भारत में अंग्रेजी शासन की समाप्ति के साथ हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था को यह कहते हुए स्वीकार किया था कि सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा. सभी को बराबरी का दर्जा मिलेगा. संसाधनों में बराबरी की हिस्सेदारी होगी. शोषण और दमन से मुक्ति मिलेगी. लेकिन आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी आदिवासी अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता हैं.
आज देश में लगभग 13 करोड़ आदिवासी हैं जो देश के लगभग 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रहते हैं. चुनाव के वक्त राजनीतिक दल इनके लिए बड़ी घोषणाएं करते हैं. बड़े नेता इनके जैसा दिखने के लिए इनके साथ नाचते हैं, उनके जैसा कपड़ा पहनते हैं, उनकी भाषा के दो चार शब्द भी बोलते हैं, उन्हें अपनी तरफ रिझाने के तमाम प्रयास करते है. लेकिन चुनावी मौसम के गुजर जाने के बाद ये राजनीतिक दल, इनकी सरकार और समाज की ‘मुख्यधारा’ इन्हें विकास-विरोधी, नक्सली, जंगली, असभ्य, बर्बर, राक्षस,असुर, वनवासी जैसे विशेषणों से तिरस्कृत करती है. कोई उन्हें अपने वास्तविक नाम ‘आदिवासी’ से पुकारना तक उचित नहीं समझता.
ऐसे में इन 13 करोड़ आदिवासियों के सामने स्थिति स्पष्ट है- अपने आप को मिटता देखते रहें अथवा अपने संवैधानिक हक का इस्तेमाल करें. अपने अस्तित्व को बचाने के लिए और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए लोकतांत्रिक तरीकों से लड़ें. अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी खड़ी करें, लोकसभा और विधानसभाओं में ऐसे प्रत्याशी भेजें जो सहजीविता, सामूहिकता और सहअस्तित्व के भाव से काम करें.
कैसे हुआ पार्टी का गठन
इस तरह देशभर के आदिवासी समाज के कार्यकर्ताओं, संस्कृतिकर्मियों, भाषाविदों, शिक्षाविद, छात्र, वाचिक परंपरा के जानकारों, इतिहासकारों और असंगठित क्षेत्र से जुड़े आदिवासियों ने राजनीतिक तौर पर एकजुट होने का निर्णय लिया. एक अखिल भारतीय पहचान को ध्यान में रखते हुए ‘भारत आदिवासी पार्टी’ का गठन हुआ, और 10 सितंबर 2023 को टंटया भील खेल मैदान, आदिवासी प्रेरणा स्थल, डूंगरपुर राजस्थान में पार्टी ने अपना स्थापना दिवस मनाया. इस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में मोहनलाल रौत (अध्यक्ष) कांतिलाल रौत, राजकुमार रौत, हीरालाल दायमा, डॉक्टर जितेंद्र मीणा, माया कलासुआ, दिलीप भाई वसावा, राजूभाई बलभई, रामप्रसाद डिंडोर, जितेंद्र असलकर, मणिलाल गरासिया, मांगीलाल ननामा इत्यादि शामिल हैं.
देश भर के आदिवासियों ने इस कार्यक्रम में शिरकत की. पार्टी संस्थापकों ने अपना राजनीतिक एजेंडा देश के समक्ष पेश किया.
1. आदिवासियों के लिए जनगणना में अलग से ‘ट्राइबल कोड’ सुनिश्चित किया जाए, ताकि आदिवासी पहचान, परंपरा, टोटम व्यवस्था को जिंदा रखा जा सके और धर्मांतरण पर स्थायी रोक लगे जा सके. 2. वनाधिकार कानून 2006 के तहत देश के तमाम भूमिहीन आदिवासियों को 5 एकड़ भूमि पर पट्टा दिया जाए, अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा निरस्त दावों की समीक्षा. 3. जिन गांवों में 50% से अधिक आदिवासी आबादी है, उनमें पेसा 1996 & अनुसूची 5 लागू हो. 4. वन विभाग को समाप्त कर तमाम वनभूमि आदिवासियों को रख रखाव हेतु दी जाए. 5. वनोपज का हिस्सा आदिवासियों को दिया जाए. 6. निजी क्षेत्र-न्यायपालिका में आरक्षण दिया जाए. 7. सरकारी सेवाओं में लेटरल एंट्री पर केंद्र सरकार तुरंत रोक लगाए, 8. जनसंख्या के अनुपात में सभी वर्गों के लोगों की हिस्सेदारी सुनिश्चित की जाए, 9. अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों पर तुरंत रोक लगे और 10.आदिवासी बाहुल्य इलाकों को मिलाकर भीलप्रदेश और गोंडवाना राज्यों का गठन किया जाए.
कैसे हुई चुनावी शुरुआत
भारत आदिवासी पार्टी ने स्थापना के मात्र ढाई महीने बाद होने वाले राजस्थान और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में 35 निर्वाचन क्षेत्रों (27 राजस्थान और 8 मध्य प्रदेश) में चुनाव लड़कर 4 सीटों पर जीत हासिल की. डूंगरपुर की चौरासी विधानसभा से राजकुमार रौत, आसपुर से उमेश डामोर, धरियावाद से थावरचंद मीणा और मध्य प्रदेश के रतलाम ज़िले की सैलाना सीट से कमलेश्वर डोडियार ने विधानसभा चुनाव जीता था. इस पार्टी ने लगभग 11 लाख वोट हासिल किए, और इसके 4 उम्मीदवार दूसरे स्थान पर और 16 तीसरे स्थान पर रहे.
भारत आदिवासी पार्टी अपना पहला चुनाव राजस्थान में ऐसी स्थिति में लड़ रही थी कि केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा का शासन था और राज्य में कांग्रेस थी. दोनों के धनबल और बाहुबल के सामने बिना संसाधनों के भारत आदिवासी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे. लेकिन इसके बावजूद आदिवासी समुदाय की पार्टी ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी.
इस पार्टी के संस्थापकों ने देशभर के आदिवासियों और उन तमाम लोगों से अपील की है जो आदिवासियत में विश्वास रखते हैं, प्रगतिशील हैं, पंथनिरपेक्ष हैं, मैं की जगह ‘हम’ का भाव रखते हैं और संविधान में विश्वास रखते हैं. संस्थापकों ने एक नारा दिया-
‘दूसरों के घर में रहकर, उनके घर महल, महल से राजभवन बनवाए
अपना घर बना दिया है, उसे घर से महल, महल से राजमहल बनाएं’
वर्तमान में लोकसभा चुनाव 2024 की प्रक्रिया चल रही है. राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, दादरा नागर हवेली, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और असम की लगभग 28 लोकसभा सीटों पर पार्टी अपने उम्मीदवार उतार रही हैं. राजस्थान में बांसवाड़ा से चौरासी विधायक राजकुमार रौत, उदयपुर से प्रकाश चंद्र बुझ, चित्तौड़गढ़ से मांगीलाल ननामा, सवाई माधोपुर से जगदीश प्रसाद मीणा, झारखंड के खूंटी से बबीता कश्चप, मध्य प्रदेश की मंडला सीट से चरण सिंह धुर्वे, रतलाम झाबुआ से बालुसिंह गामड़ इत्यादि प्रमुख उम्मीदवारों के नाम अभी तक घोषित किए जा चुके हैं.
आदिवासियों के राजनीतिक नेतृत्व को एकजुट करते हुए भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक, संरक्षक और गुजरात से 6 बार के विधायक छोटूभाई वसावा भारत आदिवासी पार्टी में शामिल हो गए हैं. आदिवासी एकता की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है. मध्य प्रदेश और झारखंड के आदिवासी नेतृत्व के साथ सामंजस्य स्थापित करके अखिल भारतीय स्तर की एकता स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा हैं.
सत्ता पक्ष भाजपा के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है, और विपक्ष इंडिया के बैनर तले मैदान में है, लेकिन दोनों आदिवासियत में विश्वास नहीं रहते हैं. मोदी सरकार के नेतृत्व में आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन की लूट पूर्ववर्ती सरकारों के मुकाबले तेज हैं. डिलिस्टिंग के नाम पर आदिवासियों के विभाजन की कोशिश हो रही हैं, गैर-आदिवासियों को लगातार ‘जनजाति’ की सूची में शामिल किया जा रहा हैं. लेकिन दूसरा पक्ष इन मुद्दों पर लगभग शांत है.
इस दलगत राजनीति में भारत आदिवासी पार्टी स्वतंत्र रूप से अपनी स्थिति को मजबूती से दर्ज करने का प्रयास कर रही है, और अपने सपने- ‘दिल्ली मांय मारी गादी हैं भुरेटीया नैय मानूं रे नैय मानूं’ (दिल्ली में मेरी गद्दी हैं, ऐं फिरंगियों मैं तुम्हारी बात नहीं मानूंगा) को पूरा करने का प्रयास कर रही हैं.
(डॉक्टर जितेंद्र मीणा भारत आदिवासी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं.)