहा कि शहर में सेना के जवानों की तैनाती और यहां तक कि स्मोक ग्रेनेड के इस्तेमाल के साथ ही लेह ‘युद्धक्षेत्र’ में बदल दिया गया है.

वांगचुक ने कहा, ‘शांतिपूर्वक उपवास कर रहे लोगों पर इन कड़े उपायों का इस्तेमाल करना एक कठोर कार्रवाई है.’

उन्होंने बताया कि युवा नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा है और उनसे एक ऐसे बॉन्ड पर हस्ताक्षर कराया जा रहा है कि वे जनता को संबोधित नहीं करेंगे.

पश्मीना मार्च रद्द

वांगचुक ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि सरकार उन्हें मार्च के दौरान रोकेगी और अब लेह जिले पर कई प्रतिबंध लगाए जाने के साथ ऐसा ही हुआ है. इसलिए पश्मीना मार्च अब रद्द कर दिया गया है.

यह निर्णय लद्दाख के नेताओं द्वारा सुरक्षा चिंताओं और ‘इस डर के कारण कि शांतिपूर्वक विरोध कर रहे लोगों को इस प्रक्रिया में चोट लग सकती है’ के बारे में चर्चा करके सर्वसम्मति से लिया गया.

वांगचुक ने कहा, ‘अगर सरकार को विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों की सुरक्षा की परवाह नहीं है, तो विरोध नेतृत्व करने वाले नेता ऐसा नहीं कर सकते; उन्होंने निर्णय लिया है कि वे मार्च के दौरान प्रदर्शनकारियों पर हिंसा का जोखिम नहीं उठा सकते, और मार्च को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों को देखते हुए यह एक निश्चित संभावना थी.’

उन्होंने जोर देकर कहा, ‘वैसे भी मार्च का उद्देश्य अब पूरा हो गया है. हमारा उद्देश्य एक शांतिपूर्ण मार्च निकालकर शेष भारत को हमारे मुद्दों के बारे में बताना था. अब जब सरकार इतने कड़े प्रतिबंध लगा रही है तो हर समाचार मीडिया इसके बारे में बात कर रहा है.’

जलवायु कार्यकर्ता ने रेखांकित किया कि मार्च का उद्देश्य क्षेत्र की शांति को अस्थिर करना नहीं था.

विरोध जारी रहेगा

वांगचुक और लद्दाख के नागरिक अपना शांतिपूर्ण उपवास जारी रखेंगे.

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान वांगचुक द वायर से कहा, ‘हालांकि, आदर्श आचार संहिता लागू है लेकिन हम चुनाव तक अपना शांतिपूर्ण विरोध जारी रखेंगे. हमें दोनों गठबंधनों ‘एनडीए और इंडिया’ से लिखित आश्वासन पाकर खुशी होगी जो कानूनी रूप से स्वीकार्य हो.’

उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन ने कल (शुक्रवार) ही छठी अनुसूची के तहत लद्दाख के संरक्षण का वादा किया है. वह बोले, ‘हम एनडीए से भी ऐसी ही उम्मीद करते हैं जिसने सबसे पहले वादे किए थे. इसलिए उन पर अधिक जिम्मेदारी है.’

गौरतलब है कि भाजपा ने अपने राजनीतिक घोषणापत्र में लद्दाख की मांगों को मानने का वादा किया था लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है; हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह के साथ हुई बातचीत भी विफल रही थी, जिसके बाद वांगचुक और अन्य लोगों ने अपना अनशन और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था.

वांगचुक ने केंद्र से अपील करते हुए कहा, ‘आपने ये वादे किए हैं. आपको ईमानदारी और पारदर्शिता को जीवित रखने के लिए इन वादों को निभाना चाहिए. अन्यथा हमारा राष्ट्र बेईमान लोगों का देश बन जाएगा जो वादों का सम्मान नहीं करते हैं और दुनिया में कोई भी हम पर विश्वास या भरोसा नहीं करेगा, विश्वगुरु बनना तो दूर की बात है.’

वांगचुक ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रों को भी संबोधित किया, जो नई दिल्ली में लद्दाख के साथ एकजुटता दिखाने के लिए मार्च निकालने वाले थे.

वांगचुक ने छात्रों से बात करते हुए और आंदोलन में शामिल होने के लिए उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा, ‘यही वह चीज है जो हमें यहां अपना शांतिपूर्ण अनशन जारी रखने के लिए ऊर्जा देती है.’

आयोजकों ने कहा कि लद्दाख के समर्थन में बेंगलुरु सहित कई शहरों में मार्च निकाले जा रहे हैं.

वांगचुक ने पूरे भारत से अपील की, ‘रविवार का उपयोग इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए करें कि हमारे देश को कैसे चलाया जा रहा है और इस बारे में जागरुकता बढ़ाएं कि हम अपने वोटों का उपयोग उनके तरीकों को बदलने या सरकार को बदलने के लिए कैसे कर सकते हैं.’

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